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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 41
    ऋषिः - सरस्वती देवता - त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
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    सर॑स्वतींदेव॒यन्तो॑ हवन्ते॒ सर॑स्वतीमध्व॒रे ता॒यमा॑ने। सर॑स्वतीं सु॒कृतो॑ हवन्ते॒सर॑स्वती दा॒शुषे॒ वार्यं॑ दात् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सर॑स्वतीम् । दे॒व॒ऽयन्त॑: । ह॒व॒न्ते॒ । सर॑स्वतीम् । अ॒घ्व॒रे । ता॒यमा॑ने । सर॑स्वतीम् । सु॒ऽकृत॑: । ह॒व॒न्ते॒ । सर॑स्वती । दा॒शुषे॑ । वार्य॑म् । दा॒त् ॥१.४१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सरस्वतींदेवयन्तो हवन्ते सरस्वतीमध्वरे तायमाने। सरस्वतीं सुकृतो हवन्तेसरस्वती दाशुषे वार्यं दात् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सरस्वतीम् । देवऽयन्त: । हवन्ते । सरस्वतीम् । अघ्वरे । तायमाने । सरस्वतीम् । सुऽकृत: । हवन्ते । सरस्वती । दाशुषे । वार्यम् । दात् ॥१.४१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 1; मन्त्र » 41
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    हिन्दी (3)

    विषय

    सरस्वती के आवाहन का उपदेश।

    पदार्थ

    (सरस्वतीम्) सरस्वती [विज्ञानवती वेदविद्या] को, (सरस्वतीम्) उसी सरस्वती को (देवयन्तः) दिव्यगुणोंको चाहनेवाले पुरुष (तायमाने) विस्तृत होते हुए (अध्वरे) हिंसारहित व्यवहारमें (हवन्ते) बुलाते हैं। (सरस्वतीम्) सरस्वती को (सुकृतः) सुकृती लोग (हवन्ते)बुलाते हैं, (सरस्वती) सरस्वती (दाशुषे) अपने भक्त को (वार्यम्) श्रेष्ठ पदार्थ (दात्) देती है ॥४१॥

    भावार्थ

    विज्ञानी लोग परिश्रमके साथ आदरपूर्वक वेदविद्या का अभ्यास करके पुण्य कर्म करते और मोक्ष आदि इष्टपदार्थ पाते हैं ॥४१॥ मन्त्र ४१-४३। कुछ भेद से ऋग्वेद में हैं १०।१७।७-९ ॥ इससूक्त का मिलान करो-अ० ७।६८।१-३ ॥ यह तीनों मन्त्र आगे भी हैं अ० १८।४।४५-४७॥

    टिप्पणी

    ४१−(सरस्वतीम्) विज्ञानवतीं वेदविद्याम् (देवयन्तः) देव-क्यच्। देवान्श्रेष्ठगुणान् आत्मन इच्छन्तः (हवन्ते) आह्वयन्ति (सरस्वतीम्) (अध्वरे)हिंसारहिते व्यवहारे (तायमाने) विस्तार्यमाणे (सरस्वतीम्) (सुकृतः) पुण्यकर्माणः (हवन्ते) (सरस्वती) (दाशुषे) आत्मानं दत्तवते स्वभक्ताय (वार्यम्) वरणीयंस्वीकरणीयं मोक्षादिपदार्थम् (दात्) अदात्। ददाति ॥

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    विषय

    सरस्वती की आराधना

    पदार्थ

    १. (देवयन्तः) = दिव्यगुणों की प्रासि की कामनावाले और उनके द्वारा उस महान् देव प्रभु की प्राप्ति की कामनावाले पुरुष (सरस्वतीं हवन्ते) = विद्या की अधिष्ठात्री देवता को पुकारते हैं, अर्थात् ज्ञान-प्राप्ति के लिए यत्नशील होते हैं। यह ज्ञान ही उनके जीवन को पवित्र व दिव्यगुण सम्पन्न बनाकर उन्हें प्रभु-प्राप्ति के योग्य बनाएगा। २. (तायमाने अध्वरे) = विस्तृत किये जाते हुए यज्ञ के निमित्त (सरस्वतीम्) = सरस्वती को ही पुकारते हैं। वस्तुत: यह ज्ञान ही हमारे जीवनों को यज्ञमय बनाता है। सब (सुकृत:) = शुभ कर्मों को करनेवाले लोग इस (सरस्वतीं हवन्ते) = सरस्वती को पुकारते हैं। यह ज्ञान की आराधना ही तो उन्हें सब दुर्व्यसनों से बचाकर शुभ कर्मों में प्रवृत्त करती है। ३. वस्तुत: (सरस्वती) = यह ज्ञान की अधिष्ठात्री देवता (दाशुषे) = दाश्वान् के लिए आत्मार्पण करनेवाले व्यक्ति के लिए सब (वार्यम्) = वरणीय वस्तुओं को (दात्) = देती है। ज्ञान की आराधना हमारे जीवन में सब शुभों को प्राप्त कराती है।

