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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 2
    ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त देवता - त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
    5

    न ते॒ सखा॑स॒ख्यं व॑ष्ट्ये॒तत्सल॑क्ष्मा॒ यद्विषु॑रूपा॒ भव॑ति। म॒हस्पु॒त्रासो॒ असु॑रस्यवी॒रा दि॒वो ध॒र्तार॑ उर्वि॒या परि॑ ख्यन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न । ते॒ । सखा॑ । स॒ख्यम् । व॒ष्टि॒ । ए॒तत् । सऽल॑क्ष्मा । य॒त् । विषु॑ऽरूपा । भवा॑ति । म॒ह: । पु॒त्रास॑: । असु॑रस्य । वी॒रा: । दि॒व: । ध॒र्तार॑: । उ॒र्वि॒या । परि॑ । ख्य॒न् ॥१.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    न ते सखासख्यं वष्ट्येतत्सलक्ष्मा यद्विषुरूपा भवति। महस्पुत्रासो असुरस्यवीरा दिवो धर्तार उर्विया परि ख्यन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    न । ते । सखा । सख्यम् । वष्टि । एतत् । सऽलक्ष्मा । यत् । विषुऽरूपा । भवाति । मह: । पुत्रास: । असुरस्य । वीरा: । दिव: । धर्तार: । उर्विया । परि । ख्यन् ॥१.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    भाई-बहिन के परस्पर विवाह के निषेध का उपदेश।

    पदार्थ

    (सखा) [यह] प्रेमी (ते) तेरी (एतत्) यह (सख्यम्) प्रीति (न) नहीं (वष्टि) चाहता है−(यत्) कि (सलक्ष्मा) समान [धार्मिक] लक्षणवाली [आप] (विषुरूपा) नाना स्वभाववाली [चञ्चलअधार्मिक] (भवाति) हो जावें। (महः) महान् (असुरस्य) बुद्धिमान् पुरुष के (दिवः)व्यवहार के (धर्तारः) धारण करनेवाले, (वीराः) वीर (पुत्रासः) पुत्र (उर्विया)भूमि पर (परि ख्यन्) विख्यात हुए हैं ॥२॥

    भावार्थ

    यह मन्त्र पुरुष काउत्तर है। हे स्त्री ! तू जो मुझ से पुत्र की कामना करती है सो उचित नहीं, हमदोनों धर्मात्मा होकर अधर्म न करें−क्योंकि बड़े कुल में उत्पन्न व्यवहारकुशलधर्मात्मा वीर ही संसार में कीर्तिमान् होते हैं ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(न) निषेधे (ते) तव (सखा)प्रियः (सख्यम्) प्रीतिम् (वष्टि) कामयते (एतत्) (सलक्ष्मा) समानलक्षणा।धर्मशीला (यत्) यतः (विषुरूपा) नानास्वभावा। चञ्चला। अधार्मिका (भवाति) भवेत् (महः) महतः (पुत्रासः) पुत्राः (असुरस्य) असुः प्रज्ञानाम-निघ० ३।९, रोमत्वर्थीयः। प्रज्ञावतः पुरुषस्य (वीराः) विक्रान्ताः (दिवः) व्यवहारस्य (धर्तारः) धारकाः (उर्विया) इयाडियाजीकाराणामुपसंख्यानम्। वा० पा० ७।१।३९।उर्वी-डियाच्। उर्व्यां भूमौ (परि ख्यन्) ख्या प्रकथने, प्रसिद्धौ-लुङ्, अडभावः।विख्याता अभूवन् ॥

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    विषय

    विवाह-सम्बन्ध समीप में नहीं

    पदार्थ

    १. यमी को अम कहता है कि सन्तान प्राप्ति के लिए पुरुष और स्त्री का मित्रभाव ठीक ही है, परन्तु (ते सखा) = सहोत्पन्न होने से तेरा मित्र मैं (एतत् सख्यम्) = इस पति-पत्नीरूप मित्रता को (न वष्टि) = नहीं चाहता, (यत्) = चूँकि (सलक्ष्मा) = समान लक्षणोंवाली कन्या, सन्तानोत्पत्ति के लिए (विषुरूपा) = बहुत ही विषम रूपवाली होती है। सन्तानोत्पत्ति के लिए सलक्ष्मत्व हानिकर है। ऐसे सम्बन्धों में सन्तान विरूप व अल्पजीवी उत्पन्न होती है। २. (महस्पुत्रास:) = तेजस्विता के द्वारा अपने को पवित्र व रक्षित करनेवाले [पुनाति त्रायते] (असरस्य वीरा:) = उस प्राणशक्ति के देनेवाले प्रभु के वीर पुत्र [असून् राति] (दिवः धर्तार:) = प्रकाश व ज्ञान का धारण करनेवाले व्यक्ति इस समीप सम्बन्ध का (उर्वियापरिख्यन्) = अत्यन्त ही निषेध करते हैं। समीप सम्बन्धों में [क] सन्तान तेजस्वी नहीं होती, क्योंकि ये सम्बन्ध भोगवृत्ति को प्रधानता देने पर ही होते हैं। [ख] हम उस प्रभु के पुत्र न रहकर प्रकृति के पुत्र बन जाते हैं और सन्तानक्षीण प्राणशक्तिवाले होते हैं। [ग] इन सम्बन्धों के होने पर ज्ञान भी क्षीण हो जाता है।

    भावार्थ

    समीप-सम्बन्ध विकृत सन्तानों को जन्म देते हैं। इनके कारण सन्तान निस्तेज, विलासमय व क्षीण ज्ञानवाले होते हैं।

