अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 7
ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त
देवता - त्रिष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
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को अ॒स्य वे॑दप्रथ॒मस्याह्नः॒ क ईं॑ ददर्श॒ क इ॒ह प्र वो॑चत्। बृ॒हन्मि॒त्रस्य॒ वरु॑णस्य॒धाम॒ कदु॑ ब्रव आहनो॒ वीच्या॒ नॄन् ॥
स्वर सहित पद पाठक: । अ॒स्य । वे॒द॒ । प्र॒थ॒मस्य॑ । अह्न॑: । क: । ई॒म् । द॒द॒र्श॒ । क: । इ॒ह । प्र । वो॒च॒त् । बृ॒हत् । मि॒त्रस्य॑ । वरु॑णस्य । धाम॑ । कत् । ऊं॒ इति॑ । ब्र॒व॒: । आ॒ह॒न॒:। वीच्या॑ । नॄन् ॥१.७॥
स्वर रहित मन्त्र
को अस्य वेदप्रथमस्याह्नः क ईं ददर्श क इह प्र वोचत्। बृहन्मित्रस्य वरुणस्यधाम कदु ब्रव आहनो वीच्या नॄन् ॥
स्वर रहित पद पाठक: । अस्य । वेद । प्रथमस्य । अह्न: । क: । ईम् । ददर्श । क: । इह । प्र । वोचत् । बृहत् । मित्रस्य । वरुणस्य । धाम । कत् । ऊं इति । ब्रव: । आहन:। वीच्या । नॄन् ॥१.७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (2)
विषय
भाई-बहिन के परस्पर विवाह के निषेध का उपदेश।
पदार्थ
(कः) कौन [पुरुष] (अस्य) इस [जगत्] के (प्रथमस्य) पहिले (अह्नः) दिन को (वेद) जानता है (कः) किसने (ईम्) इस [दिन] को (ददर्श) देखा है, (कः) कौन (इह) इस [विषय] में (प्र वोचत्)बोले। (मित्रस्य) सर्वप्रेरक (वरुणस्य) श्रेष्ठ परमेश्वर का (बृहत्) बड़ा (धाम)धाम [धारणसामर्थ्य वा नियम] है, (आहनः) हे चोट लगानेवाली ! (कत् उ) कैसे (वीच्या) छल के साथ (नॄन्) नरों [नेताओं] से (ब्रवः) तू बोल सके ॥७॥
भावार्थ
यह भी पुरुष का वचनहै। तू कहती है कि सूर्य और पृथिवी प्राकृतिक पदार्थों में भी पति-पत्नी भाव है, यह ठीक नहीं। परमेश्वर के नियम मनुष्य नहीं समझ सकता, जैसे सूर्य और पृथिवी मेंआकर्षण धारण आदि गुण हैं, जिनके कारण उनके बीच बारंबार आपस में वृष्टि देने औरलेने का सामर्थ्य है। तू हमें मत ठग ॥७॥मन्त्र ७-१२ कुछ अभेद वा भेद से ऋग्वेदमें हैं−१०।१०।६-११ ॥
टिप्पणी
७−(कः) प्रश्ने। कः पुरुषः (अस्य) जगतः (वेद) जानाति (प्रथमस्य) प्रथमम् (अह्नः) अहः। दिनम् (कः) (ईम्) इदं दिनम् (ददर्श) दृष्टवान् (कः) (इह) अस्मिन् विषये (प्र वोचत्) प्रकथयेत् (बृहत्) महत् (मित्रस्य) डुमिञ्प्रक्षेपणे−क्त्र। सर्वप्रेरकस्य (वरुणस्य) श्रेष्ठस्य परमेश्वरस्य (धाम)धारणसामर्थ्यम्। प्रभावः (कत्) कथम् (उ) पादपूरणः (ब्रवः) ब्रूयाः। ब्रवीषि (आहनः) आङ्+हन हिंसागत्योः-असुन्। हे आहननशीले। क्लेशकारिणि (वीच्या) व्यचव्याजीकरणे-कि प्रत्ययः। छान्दसो दीर्घः। छलेन (नॄन्) नयतेर्डिच्च। उ० २।१००।णीञ् प्रापणे-ऋ, स च डित्। नेतॄन् पुरुषान् ॥
भाषार्थ
