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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 25
    ऋषिः - बृहस्पतिः देवता - फालमणिः, वनस्पतिः छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः सूक्तम् - मणि बन्धन सूक्त
    1

    यमब॑ध्ना॒द्बृह॒स्पति॑र्दे॒वेभ्यो॒ असु॑रक्षितिम्। स मा॒यं म॒णिराग॑म॒न्मधो॑र्घृ॒तस्य॒ धार॑या की॒लाले॑न म॒णिः स॒ह ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यम् । अब॑ध्नात् । बृह॒स्पति॑: । दे॒वेभ्य॑: । असु॑रऽक्षितिम् । स: । मा॒ । अ॒यम् । म॒णि: । आ । अ॒ग॒म॒त् । मधो॑: । घृ॒तस्‍य॑ । धार॑या । की॒लाले॑न । म॒णि: । स॒ह ॥६.२५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यमबध्नाद्बृहस्पतिर्देवेभ्यो असुरक्षितिम्। स मायं मणिरागमन्मधोर्घृतस्य धारया कीलालेन मणिः सह ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यम् । अबध्नात् । बृहस्पति: । देवेभ्य: । असुरऽक्षितिम् । स: । मा । अयम् । मणि: । आ । अगमत् । मधो: । घृतस्‍य । धारया । कीलालेन । मणि: । सह ॥६.२५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 6; मन्त्र » 25
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    हिन्दी (3)

    विषय

    सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

    पदार्थ

    (यम्) जिस (असुरक्षितिम्) असुरनाशक.... म० २२। (सः अयम्) वह (मणिः) प्रशंसनीय (मणिः) मणि [वैदिक नियम] (मा) मुझे (मधोः) मधुर रस की और (घृतस्य) घृत की (धारया) धारा से (कीलालेन सह) अच्छे पके अन्न के सहित (आ अगमत्) प्राप्त हुआ है ॥२५॥

    भावार्थ

    मनुष्य धर्म से अन्न आदि पदार्थ लाकर निर्वाह करें ॥२५॥

    टिप्पणी

    २५−(मधोः) मधुररसस्य (घृतस्य) सर्पिषः (धारया) प्रवाहेण (कीलालेन) अ० ४।११।१०। कीलालमन्ननाम-निघ० २।७। सुसंस्कृतेनान्नेन। अन्यद् गतम् ॥

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    विषय

    वीहि-यव, मधु-घृत, कीलाल

    पदार्थ

    १. (ब्रहस्पतिः) = [मन्त्र २२ में द्रष्टव्य है] २. (सः अयं मणि:) = वह यह मणि (मा) = मुझे (गोभिः सह) = उत्तम गौवों के साथ, (अजा+अविभि:) = बकरियों व भेड़ों के साथ, (अन्नेन प्रजया सह) = अन्न व उत्तम सन्तान के साथ (आगमत्) = प्रास हो। २. यह मणि मुझे (व्रीहियवाभ्याम्) = चावल व जौ के साथ, (महसा) = तेजस्विता व (भूत्या सह) = ऐश्वर्य के साथ प्रास हो। इसी प्रकार यह मणि मुझे (मधो:) = शहद की तथा (घृतस्य) = घृत की (धारया) = धारा के साथ तथा (मणि:) = यह वीर्यमणि (कीलालेन सह) = [कीलालं अनं-नि० २.७] सुसंस्कृत अन्न के साथ मुझे प्राप्त हो।

    भावार्थ

    वीर्यमणि के रक्षण के लिए आवश्यक है कि हमारा जीवन कृत्रिमता से दूर होकर स्वाभाविक हो। हमारे घर गौवों, बकरियों, भेड़ोंवाले व अन्न से युक्त हों। इन्हीं घरों में उत्तम सन्तान सम्भव होती है। इन घरों में चावल व जौ भोग्यपदार्थ हों, तभी तेजस्विता व ऐश्वर्य का विकास होगा। इन घरों में मधु, घृत व सुसंस्कृत अन्न की कमी न हो। [मांस आदि भोजन व अन्य उत्तेजक पेय द्रव्य वीर्यरक्षण के अनुकूल नहीं है]।

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    भाषार्थ

    (बृहस्पतिः) बृहत्-ब्रह्माण्ड के पति परमेश्वर ने (देवेभ्यः) देवों के उत्पादन के लिये (असुरक्षितिम्) आसुरकर्मों का क्षय करने वाली (यम् मणिम्) जिस कामनामयी मणि को (अबध्नात्) बान्धा, (सः) वह (अयम् मणिः) यह कामनामयी मणि (मा) मुझे (आगमत्) प्राप्त हुई है, (मधोः घृतस्य धारया) शहद और घृत की धारा के साथ, (मणिः) वह मणि (कीलालेन सह) अन्न तथा अन्न के सारभूत अंश के साथ।

    टिप्पणी

    [कीलालेन=अन्नेन (अथर्व० ६।६९।१, सायण। कीलालम्= अन्नस्य सारभूतोंशः (अथर्व० ७।६५।५ सायण)। (व्याख्या मन्त्र २२,२३)]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Manibandhana

    Meaning

    That jewel-mani of divine power and potential, which Brhaspati bore and generated for the divinities for the evolution of existence and control of evil and negativities, has come to me with streams of honey and ghrta, the mani with the food of life.

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    Translation

    The blessing, destroyer of the life-destroyers, which the Lord supreme has bestowed upon the enlightened ones, that same blessing has come to me along with the stream of honey (madhu) and of purified butter (ghrta): the blessing with the sweet drink (kilāla).

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    Translation

    That citron plant which the master of Vedic speech bind on the men of learning and which is the destroyer of disease-like foes, has come to me with the stream of butter, honey and with the delicious drink.

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    Translation

    The demon-destroying Vedic Law, which God, the Lord of mighty worlds created for the victorious, hath come to me with streams of butter and of meath, with sweet delicious beverage.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २५−(मधोः) मधुररसस्य (घृतस्य) सर्पिषः (धारया) प्रवाहेण (कीलालेन) अ० ४।११।१०। कीलालमन्ननाम-निघ० २।७। सुसंस्कृतेनान्नेन। अन्यद् गतम् ॥

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