अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 22
ऋषिः - बृहस्पतिः
देवता - फालमणिः, वनस्पतिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - मणि बन्धन सूक्त
1
यमब॑ध्ना॒द्बृह॒स्पति॑र्दे॒वेभ्यो॒ असु॑रक्षितिम्। स मा॒यं म॒णिराग॑म॒द्रसे॑न स॒ह वर्च॑सा ॥
स्वर सहित पद पाठयम् । अब॑ध्नात् । बृह॒स्पति॑: । दे॒वेभ्य॑: । असु॑रऽक्षितिम् । स: । मा॒ । अ॒यम् । म॒णि: । आ । अ॒ग॒म॒त् । रसे॑न । स॒ह । वर्च॑सा ॥६.२२॥
स्वर रहित मन्त्र
यमबध्नाद्बृहस्पतिर्देवेभ्यो असुरक्षितिम्। स मायं मणिरागमद्रसेन सह वर्चसा ॥
स्वर रहित पद पाठयम् । अबध्नात् । बृहस्पति: । देवेभ्य: । असुरऽक्षितिम् । स: । मा । अयम् । मणि: । आ । अगमत् । रसेन । सह । वर्चसा ॥६.२२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।
पदार्थ
(यम्) जिस (असुरक्षितिम्) असुरनाशक [वैदिक नियम] को (बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़े ब्रह्माण्डों के स्वामी परमेश्वर] ने (देवेभ्यः) विजयी लोगों के लिये (अबध्नात्) बाँधा है। (सः अयम्) वही (मणिः) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] (मा) मुझे (रसेन) पराक्रम और (वर्चसा सह) प्रताप के साथ (आ अगमत्) प्राप्त हुआ ॥२२॥
भावार्थ
परमात्मा के बाँधे नियम पर चल कर सब मनुष्य बल और कीर्ति बढ़ावें ॥२२॥
टिप्पणी
२२−(यम्) (अबध्नात्) बद्धवान्। नियोजितवान्। (बृहस्पतिः) बृहतां ब्रह्माण्डानां स्वामी (देवेभ्यः) विजयिभ्यः (असुरक्षितिम्) दुष्टनाशकम् (सः) (मा) माम् (अयम्) एव (मणिः) (आगमत्) प्राप्तवान् (रसेन) पराक्रमेण (सह) (वर्चसा) प्रतापेन ॥
विषय
रस + वर्चस्
पदार्थ
१. (बृहस्पति:) = सर्वज्ञ प्रभु ने (देवेभ्य:) = देववृत्ति के पुरुषों के लिए (यम्) = जिस (असुरक्षितिम्) = आसुर भावनाओं को काम, क्रोध, लोभ को विनष्ट करनेवाली (यम्) = जिस वीर्यमणि को (अबध्नत) = शरीर में बाँधा है। २. (स: अयं मणि:) = वह यह वीर्यमणि मा-मुझे रसेन-मानस रस [आनन्द] के साथ तथा (वर्चसा सह) = शरीरस्थ वर्चस्-रोगनिरोधक शक्ति के साथ (आगमत्) = प्राप्त हो।
भावार्थ
हम देववृत्ति के बनेंगे तो शरीर में वीर्यमणि को रक्षित कर पाएंगे। इसकी रक्षा से जहाँ हम आसुरभावों को विनष्ट कर पाएँगे, वहाँ मानस आनन्द व शरीरस्थ प्राणशक्ति को प्राप्त करेंगे।
भाषार्थ
(बृहस्पतिः) बृहत् ब्रह्माण्ड के पति परमेश्वर ने, (देवेभ्यः) देवों के उत्पादन के लिये, (असुरक्षितिम्) आसुरकर्मों का क्षय करने वाली (यम् मणिम) जिस मणि को बान्धा (सः) वह (अयम्) यह (मणिः) मणि (मा) मुझे (आगमत्) प्राप्त हुई है, (रसेन वर्चसा सह) रस और कान्ति के साथ।
टिप्पणी
[बृहस्पति ने सृष्ट्युत्पादनार्थ कामनारूपी मणि को अपने साथ बान्धा, निजस्वरूप में कामना को जागरित किया। कामना यह कि मैं देवों को उत्पन्न करूं, ताकि असुरों का क्षय हो। "देवेभ्यः" का अर्थ है "देवान् उत्पादयितुम्, मणिमबध्नात्"; तुमुन्नर्थ में चतुर्थी है। सृष्ट्युत्पादन के दो प्रयोजन है, भोग और अपवर्ग। “भोगापवर्गार्थ दृश्यम्” (योग २।१८)। कर्मानुसारी भोग, साधन है अपवर्ग का, मोक्ष का। भोग द्वारा बुरे कर्मो का फल, दुःख और कष्ट भोग लेने पर शनैः-शनैः बुरे कर्मों का विनाश होता रहता है, और व्यक्ति सत्कर्मों का चयन करता हुआ अपवर्ग का अधिकारी बनता जाता है। सृष्टि, परमेश्वर का अनुग्रहरूप है। यथा "अनुग्रहः सर्गः" (तत्त्वसमास, सांख्यसूत्र २७)। परमेश्वर का यह महान् अनुग्रह है कि वह सृष्टि में शनैः शनैः देवों को उत्पन्न करता हुआ मनुष्यों को अपवर्ग का पथिक बना कर उन्हें अपवर्ग प्रदान करे। मन्त्र में "रसेन" द्वारा भोग्य पदार्थ का वर्णन हुआ है। रस ओषधिरस है। यथा “पयः पशूनां रसमोषधीनां बृहस्पतिः सविता मे नियच्छात्" (अथर्व० १९।३१।५)]।
इंग्लिश (4)
Subject
Manibandhana
Meaning
That jewel-mani of divine power and potential which Brhaspati, lord of the expansive universe, bore and generated for the divinities of nature and humanity, for the evolution of existence and for the control and destruction of evil, has come to me also with the splen¬ dour and delight of being (to participate in the evolution of divinity and destruction of evil in my course of life).
Translation
The blessing, destroyer of the life-destroyers, which the Lord supreme has bestowed upon enlightened -ones (devah), that same blessing has come to me with virility and lustre.
Translation
That citron plant which the master of Vedic Speech binds on the men of Knowledge and which is the destroyer of disease-like food has come to me with sap and energy.
Translation
The demon-destroying Vedic Law, which God, the Lord of mighty worlds created for the victorious hath descended to me with prowess and glory.
Footnote
Me: The king.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२२−(यम्) (अबध्नात्) बद्धवान्। नियोजितवान्। (बृहस्पतिः) बृहतां ब्रह्माण्डानां स्वामी (देवेभ्यः) विजयिभ्यः (असुरक्षितिम्) दुष्टनाशकम् (सः) (मा) माम् (अयम्) एव (मणिः) (आगमत्) प्राप्तवान् (रसेन) पराक्रमेण (सह) (वर्चसा) प्रतापेन ॥
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