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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 3/ मन्त्र 19
    सूक्त - चातनः देवता - अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त

    त्वं नो॑ अग्ने अध॒रादु॑द॒क्तस्त्वं प॒श्चादु॒त र॑क्षा पु॒रस्ता॑त्। प्रति॒ त्ये ते॑ अ॒जरा॑स॒स्तपि॑ष्ठा अ॒घशं॑सं॒ शोशु॑चतो दहन्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । न॒: । अ॒ग्ने॒ । अ॒ध॒रात् । उ॒द॒क्त: । त्वम् । प॒श्चात् । उ॒त । र॒क्ष॒ । पु॒रस्ता॑त् । प्रति॑ । त्ये । ते॒ । अ॒जरा॑स: । तपि॑ष्ठा: । अ॒घऽशं॑सम् । शोशु॑चत: । द॒ह॒न्तु॒ ॥३.१९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वं नो अग्ने अधरादुदक्तस्त्वं पश्चादुत रक्षा पुरस्तात्। प्रति त्ये ते अजरासस्तपिष्ठा अघशंसं शोशुचतो दहन्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । न: । अग्ने । अधरात् । उदक्त: । त्वम् । पश्चात् । उत । रक्ष । पुरस्तात् । प्रति । त्ये । ते । अजरास: । तपिष्ठा: । अघऽशंसम् । शोशुचत: । दहन्तु ॥३.१९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 3; मन्त्र » 19

    पदार्थ -

    १. हे (अग्ने) = अग्रणी प्रभो ! (त्वम्) = आप (न:) = हमें (अधरात) = नीचे से (उदक्त:) = ऊपर से'. अर्थात् दक्षिण व उत्तर से, (त्वम्) = आप ('पश्चात्) = पीछे से (उत) = और (पुरस्तात्) = सामने से', अर्थात् पश्चिम से और पूर्व से (रक्ष) = रक्षित कीजिए। २. (शोशचत:) = सर्वत्र पवित्रता व दीति का संचार करनेवाले (ते) = आपके (त्ये) = वे (अजरास:) = कभी जीर्ण न होनेवाले (तपिष्ठः) = अत्यन्त सन्तापक दण्ड (अपशंसम्) = पाप का शंसन करनेवाले को (प्रतिदहन्तु) = भस्म कर दें। आपकी फैलायी हुई ज्ञान-रश्मियों से इनकी अपशंसन की वृत्ति समाप्त हो जाए। ये ठीक मार्ग को देखकर अशुभ मार्ग से विमुख हो जाएँ। ३. राजा को भी यही चाहिए कि राष्ट्र में सत्यज्ञान के प्रसार की ऐसी व्यवस्था करे कि लोग अशुभ बातों की प्रशंसा न करते रहें।

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