Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 6 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 32
    ऋषिः - बृहस्पतिः देवता - फालमणिः, वनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - मणि बन्धन सूक्त
    1

    यं दे॒वाः पि॒तरो॑ मनु॒ष्या उप॒जीव॑न्ति सर्व॒दा। स मा॒यमधि॑ रोहतु म॒णिः श्रैष्ठ्या॑य मूर्ध॒तः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यम् । दे॒वा: । पि॒तर॑: । म॒नु॒ष्या᳡: । उ॒प॒ऽजीव॑न्ति । स॒र्व॒दा । स: । मा॒ । अ॒यम् । अधि॑ । रो॒ह॒तु॒ । म॒णि: । श्रैष्ठ्या॑य । मू॒र्ध॒त: ॥६.३२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यं देवाः पितरो मनुष्या उपजीवन्ति सर्वदा। स मायमधि रोहतु मणिः श्रैष्ठ्याय मूर्धतः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यम् । देवा: । पितर: । मनुष्या: । उपऽजीवन्ति । सर्वदा । स: । मा । अयम् । अधि । रोहतु । मणि: । श्रैष्ठ्याय । मूर्धत: ॥६.३२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 6; मन्त्र » 32
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

    पदार्थ

    (देवाः) व्यवहार जाननेवाले, (पितरः) पालन करनेवाले और (मनुष्याः) मनन करनेवाले लोग (यम्) जिस [वैदिक नियम] के (सर्वदा) सर्वदा (उपजीवन्ति) आश्रय में रहते हैं, (सः अयम्) वही (मणिः) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] (मा) मुझको (मूर्धतः) शिर पर से (श्रैष्ठ्याय) प्रधान पद के लिये (अधि) ऊपर (रोहतु) चढ़ावे ॥३२॥

    भावार्थ

    सब उत्तम पुरुष परमेश्वर के आश्रय से संसार में उच्चपद प्राप्त करें ॥३२॥

    टिप्पणी

    ३२−(यम्) वैदिकनियमम् (देवाः) व्यवहारकुशलाः (पितरः) पालकाः (मनुष्याः) अ० ३।४।६। मननशीलाः (उपजीवन्ति) आश्रयन्ति। अन्यत् पूर्ववत्−म० ३१ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    देव, पितर, मनुष्य

    पदार्थ

    १. (यम) = जिस वीर्यमणि को (देवा:) = देववृत्ति के पुरुष-ब्राह्मण [ज्ञानी], (पितर:) = रक्षणात्मक कार्यों में प्रवृत्त क्षत्रिय, (मनुष्या:) = मननपूर्वक व्यवहारों को करनेवाले वैश्य (सर्वदा उप जीवन्ति) = सदा आश्रय करके जीते हैं। यह वीर्यमणि ही तो उन्हें उत्तम 'ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य बनाती है। (स:) = वह (अयं मणि:) = यह वीर्यमणि (मा मुर्धतः अधिरोहतु) = मेरे मस्तिष्क की और आरूढ़ हो इसकी ऊर्ध्वगति होकर यह मेरे मस्तिष्क में ज्ञानाग्नि का ईधन बने और इसप्रकार यह मेरी (श्रेष्ठयाय) = श्रेष्ठता के लिए हो।

    भावार्थ

    शरीर में सुरक्षित वीर्य ही हमें उत्तम 'देव, पितर व मनुष्य' बनाता है। यह मस्तिष्क की ओर आरूढ़ होकर ज्ञानाग्नि का ईधन बने और मुझे श्रेष्ठता प्रदान करे।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (यम्) जिस परमेश्वरमणि के आश्रय (देवाः, पितरः, मनुष्याः) देव, पितर और मनुष्य (सर्वदा) सब कालों में (उपजीवन्ति) आजीविका प्राप्त करते हैं या जीवित होते हैं, (सः मणिः) वह परमेश्वरमणि (मा) (मेरे (मूर्धतः) सिर पर (अधि रोहतु) आरोहण करे, (श्रैष्ठ्याय) मेरी श्रेष्ठता के लिये, ताकि मैं श्रेष्ठ बन जाऊं।

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Manibandhana

    Meaning

    May that divine jewel gift of power and potential, by which all divinities of nature and humanity, all human beings in general and all sustaining powers have their life and existence always, raise me to the top of excellence and the highest merit seat of life.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    What devah (enlightened learned beings) what pitrs (elders; and common men (manusyah) subsist upon, may I with that blessing rise to the highest eminence and top position.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    The citron plant which the men of science, men of practical knowledge and people always use for their maintenance be fastened on my head for winning surpassing power.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May the Vedic Law, on which the sages, protecting parents and ordinary mortals always depend, lift to a lofty sovereign position.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३२−(यम्) वैदिकनियमम् (देवाः) व्यवहारकुशलाः (पितरः) पालकाः (मनुष्याः) अ० ३।४।६। मननशीलाः (उपजीवन्ति) आश्रयन्ति। अन्यत् पूर्ववत्−म० ३१ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top