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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 28
    ऋषिः - बृहस्पतिः देवता - फालमणिः, वनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - मणि बन्धन सूक्त
    1

    यमब॑ध्ना॒द्बृह॒स्पति॑र्दे॒वेभ्यो॒ असु॑रक्षितिम्। स मा॒यं म॒णिराग॑म॒त्सर्वा॑भि॒र्भूति॑भिः स॒ह ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यम् । अब॑ध्नात् । बृह॒स्पति॑: । दे॒वेभ्य॑: । असु॑रऽक्षितिम् । स: । मा॒ । अ॒यम् । म॒णि: । आ । अ॒ग॒म॒त् । सर्वा॑भि: । भूति॑:ऽभि: । स॒ह ॥६.२८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यमबध्नाद्बृहस्पतिर्देवेभ्यो असुरक्षितिम्। स मायं मणिरागमत्सर्वाभिर्भूतिभिः सह ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यम् । अबध्नात् । बृहस्पति: । देवेभ्य: । असुरऽक्षितिम् । स: । मा । अयम् । मणि: । आ । अगमत् । सर्वाभि: । भूति:ऽभि: । सह ॥६.२८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 6; मन्त्र » 28
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

    पदार्थ

    (यम्) जिस (असुरक्षितिम्) असुरनाशक [वैदिक नियम] को (बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़े ब्रह्माण्डों के स्वामी परमेश्वर] ने (देवेभ्यः) विजयी लोगों के लिये (अबध्नात्) बाँधा है, (यः अयम्) वही (मणिः) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] (मा) मुझे (सर्वाभिः) सब प्रकार की (भूतिभिः सह) सम्पत्तियों सहित (आ अगमत्) प्राप्त हुआ है ॥२८॥

    भावार्थ

    मनुष्य परमात्मा के नियम पर चलकर सब प्रकार की सम्पत्तियाँ प्राप्त करें ॥२८॥

    टिप्पणी

    २८−(भूतिभिः) विभूतिभिः। सम्पत्तिभिः। सिद्धिभिः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    ऊर्जया-भूतिभिः

    पदार्थ

    १. (बृहस्पतिः) = [मन्त्र २२ में द्रष्टव्य है]२. (सः अयं मणि:) = वह यह मणि (मा) = मुझे (पयसा सह ऊर्जया) = शक्तियों के आप्यायन के साथ बल व प्राणशक्ति के साथ तथा (श्रिया सह) = शोभा के साथ (द्रविणेन) = कार्यसाधक धन के साथ (आगमत्) = प्राप्त हो। (त्विष्या सह तेजसा) = कान्तियुक्त तेज के साथ तथा (कीर्त्या सह) = कीर्ति [fame] के साथ यशसा सौन्दर्य [beauty, splendour] को लेकर, यह मणि मुझे प्राप्त हो तथा यह मणि (सर्वाभि: भूतिभिः सह) = सब ऐश्वयों के साथ मुझे प्राप्त हो।

    भावार्थ

    शरीर में सुरक्षित वीर्यमणि हमारे लिए 'शक्तियों के आप्यायन के साथ ऊर्जा को प्रास कराती है. श्री के साथ द्रविण देती है। कान्ति के साथ तेज तथा कीर्ति के साथ यश देनेवाली है। यह सब ऐश्वर्यों को प्राप्त कराती है।

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    भाषार्थ

    (बृहस्पतिः) बृहत्-ब्रह्माण्ड के पति परमेश्वर ने, (देवेभ्यः) देवों की उत्पत्ति के लिये, (असुरक्षितिम्) आसुर-कर्मों का क्षय करने वाली (यम्) जिस कामनामयी मणि को (अबध्नात) बान्धा, (सः) वह (अयम्, मणिः) यह मणि (मा) मुझे (आगमत्) प्राप्त हुई है, (सर्वाभिः) सब (भूतिभिः) सम्पत्तियों या विभूतियों के (सह) साथ।

    टिप्पणी

    [व्याख्या मन्त्र २२-२३ के अनुसार]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Manibandhana

    Meaning

    That jewel-mani of divine power and potential, which Brhaspati bore and generated for the divinities for the evolution of existence and control of evil and negativities, has come to me with all wealth and good fortunes of existence.

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    Translation

    The blessing, destroyer of the life-destroyers, which the Lord supreme has bestowed upon the enlightened ones, that same blessing has come to me along with all sorts of prosperity (bhūtibhih).

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    Translation

    That citron plant which the master of Vedic speech bind on the man of learning and which is the destroyer of disease-like foes, has come to me accompanied by all sorts of prosperities.

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    Translation

    The demon-destroying Vedic Law, which God, the Lord of mighty worlds created for the victorious hath come to me, combined with all prosperities.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २८−(भूतिभिः) विभूतिभिः। सम्पत्तिभिः। सिद्धिभिः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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