अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 13
ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त
देवता - त्रिष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
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न ते॑ ना॒थंय॒म्यत्रा॒हम॑स्मि॒ न ते॑ त॒नूं त॒न्वा॒ सम्प॑पृच्याम्। अ॒न्येन॒ मत्प्र॒मुदः॑कल्पयस्व॒ न ते॒ भ्राता॑ सुभगे वष्ट्ये॒तत् ॥
स्वर सहित पद पाठन । ते॒ । ना॒थम् । य॒मि॒ । अत्र॑ । अ॒हम् । अ॒स्मि॒ । न । ते॒ । त॒नूम् । त॒न्वा᳡ । सम् । प॒पृ॒च्या॒म् । अ॒न्येन॑ । मत् । प्र॒ऽमुद॑: । क॒ल्प॒य॒स्व॒ । न । ते॒ । भ्राता॑ । सु॒ऽभ॒गे॒ । व॒ष्टि॒ । ए॒तत् ॥१.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
न ते नाथंयम्यत्राहमस्मि न ते तनूं तन्वा सम्पपृच्याम्। अन्येन मत्प्रमुदःकल्पयस्व न ते भ्राता सुभगे वष्ट्येतत् ॥
स्वर रहित पद पाठन । ते । नाथम् । यमि । अत्र । अहम् । अस्मि । न । ते । तनूम् । तन्वा । सम् । पपृच्याम् । अन्येन । मत् । प्रऽमुद: । कल्पयस्व । न । ते । भ्राता । सुऽभगे । वष्टि । एतत् ॥१.१३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
भाई-बहिन के परस्पर विवाह के निषेध का उपदेश।
पदार्थ
(यमि) हे यमी ! [जोड़िया बहिन] (अहम्) मैं (अत्र) इस [विषय] में (ते) तेरा (नाथम्) आश्रय (न)नहीं (अस्मि) हूँ, (ते) तेरे (तनूम्) शरीर को (तन्वा) [अपने] शरीर से (न) नहीं (सम्) मिलकर (पपृच्याम्) छूऊँगा। (मत्) मुझ से (अन्येन) दूसरे [वर] के साथ (प्रमदः) आनन्दों को (कल्पयस्व) मना, (सुभगे) हे सुभगे ! [बड़े ऐश्वर्यवाली] (तेभ्राता) तेरा भाई (एतत्) यह (न) नहीं (वष्टि) चाहता है ॥१३॥
भावार्थ
पुरुष का वचन है। यहठीक है कि हम दोनों भाई-बहिन होकर विपत्ति में परस्पर सहाय करें, परन्तु धर्मछोड़कर बहिन से विवाह न करूँगा। मैं तुझ से कहता हूँ कि तू दूसरे योग्य वर सेविवाह कर ले ॥१३॥इस मन्त्र का उत्तरार्द्ध ऋग्वेद में है−१०।१०।१२ ॥
टिप्पणी
१३−(न)निषेधे (ते) तव (नाथम्) आश्रयः (यमि) म० ८। हे यमजे भगिनि (अत्र) अस्मिन् विषये (अहम्) भ्राता (अस्मि) भवामि (न) नहि (ते) तव (तनूम्) शरीरम् (तन्वा) स्वशरीरेण (सम्) संगत्य (पपृच्याम्) संपर्चयाम् (अन्येन) भिन्नेन वरेण (मत्) मत्तः (प्रमुदः) प्रहर्षान् (कल्पयस्व) समर्थय। साधय (न) निषेधे (ते) तव (भ्राता)सहोदरः (सुभगे) हे बह्वैश्वर्यवति (वष्टि) इच्छति (एतत्) इदं कर्म ॥
विषय
सौभाग्य सम्पन्न गृह
पदार्थ
१. हे (यमि) = संयत जीवनवाली बहिन! (अत्र) = यहाँ इस संसार में (अहम्) = मैं (ते नाथं न अस्मिन) = तेरा नाथ नहीं हूँ-तुझे पत्नीरूप में चाहनेवाला [नाथ याच्ञायाम्] नहीं हूँ। (ते तनूम्) = तेरे शरीर को (तन्व:) = अपने शरीर से न (संपपृच्याम्) = सम्पृक्त नहीं करता हूँ। २. तू (मत् अन्येन) = मुझसे भिन्न [विलक्षण] पुरुष के साथ (प्रमुदः कल्पयस्व)= प्रकृष्ट आनन्दों को साधनेवाली हो, अर्थात् असगोत्र पुरुष को पतिरूप में प्राप्त करके आनन्दयुक्त जीवनवाली हो। हे (सुभगे) = उत्तम भाग्यवाली! (ते भ्राता) = तेरा भाई (एतत्) = इस पतिरूप सम्बन्ध को न वष्टि नहीं चाहता है।
भावार्थ
हम सुदूर सम्बन्धों को स्थापित करते हुए, घरों को सुख-समृद्धि-सम्पन्न बनाएँ। फूलते-फलते हमारे घर आमोद-प्रमोद से भरपूर हों।
भाषार्थ
(यमि) हे यमी ! (अत्र) इस विवाह प्रस्ताव में (अहम्) मैं (ते) तेरा (नाथम्) स्वामी (न अस्मि) नहीं हूं। (तन्वा) अपनी तनू द्वारा (ते तनूम्) तेरी तनू के साथ (न सं पपृच्याम्) संपर्क नहीं करूंगा। (मत्) मुझ से (मन्येन) भिन्न पुरुष के साथ (प्रमुदः) मोद-प्रमोद (कल्पयस्व) कर। (सुभगे) हे सौभाग्यवती ! (ते) तेरा (भ्राता) भाई (एतत्) इस सम्पर्क को, या विवाह को (न वष्टि) नहीं चाहता।
इंग्लिश (4)
Subject
Victory, Freedom and Security
Meaning
Yama: O Yami, I am not your master, not your husband, so I would not embrace your body with mine. So think of enjoying yourself with someone other than me. O fortunate one, the twin friend of yours does not like this union.
Translation
I am not thy protector here, O Yami; I may not mingle my body with thy body; with another than me do thou prepare enjoyments: thy brother wants not that, O fortunate one.
Translation
N/A
Translation
O Yami, I am not thy lord, hence I will not clasp and press thee to my bosom. Search for another person, besides me for enjoyment! I your brother do not like to become your husband.
Footnote
See Rig, 10-10-12.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१३−(न)निषेधे (ते) तव (नाथम्) आश्रयः (यमि) म० ८। हे यमजे भगिनि (अत्र) अस्मिन् विषये (अहम्) भ्राता (अस्मि) भवामि (न) नहि (ते) तव (तनूम्) शरीरम् (तन्वा) स्वशरीरेण (सम्) संगत्य (पपृच्याम्) संपर्चयाम् (अन्येन) भिन्नेन वरेण (मत्) मत्तः (प्रमुदः) प्रहर्षान् (कल्पयस्व) समर्थय। साधय (न) निषेधे (ते) तव (भ्राता)सहोदरः (सुभगे) हे बह्वैश्वर्यवति (वष्टि) इच्छति (एतत्) इदं कर्म ॥
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