अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 5
ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त
देवता - त्रिष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
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गर्भे॒ नु नौ॑जनि॒ता दम्प॑ती कर्दे॒वस्त्वष्टा॑ सवि॒ता वि॒श्वरू॑पः। नकि॑रस्य॒ प्र मि॑नन्तिव्र॒तानि॒ वेद॑ नाव॒स्य पृ॑थि॒वी उ॒त द्यौः ॥
स्वर सहित पद पाठगर्भे॑ । नु । नौ॒ । ज॒नि॒ता । दंप॑ती॒ इति॒ दम्ऽप॑ती । क्व॒ । दे॒व: । त्वष्टा॑ । स॒वि॒ता । वि॒श्वऽरू॑प: । नकि॑: । अ॒स्य॒ । प्र । मि॒न॒न्ति॒ । व्र॒तानि॑ । वेद॑ । नौ॒ । अ॒स्य । पृ॒थि॒वी । उ॒त । द्यौ: ॥१.५॥
स्वर रहित मन्त्र
गर्भे नु नौजनिता दम्पती कर्देवस्त्वष्टा सविता विश्वरूपः। नकिरस्य प्र मिनन्तिव्रतानि वेद नावस्य पृथिवी उत द्यौः ॥
स्वर रहित पद पाठगर्भे । नु । नौ । जनिता । दंपती इति दम्ऽपती । क्व । देव: । त्वष्टा । सविता । विश्वऽरूप: । नकि: । अस्य । प्र । मिनन्ति । व्रतानि । वेद । नौ । अस्य । पृथिवी । उत । द्यौ: ॥१.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
भाई-बहिन के परस्पर विवाह के निषेध का उपदेश।
पदार्थ
(जनिता) उत्पन्नकरनेवाले, (देवः) प्रकाशमान, (त्वष्टा) बनानेवाले, (सविता) प्रेरक, (विश्वरूपः)सबके रूप देनेवाले परमेश्वर ने (गर्भे) गर्भ में (नु) ही (नौ) हम दोनों को (दम्पती) पति-पत्नी (कः) बनाया है। (अस्य) इस [परमेश्वर] के (व्रतानि) नियमों को (नकिः प्र मिनन्ति) कोई भी नहीं तोड़ सकते, (नौ) हम दोनों के लिये (अस्य) इस [बात] को (पृथिवी) पृथिवी (उत) और भी (द्यौः) सूर्य (वेद) जानता है ॥५॥
भावार्थ
स्त्री का वचन।परमात्मा ने अपने अटल नियम से माता के गर्भ में ही हम दोनों को एक साथ जोड़ियाउत्पन्न करके पति-पत्नी बनाया है, जैसे यह प्रत्यक्ष है कि सृष्टि की आदि सेसूर्य और पृथिवी में पति-पत्नी भाव है, क्योंकि सूर्य वृष्टि करता है, पृथिवी उसेग्रहण करके अन्न आदि उत्पन्न करती है ॥५॥
टिप्पणी
५−(गर्भे) गर्भाशये (नि) निश्चयेन (नौ)आवाम् (जनिता) उत्पादकः (दम्पती) जायापती। पतिपत्न्यौ (कः) करोतेर्लुङ्। अकः।कृतवान् (देवः) प्रकाशमानः (सविता) प्रेरकः (विश्वरूपः) सर्वस्य रूपकर्ता (नकिः)न केऽपि (अस्य) परमेश्वरस्य (प्र) (मिनन्ति) मीञ् हिंसायाम्। ह्रस्वःप्वादित्वात्। हिंसन्ति। अतिक्रामन्ति (व्रतानि) कर्माणि (वेद) जानाति (नौ)आवाभ्याम् (अस्य) इदं वचनम् (पृथिवी) (उत) अपि च (द्यौः) सूर्यः ॥
विषय
'सम्बन्ध निर्माता' प्रभु
पदार्थ
१. यमी पुन: यम की परीक्षा लेती हुई कहती है कि जनिता-हम सबको जन्म देनेवाले उस प्रभु ने (गर्भे नु) = गर्भ में ही, साथ-साथ जन्म देने से (नौ) = हम दोनों को (दम्पती) = पति पत्नी (क:) = बनाया है। वे प्रभु (देवः) = पूर्ण ज्ञानमय है, (त्वष्टा) = वे ही सब सम्बन्धों का निर्माण करनेवाले हैं, (सविता) = सब प्रेरणाओं को देनेवाले हैं (विश्वरूप:) = और उन प्रेरणाओं को देकर इस संसार को रूप प्राप्त करानेवाले हैं। २. (अस्य व्रतानि) = इस सविता देव के व्रतों को (नाकि: प्रमिनन्ति) = कोई भी हिंसित नहीं करते। प्रभु की व्यवस्था को कोई तोड़नेवाला नहीं है। (नौ) = हम दोनों के (अस्य) = इस सम्बन्ध को (पृथिवी उत्त द्यौः) = पृथिवी और द्युलोक, अर्थात् सारा संसार (वेद) = जानता है। 'हमारा यह सम्बन्ध कोई छिपा हुआ व पापमय हो' ऐसी बात नहीं है।
भावार्थ
हमारे इस पति-पत्नीरूप सम्बन्ध को करनेवाले तो हमारे पिता प्रभु ही हैं। यह स्पष्ट है-'कोई छिपी हुई व पापमय बात हो' ऐसा नहीं है।