    भावार्थ

    सरस्वती का आराधन, अर्थात् ज्ञानप्राप्ति की लगन हमें दिव्यगुणसम्पन्न बनाकर प्रभु-प्राप्ति के योग्य बनाती है [देवयन्तः]। यह हमें यज्ञशील बनाती है [अध्वरे] पुण्य कर्मों में प्रवृत्त करती है [सुकृतः] और सब शुभों को प्राप्त कराती है [वार्य दात्]।

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    भाषार्थ

    (देवयन्तः) परमेश्वर देव की कामनावाले (सरस्वतीम्) ज्ञान प्रदायिनी वेदवाणियों का (हवन्ते) उच्चारण वा जप करते हैं। (अध्वरे) अहिंसा-यज्ञों के (तायमाने) किये जाते (सरस्वतीम्) याज्ञिक लोग ज्ञानप्रदा वेदवाणी का उच्चारण करते हैं। (सुकृतः) सुकर्मों के करनेवाले (सरस्वतीम्) सुकर्मों के ज्ञान के लिये ज्ञानप्रदा वेदवाणी का (हवन्ते) उच्चारण-पूर्वक स्वाध्याय करते हैं। (सरस्वती) ज्ञानमयी वेदवाणी (दाशुषे) ब्रह्मदान करनेवाले के लिये, (वार्यम्) उसे अभिलषित फल (दात्) देती है।

    टिप्पणी

    [सरस्वती = सरः ज्ञानम् (उणा० ४।१९० दयानन्द भाष्य) + वती। सरस्वती अर्थात् वेदवाणी के सम्बन्ध में निरुक्तकार यास्काचार्य लिखते हैं कि- "अर्थ वाचः पुष्पफलमाह। याज्ञदैवते पुष्पफले, देवताध्यात्मे वा (१।६।२०)। अर्थात् वेदवाणी के फल तीन हैं- यज्ञप्रक्रिया का ज्ञान, तथा अग्नि वायु सूर्य सोम आदि दिव्यतत्त्वों का ज्ञान, तथा अध्यात्मतत्त्वों का ज्ञान, अर्थात् शरीर, इन्द्रियां, मन, बुद्धि, जीवात्मा, परमात्मा, जन्म-मरण, मोक्ष तथा कर्मव्यवस्था और परमेश्वर के स्वरूप आदि का ज्ञान। सरस्वती = वाक् (निघं० १।११); तथा (उणा० ४।१९०)।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    People dedicated to Divinity invoke and worship Sarasvati, Mother Voice of divine Omniscience. They worship her in the performance of yajna while the fragrance is expanding and light is radiating. People of holy action invoke and worship Sarasvati while they act. May Sarasvati give to the generous worshipper and yajna performer the fruit the singer of the song divine prays for.

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    Subject

    Sarasvati

    Translation

    On Sarasvati do the pious call; on Sarasvati, while the sacrifice is being extended, on Sarasvati do the well doers call: may Sarasvati give what is desirable to the worshiper.

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    Translation

    The pious recite the Vedas, the word of God. They worship God, while sacrifice (Yajna) proceedeth. The virtuous invoke God. May the Al mighty God send bliss to him who giveth.

    Footnote

    See Rig, 10-17-7

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४१−(सरस्वतीम्) विज्ञानवतीं वेदविद्याम् (देवयन्तः) देव-क्यच्। देवान्श्रेष्ठगुणान् आत्मन इच्छन्तः (हवन्ते) आह्वयन्ति (सरस्वतीम्) (अध्वरे)हिंसारहिते व्यवहारे (तायमाने) विस्तार्यमाणे (सरस्वतीम्) (सुकृतः) पुण्यकर्माणः (हवन्ते) (सरस्वती) (दाशुषे) आत्मानं दत्तवते स्वभक्ताय (वार्यम्) वरणीयंस्वीकरणीयं मोक्षादिपदार्थम् (दात्) अदात्। ददाति ॥

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