Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 3/ मन्त्र 23
    सूक्त - चातनः देवता - अग्निः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त

    वि॒षेण॑ भङ्गु॒राव॑तः॒ प्रति॑ स्म र॒क्षसो॑ जहि। अग्ने॑ ति॒ग्मेन॑ शो॒चिषा॒ तपु॑रग्राभिर॒र्चिभिः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒षेण॑ । भ॒ङ्गु॒रऽव॑त: । प्रति॑ । स्म॒ । र॒क्षस॑: । ज॒हि॒ । अग्ने॑। ति॒ग्मेन॑ । शो॒चिषा॑ । तपु॑:ऽअग्राभि: । अ॒र्चिऽभि॑: ॥३.२३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विषेण भङ्गुरावतः प्रति स्म रक्षसो जहि। अग्ने तिग्मेन शोचिषा तपुरग्राभिरर्चिभिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विषेण । भङ्गुरऽवत: । प्रति । स्म । रक्षस: । जहि । अग्ने। तिग्मेन । शोचिषा । तपु:ऽअग्राभि: । अर्चिऽभि: ॥३.२३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 3; मन्त्र » 23

    पदार्थ -

    १. हे (अग्ने) = प्रकाशमय प्रभो! आप (विषेण) = [विष व्याप्तौ] व्यापक ज्ञान के द्वारा (भंगुरावत:) = हमारी शक्तियों का भंग करनेवाली (रक्षस:) = राक्षसीवृत्तियों को (प्रति जाहि स्म) = निश्चय से एक एक करके नष्ट कर दीजिए, ज्ञानाग्नि में सब वासनाएँ भस्म हो ही जाती हैं। २. (तिग्मेन शोचिषा) = तीव्र ज्ञान की ज्योति से तथा (तपुः अनभि:) = [तपु-The sun] सूर्य है आगे जिसके ऐसी (ऋष्टिभिः) = [ऋष् गतौ] गतियों से हमारी राक्षसीवृत्तियों को समाप्त कीजिए। सूर्य को सम्मुख करके, अर्थात् सूर्य को आदर्श मानकर की जानेवाली गतियों 'तपुरमा ऋष्टियाँ हैं। 'सूर्याचन्द्रमसाविव' सूर्य और चन्द्रमा की भाँति नियमित गति से अशुभ वृत्तियाँ दूर हो जाती हैं।

    भावार्थ -

    व्यापक व दौस ज्ञान से तथा सूर्य की भाँति नियमित गति से हम अशुभ वृत्तियों को नष्ट करनेवाले बनें।

     

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top