अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 19
ऋषिः - बृहस्पतिः
देवता - फालमणिः, वनस्पतिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - मणि बन्धन सूक्त
1
अ॑न्तर्दे॒शा अ॑बध्नत प्र॒दिश॒स्तम॑बध्नत। प्र॒जाप॑तिसृष्टो म॒णिर्द्वि॑ष॒तो मेऽध॑राँ अकः ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒न्त॒:ऽदे॒शा: । अ॒ब॒ध्न॒त॒ । प्र॒ऽदिश॑: । तम् । अ॒ब॒ध्न॒त॒ । प्र॒जाप॑तिऽसृष्ट: । म॒णि: । द्वि॒ष॒त: । मे॒ । अध॑रान् । अ॒क॒: ॥६.१९॥
स्वर रहित मन्त्र
अन्तर्देशा अबध्नत प्रदिशस्तमबध्नत। प्रजापतिसृष्टो मणिर्द्विषतो मेऽधराँ अकः ॥
स्वर रहित पद पाठअन्त:ऽदेशा: । अबध्नत । प्रऽदिश: । तम् । अबध्नत । प्रजापतिऽसृष्ट: । मणि: । द्विषत: । मे । अधरान् । अक: ॥६.१९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।
पदार्थ
(अन्तर्देशाः) अन्तर्देशों ने (अबध्नत) [वैदिक नियम को] बाँधा है, (प्रदिशः) बड़ी दिशाओं ने (तम्) उस [वैदिक नियम] को (अबध्नत) बाँधा है। (प्रजापतिसृष्टः) प्रजापति [परमात्मा] के उत्पन्न किये हुए (मणिः) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] ने (मे) मेरे (द्विषतः) वैरियों को (अधरान्) नीचे (अकः) किया है ॥१९॥
भावार्थ
सब स्थानों के पदार्थ ईश्वरनियम अनुसार मनुष्य का उपकार करते हैं ॥१९॥
टिप्पणी
१९−(अन्तर्देशाः) अन्तराला दिशाः (प्रदिशः) पूर्वादयो दिशाः (प्रजापतिसृष्टः) प्रजापालकेन परमेश्वरेणोत्पन्नः (मणिः) प्रशस्तो वैदिक नियमः (द्विषतः) शत्रून् (मे) मम (अधरान्) नीचान् (अकः) अकार्षीत्। कृतवान्। अन्यद्गतम् ॥
विषय
अन्तर्देशा:-प्रदिशः
पदार्थ
१. (अन्तर्देशा:) = [अन्तः देशो येषाम्] अन्दर ही जिनका देश है-जो अन्तर्मुखी वृत्तिवाले हैं, वे इस वीर्यमणि को (अबध्नत) = शरीर में बाँधते हैं। (प्रदिश:) = [प्रकृष्टा दिक येषाम्] हदयस्थ प्रभु के प्रकृष्ट निर्देशों [प्रेरणाओं] को सुननेवाले लोग (तम् अबध्नत) = उस वीर्यमणि को अपने में बाँधते हैं। २. (प्रजापतिसृष्ट:) = प्रजाओं के रक्षक प्रभु से उत्पन्न की गई यह (मणि:) = वीर्यमणि मे मेरे (द्विषतः) = अप्रीतिकर रोगरूप शत्रुओं को (अधरान् अक:) = पादाक्रान्त करती है-पाँव तले रौंद देती है।
भावार्थ
हम अन्तर्मुखी वृत्तिवाले बनें-अन्त:स्थित प्रभु की प्रेरणा को सुनें। इसप्रकार वीर्यमणि को अपने अन्दर बद्ध करते हुए रोगों को कुचल देनेवाले बनें।
भाषार्थ
(अन्तर्देशाः)१ देशों के भीतर निवास करने वाले प्रजाजनों ने (अबध्नत) बान्धा, (प्रदिशः) अवान्तर दिशाओं या भिन्न-भिन्न प्रदेशों में निवास करने वाले प्रजाजनों ने (तम्) उस मणि को (अबध्नत) बान्धा। (प्रजापति सृष्टः) प्रजाओं के पति परमेश्वर द्वारा रची गई मणि ने (मे) मेरे (द्विषतः) द्वेषी शत्रुओं को मेरे (अधरान्) नीचे अर्थात् अधीन (अकः) कर दिया है।
टिप्पणी
[प्रदिशः=मुख्य चार दिशाओं की मध्यवर्ती दिशाएं, ऐशानी, आग्नेयी, नैर्ऋती, वायवी; अथवा भिन्न-भिन्न प्रदेशों के अर्थात् तन्निवासी प्रजाजन। प्रजापतिसृष्ट मणि है कामना, संकल्प, दृढनिश्चय। प्रजापति ने मानुषी प्रजाओं में इस मणि की रचना की हुई है। इस मणि द्वारा मनुष्य निज आधिभौतिक तथा अध्यात्मद्वेषी शत्रुओं को अपने अधीन करते हैं। अधरान् = अधोरः, अधस्+रः (मत्वर्थीयः), (निरूक्त २।३।११) ] [१. अन्तर्देशाः तथा प्रदिशः का अभिप्राय है अन्तर्देशों के निवासी, तथा दिशाओं वा प्रदेशों में निवास करने वाली प्रजाएं।]
इंग्लिश (4)
Subject
Manibandhana
Meaning
That jewel of divine will and energy, all directions, spaces, interspaces and interdirections bear and observe in action. May that same jewel of divine will initiated, and set in evolutionary motion by Prajapati, throw down and out all forces of hate and enmity for me and the entire life of humanity.
Translation
The intermediate quarters (antardik) have put that on; the mid-regions have put that on. May this blessing, produced by the Lord of creatures, put the malicious enemies under me.
Translation
The regions of the heaven wear that the points that lie between them wear that and let the citron medicine created by the Lord of the Creation cast my diseases down.
Translation
This Vedic Law prevails in all quarters and sub-quarters. May the Vedic Law created by God, cast my foemen down.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१९−(अन्तर्देशाः) अन्तराला दिशाः (प्रदिशः) पूर्वादयो दिशाः (प्रजापतिसृष्टः) प्रजापालकेन परमेश्वरेणोत्पन्नः (मणिः) प्रशस्तो वैदिक नियमः (द्विषतः) शत्रून् (मे) मम (अधरान्) नीचान् (अकः) अकार्षीत्। कृतवान्। अन्यद्गतम् ॥
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