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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 50
    ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त देवता - भुरिक् त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
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    य॒मो नो॑ गा॒तुंप्र॑थ॒मो वि॑वेद॒ नैषा गव्यू॑ति॒रप॑भर्त॒वा उ॑। यत्रा॑ नः॒ पूर्वे॑ पि॒तरः॒परे॑ता ए॒ना ज॑ज्ञा॒नाः प॒थ्या॒ अनु॒ स्वाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य॒म: । न॒: । गा॒तुम् । प्र॒थ॒म: । वि॒वे॒द॒ । न । ए॒षा । गव्यू॑ति: । अप॑ऽभ॒र्त॒वै । ऊं॒ इति॑ । यत्र॑ । न॒: । पूर्वे॑ । पि॒तर॑: । परा॑ऽइता: । ए॒ना । ज॒ज्ञा॒ना: । प॒थ्या᳡:। अनु॑ । स्वा: ॥१.५०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यमो नो गातुंप्रथमो विवेद नैषा गव्यूतिरपभर्तवा उ। यत्रा नः पूर्वे पितरःपरेता एना जज्ञानाः पथ्या अनु स्वाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यम: । न: । गातुम् । प्रथम: । विवेद । न । एषा । गव्यूति: । अपऽभर्तवै । ऊं इति । यत्र । न: । पूर्वे । पितर: । पराऽइता: । एना । जज्ञाना: । पथ्या:। अनु । स्वा: ॥१.५०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 1; मन्त्र » 50
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    परमात्मा की शक्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (प्रथमः) सबसे पहिलेवर्तमान (यमः) यम [न्यायकारी परमात्मा] ने (नः) हमारे लिये (गातुम्) मार्ग (विवेद) जाना, (एषा) यह (गव्यूतिः) मार्ग (उ) कभी (अपभर्तवै) हटा धरने योग्य (न)नहीं है। (यत्र) जिस [मार्ग] में (नः) हमारे (पूर्वे) पहिले (पितरः) पितर [पालनकरनेवाले बड़े लोग] (परेताः) पराक्रम से चले हैं, (एना) उसी से (जज्ञानाः)उत्पन्न हुए [प्राणी] (स्वाः) अपनी-अपनी (पथ्याः अनु) सड़कों पर [चलें] ॥५०॥

    भावार्थ

    परमात्मा ने पहिले सेपहिले सबके लिये वेदमार्ग खोल दिया है, जिस प्रकार हमारे पूर्वजों ने उस मार्गपर चलकर यश पाया है, उसी वेदमार्ग पर चलकर सब मनुष्य उन्नति करें ॥५०॥

    टिप्पणी

    ५०−(यमः)न्यायकारी परमेश्वरः (नः) अस्मभ्यम् (गातुम्) मार्गम् (प्रथमः) सर्वादिमः (विवेद) विद ज्ञाने-लिट्। ज्ञातवान् (न) निषेधे (एषा) पूर्वस्थापिता (गव्यूतिः)पद्धतिः (अपभर्तवै) तुमर्थे सेसेनसे०। पा० ३।४।९। इति तवै। अपभर्त्तुंदूरीकर्तुम् (उ) निश्चयेन (यत्र) यस्मिन् मार्गे (नः) अस्माकम् (पूर्वे)पूर्वजाः (पितरः) पालका महापुरुषाः (परेताः) पराक्रमेण गताः (एना) अनेन (जज्ञानाः) जाताः प्राणिनः (पथ्याः) पथे राजमार्गाय हितान् महामार्गान् (अनु)प्रति (स्वाः) स्वीयाः ॥

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    विषय

    यमनिर्दिष्ट मार्ग पर चलना

    पदार्थ

    १. वे (प्रथमः यम:) = [प्रथ विस्तारे] सम्पूर्ण जगत् में विस्तृत नियामक प्रभु (नः) = हमारे लिए (गातं विवेद) = मार्ग का ज्ञान देते हैं। (उ) = निश्चय से (एषा गव्यूति:) = यह मार्ग (अपभर्तवा न) = अपहरण के लिए नहीं होता, अर्थात् इस मार्ग पर चलने से हम इस संसार में विषयों से आकृष्ट होकर पथभ्रष्ट नहीं हो जाते। २. यह वह मार्ग है (यत्र) = जिसपर (न:) = हमारे (पूर्वे पितरः) = अपना पूरण करनेवाले-अपनी न्यूनताओं को दूर करनेवाले, रक्षणात्मक कार्यों में प्रवृत्त पितर (परेता:) = चले हैं। इस मार्ग पर चलने से ही तो वे अपना पूरण कर पाये हैं। एना-इस मार्ग पर चलने के द्वारा (जज्ञाना:) = अपनी शक्तियों का प्रादुर्भाव व विकास करनेवाले लोग ही (पथ्या:) = उत्तम मार्ग पर चलनेवाले होते हैं और (अनुस्वा:) = उस प्रभु के अनुकूल व प्रिय होते हैं।