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    भाषार्थ

    (ते) तेरा (सखा) समान-ख्यातिवाला, तेरे (एतत्) इस (सख्यम्) सख्य को, (न) नहीं (वष्टि) चाहता; (यद्) क्योंकि (सलक्ष्मा) तू समान-लक्षणोंवाली है। (विषुरूपा) विवाह के लिये वधू विभिन्न विषम लक्षणोंवाली (भवति) होनी चाहिये। (महः असुरस्य) महाप्रज्ञ और महाबली परमेश्वर के (वीराः पुत्राः) वीर पुत्र, (दिवः धर्तारः) जो कि द्युलोक का भी धारण कर रहे हैं, वे (उर्विया) पृथिवी का भी (परि ख्यन्) पूर्णतया निरीक्षण कर रहे हैं।

    टिप्पणी

    [यम कहता है यमी से-रजवीर्य की दृष्टि से हम दोनों समान ख्यातिवाले हैं, चूंकि हम दोनों एक ही माता-पिता की जोड़िया सन्तानें हैं। इसलिये रज-वीर्य के गुणों की दृष्टि से समान हैं। तू विवाह का प्रस्ताव करती हुई, समान लक्षणोंवाली होती हुई भी, विभिन्न लक्षणोंवालीसी अपने आप को दर्शा रही है। समान रज-वीर्यवालों का परस्पर विवाह "Eugenic-science" अर्थात् उत्पत्तिशास्त्र के सिद्धान्तों के विरुद्ध है। ओषधियों, वृक्षों, वनस्पतियों में भी सजातीय, परन्तु विलक्षण गुणोंवाली शाखाओं की कलमें लगाई जाती हैं, तभी इन पर फूल तथा फल उत्कृष्ट गुणोंवाले होते हैं। वैदिक धर्म की दृष्टि से भी, विवाह में माता की सात पीढ़ियां, तथा पिता के गोत्र परित्याज्य कहे गये हैं। देख! हम कहीं छिपकर भी परस्पर विवाह नहीं कर सकते। क्योंकि सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान् परमेश्वर के पुत्र अर्थात् नियम, जो कि द्युलोक के अनगिनत तारागणों का धारण कर रहे हैं, वे ही पृथिवी का भी पूर्णतया निरीक्षण कर रहे हैं। वे नियम वीर हैं, हम उन्हें परास्त नहीं कर सकते। वे सुदृढ़ और कठोर हैं। उर्विया = उर्वी + डियाच्। असुर = असु + र (वाला)। असु=प्रज्ञा (निघं० ३।९); असु = प्राण (निरु० ३।२।८)। पुत्रासः वीराः=इन सुदृढ़ नियमों को "पुत्र" कहा हैं, जो कि सब को "पुनीत" करते, और सब का "त्राण" करते हैं। नियमों में ढीलापन बिगाड़ देता है। अथर्ववेद में इन नियमों को "दिव्यस्पशः" अर्थात् दिव्यगुप्तचर भी कहा है, जो कि इस जगत् में विचर रहे हैं। जो मानों हजारों आंखोंवाले हैं जो कि भूमि तथा भूमि से परे तक को भी देख रहे - हैं। यथा-"दिव स्पशः प्र चरन्तीदमस्य सहस्राक्षा अति पश्यन्ति भूमिम्" (४।१६।४)।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    Yama: Your friend accepts not your proposal of friendship, love and union since, for the purpose of conjugality, you are not homogeneous with him in character and versality of merit and maturity, in fact you are the contrary. Indeed the brave progeny of the great lord of life and energy of nature refulgent with light and wisdom who maintain the light of heaven along with the earth take exception to such a union, in fact they watch, wonder and rule out such a proposal for union.

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    Translation

    Thy friend wants not that friendship of thine, that she of like sign should become of diverse form; the sons of the great Asura, heroes, sustainers of the sky; look widely about.

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    Translation

    The husband who is unable for procreation and desires to hallow her for Niyoga says: -- O wife, your husband who is your best companion does not like this your companionship (so far as it is concerned with co-habitation) as the wife possessing the procreative power similar to her husband (who is not impotent) has the various progeny (i. e. husband being impotent or wife being barren emergence of children is not possible). The strong children of the man of vigor are seen to be the supporter of light andgre at feats.

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    Translation

    Thy friend loves not the friendship which considers her who is near in relation as a stranger. The brave sons, behaving like a wise person, have condemned such an alliance on the earth.

    Footnote

    Yama replies, I cannot marry you, you belong to the same family, to which I belong. Marriage can take place between man and woman belonging to different gotras i.e., families. All learned persons in the world condemn the marriage of brother and sister. See Rig, 10-10-2.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(न) निषेधे (ते) तव (सखा)प्रियः (सख्यम्) प्रीतिम् (वष्टि) कामयते (एतत्) (सलक्ष्मा) समानलक्षणा।धर्मशीला (यत्) यतः (विषुरूपा) नानास्वभावा। चञ्चला। अधार्मिका (भवाति) भवेत् (महः) महतः (पुत्रासः) पुत्राः (असुरस्य) असुः प्रज्ञानाम-निघ० ३।९, रोमत्वर्थीयः। प्रज्ञावतः पुरुषस्य (वीराः) विक्रान्ताः (दिवः) व्यवहारस्य (धर्तारः) धारकाः (उर्विया) इयाडियाजीकाराणामुपसंख्यानम्। वा० पा० ७।१।३९।उर्वी-डियाच्। उर्व्यां भूमौ (परि ख्यन्) ख्या प्रकथने, प्रसिद्धौ-लुङ्, अडभावः।विख्याता अभूवन् ॥

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