यमी कहती है यम को कि- (अस्य) इस जगत् के (प्रथमस्य अह्नः) प्रथम दिन को (कः वेद) कौन जानता है? (ईम्) इस प्रथम दिन को (कः ददर्श) किस ने कभी देखा है ? (इह) इस जीवन में (कः) किस ने इस तत्त्व का (प्रवोचत्) प्रवचन किया है ? (मित्रस्य वरुणस्य) सब के मित्र और साथ ही सब को फन्दे से घेरनेवाले का (बृहत् धाम) बड़ा तेज हैं, (कद् उ ब्रवः) यह तू कैसे कहता है ? (आहनः) हे हृदय पर चोट पहुंचानेवाले यम ! मैं तो (नॄन्) पुरुषों को (वीच्या) धोखेबाज (ब्रवे) कहती हूं।
टिप्पणी
[वीच्या = वीच्यान्। व्यच् व्याजीकरणे। यमी कहती है कि तू धर्म के बारे में बड़ी-बड़ी बातें करता है। देख, जगत् के प्रथम दिन तक को तो कोई जानता नहीं, तो धर्म के तत्त्व को कौन जान सकता है ? तू परमेश्वर को सब का मित्र कहता है, परन्तु वरुणरूप में उसने सब को अपने फन्दों में क्यों जकड़ रखा है ? (मन्त्रसंख्या २,९)।]
इंग्लिश (4)
Subject
Victory, Freedom and Security
Meaning
Who knows of that complementarity of man and woman in conjugality created on the first day of creation by Savita-Tvashta? Who saw that? And who would speak of that here now? Only he knows who created that. As of now, who witnessed it? Who can vouchsafe it now? Vast is the distance between east, the house of Mitra, sun and the day, and west, the house of Varuna, presiding deity of the night. (We cannot meet). But O wanton dear, how do you so deceptively speak of men?
Translation
Who knows of that first day ? Who saw it ? Who shall proclaim it here ? Great is the ordinance of Mitra, of Varuna; why, O lustful one, wilt thou speak to men with deceit.
Translation
N/A
Translation
Who knows that earliest day whereof thou speakest? Who hath beheld it? Who can here declare it? Great is the law of God, the Urger and Excellent. What, wanton, wilt thou say to men to tempt them?
Footnote
Yama speaks. Thy argument of our being destined as husband and wife in the womb, is absolutely wrong. None knows that earliest day of conception, none has seen it. None can speak of it. Don’t tempt men thou licentious woman by such false arguments. See Rig, 10-10-6.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
७−(कः) प्रश्ने। कः पुरुषः (अस्य) जगतः (वेद) जानाति (प्रथमस्य) प्रथमम् (अह्नः) अहः। दिनम् (कः) (ईम्) इदं दिनम् (ददर्श) दृष्टवान् (कः) (इह) अस्मिन् विषये (प्र वोचत्) प्रकथयेत् (बृहत्) महत् (मित्रस्य) डुमिञ्प्रक्षेपणे−क्त्र। सर्वप्रेरकस्य (वरुणस्य) श्रेष्ठस्य परमेश्वरस्य (धाम)धारणसामर्थ्यम्। प्रभावः (कत्) कथम् (उ) पादपूरणः (ब्रवः) ब्रूयाः। ब्रवीषि (आहनः) आङ्+हन हिंसागत्योः-असुन्। हे आहननशीले। क्लेशकारिणि (वीच्या) व्यचव्याजीकरणे-कि प्रत्ययः। छान्दसो दीर्घः। छलेन (नॄन्) नयतेर्डिच्च। उ० २।१००।णीञ् प्रापणे-ऋ, स च डित्। नेतॄन् पुरुषान् ॥
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