    भावार्थ

    प्रभु से उपदिष्ट मार्ग पर ही चलना चाहिए। यही मार्ग हमारे पूरण व विकास के लिए होता है।

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    भाषार्थ

    (प्रथमः) अनादि सर्वश्रेष्ठ परमेश्वर ने (नः) हमें (गातुम्) जीवन-मार्ग, वेदों द्वारा (विवेद) विवेकपूर्वक दर्शाया है। (एषा) यह (गव्यूतिः) जीवनमार्ग (उ) निश्चय ही (अपभर्तवे) अपभरण अर्थात् अपहरण के लिये, त्याग के लिये (न) नहीं है। (यत्र) जिस मार्ग में (नः) हमारे (पूर्व) पूर्व के (पितरः) पिता पितामह तथा प्रपितामह (परेताः) चले हैं, अर्थात् वानप्रस्थ-संन्यास धारण कर दूर-दूर चले गये हैं, (जज्ञानाः) उन से उत्पन्न ज्ञानी हम गृहस्थी भी (एनाः) इन (स्वाः) अपनाएं (पथ्याः) हितकर मार्गों पर, (अनु) उनके पश्चात्, निरन्तर चलते रहें।

    टिप्पणी

    [अप + भृ = अप + हृ। हृग्रहोः भः छन्दसि। परेताः= "परा + इताः" शब्द "मृत्यु" अर्थ का वाचक नहीं। सूर्या सूक्त के विवाह-प्रकरण में नव-विवाहित वधू को कहा है कि- 'एवा त्वं सम्राज्ञ्येधि पत्युरस्तं परेत्य" (अथर्व० १४। १।४३)। में "परेत्य" शब्द का अर्थ है "जाकर", न कि मर कर। इस सम्बन्ध में अथर्ववेद के निम्ननिर्दिष्ट मन्त्र द्रष्टव्य हैं। ५।२२।८; ४।३२।५; २।२६।१; १२।२।२९।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    Yama, lord of ultimate justice and dispensation, first carved, manifested and proclaimed the universal way of life according to the laws of nature. And that is the way and the law of life in existence which is neither challengeable nor changeable. That is the path by which our ancestors went forward in life, and that same is the path by which others who come later, know and go according to their own choice for themselves.

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    Translation

    Yama first found for us a track; that is not a pasture to be borne away; where our former Fathers went forth, there (go) those born (of them), along their own roads.

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    Translation

    The Just God knew in the beginning our path. None can avoid it. Our ancestors have gloriously travelled it, and all created beings will travel it according to their Karmas (deeds).

    Footnote

    God knows from the beginning that everybody has to die. None can escape Death, Our ancestors have died. All created beings will die and be reborn according to their good or bad. deeds. See Rig, 10-14-2.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५०−(यमः)न्यायकारी परमेश्वरः (नः) अस्मभ्यम् (गातुम्) मार्गम् (प्रथमः) सर्वादिमः (विवेद) विद ज्ञाने-लिट्। ज्ञातवान् (न) निषेधे (एषा) पूर्वस्थापिता (गव्यूतिः)पद्धतिः (अपभर्तवै) तुमर्थे सेसेनसे०। पा० ३।४।९। इति तवै। अपभर्त्तुंदूरीकर्तुम् (उ) निश्चयेन (यत्र) यस्मिन् मार्गे (नः) अस्माकम् (पूर्वे)पूर्वजाः (पितरः) पालका महापुरुषाः (परेताः) पराक्रमेण गताः (एना) अनेन (जज्ञानाः) जाताः प्राणिनः (पथ्याः) पथे राजमार्गाय हितान् महामार्गान् (अनु)प्रति (स्वाः) स्वीयाः ॥

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