भाषार्थ
(जनिता) जन्मदाता, (त्वष्टा) नानारूपों और आकृतियों के निर्माता, (सविता) सर्वप्रेरक तथा (विश्वरूपः) विश्व को रूप देनेवाले परमेश्वर ने, (नु) निश्चय से, (गर्भे) मातृगर्भ में ही (नौ) हम दोनों को (दम्पती) जाया और पति (कः) कर दिया है। (देवः) वह दिव्य गुणोंवाला है, अतः हम दोनों को दम्पती करना उस की दिव्यता का ही परिणाम है (अस्य) इस परमेश्वर के (व्रतानि) किये कर्मो को (नकिः) नहीं कोई (प्र मिनन्ति) टाल सकते हैं। (नौ) हम दोनों के (अस्य) इस दाम्पत्यभाव को (पृथिवी उत द्यौः) पृथिवीलोक भी और द्युलोक भी (वेद) जानता है।
टिप्पणी
[यम और यमी यतः जोड़िया भाई-बहिन हैं, अत: इन दोनों ने एक ही मातृगर्भ में सहवास किया है। इस हेतु यमी कहती है यम को कि हमारे जन्मदाता परमेश्वर ने ही हमें दम्पती रूप में कर दिया है। पृथिवी द्यौः = कवितारूप में पृथिवी और द्यौः को चेतन माना है। अथवा इन का अर्थ है पृथिवीवासी तथा द्युवासी। "तात्स्थ्यात् ताच्छब्द्यम्" यथा मञ्चाः क्रोशन्ति। अथवा गृहस्थ स्त्री तथा पुरुष। यथा- (अथर्व० १४।२।७१)। इस मन्त्र में "वर" अपने आप को द्यौः, तथा 'वधू' को पृथिवी कहता है]
इंग्लिश (4)
Subject
Victory, Freedom and Security
Meaning
Yami: Our generator Savita, creator of the universe, Tvashta, maker of universal forms, and Kah, sustainer of created forms, made us a couple of male and female conjugality in nature’s womb of generation itself as keepers and sustainers of this earthly home. None can now violate the rules of the Lord’s discipline, no one does. Of this complementarity of natural conjugal relationship, the earth knows, the sun in heaven knows.
Translation
Verily, the generator made us in the womb man and spouse - - god Tvastar, Savitar of all forms; none overthrow his ordinances; earth knows us (two) as such, also heaven.
Translation
The wife says:-God who is the creator, maker of all, and the fashioner of all the forms even in mothers womb or the womb of earth has made us males and females (of whom you as a male are deemed to be husband of a matchful wife and I am deemed as a female to be wife of a matchful husband). No one can violate his statutes, we know this fact and even the earth and heaven follow his laws,
Translation
Even in the womb God, the Creator, Vivifier, the Shaper of all forms, made us consorts. Ne’er are His holy laws transgressed : our father and mother know this act of God.
Footnote
See Rig, 10-10-5. Yami speaks; and argues that by making them of different sexes the Creator manifestly intended them to behave like husband and wife.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५−(गर्भे) गर्भाशये (नि) निश्चयेन (नौ)आवाम् (जनिता) उत्पादकः (दम्पती) जायापती। पतिपत्न्यौ (कः) करोतेर्लुङ्। अकः।कृतवान् (देवः) प्रकाशमानः (सविता) प्रेरकः (विश्वरूपः) सर्वस्य रूपकर्ता (नकिः)न केऽपि (अस्य) परमेश्वरस्य (प्र) (मिनन्ति) मीञ् हिंसायाम्। ह्रस्वःप्वादित्वात्। हिंसन्ति। अतिक्रामन्ति (व्रतानि) कर्माणि (वेद) जानाति (नौ)आवाभ्याम् (अस्य) इदं वचनम् (पृथिवी) (उत) अपि च (द्यौः) सूर्यः ॥
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