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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 7/ मन्त्र 11
    ऋषिः - पुनर्वत्सः काण्वः देवता - मरूतः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    मरु॑तो॒ यद्ध॑ वो दि॒वः सु॑म्ना॒यन्तो॒ हवा॑महे । आ तू न॒ उप॑ गन्तन ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मरु॑तः॑ । यत् । ह॒ । वः॒ । दि॒वः । सु॒म्न॒ऽयन्तः॑ । हवा॑महे । आ । तु । नः॒ । उप॑ । ग॒न्त॒न॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मरुतो यद्ध वो दिवः सुम्नायन्तो हवामहे । आ तू न उप गन्तन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मरुतः । यत् । ह । वः । दिवः । सुम्नऽयन्तः । हवामहे । आ । तु । नः । उप । गन्तन ॥ ८.७.११

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 11
    अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 20; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (मरुतः) हे योद्धारः ! (सुम्नायन्तः) सुखमिच्छन्तो वयम् (यद्, ह) यस्मात् (वः) युष्मान् (दिवः) अन्तरिक्षात् (हवामहे) आह्वयामः (आ, तु) अतः क्षिप्रम् (नः) अस्मान् (उपगन्तन) उपागच्छन्तु ॥११॥

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    विषयः

    प्राणाः प्रार्थ्यन्ते ।

    पदार्थः

    हे मरुतः ! प्राणाः ! सुम्नायन्तः=सुम्नं सुखमात्मन इच्छन्तो वयम् । यद् ह=यदा यदा । दिवः=दिव्यान् । वः=युष्मान् । हवामहे=स्थिरीभवितुं निमन्त्रयामहे । आ=तदा तदा । तु=शीघ्रम् । यूयम् । नोऽस्माकमुपसमीपे । गन्तन=आगच्छत ॥११ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (मरुतः) हे योद्धाओ ! (सुम्नायन्तः) सुख चाहनेवाले हम लोग (यत्, ह) जो (वः) आप लोगों को (दिवः) अन्तरिक्ष से (हवामहे) आह्वान करते हैं (आ, तु) अतः शीघ्र (नः) हमारे अभिमुख (उपगन्तन) आप आवें ॥११॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उन योद्धाओं का आह्वान कथन किया है, जो विमान द्वारा अन्तरिक्ष में विचरते हैं, किसी अन्य देवविशेष का नहीं ॥११॥

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    विषय

    इससे प्राण प्रार्थित होते हैं ।

    पदार्थ

    (मरुतः) हे प्राणदेवो ! (सुम्नायन्तः) सुखाभिलाषी हम उपासकगण (यद्+ह) जब-२ शुभकर्म में लगाने के लिये (दिवः) दिव्य (वः) आपको (हवामहे) बुलावें अर्थात् विषयों से छुड़ाकर प्रार्थना में लगावें तो (आ) तब-२ आप सब विषयों को छोड़कर (तु) शीघ्र (नः+उप) हम लोगों के समीप (गन्तन) आजाएँ ॥११ ॥

    भावार्थ

    प्राण नाम इन्द्रियों का ही है । वारंवार इन्द्रियों से प्रार्थना इसलिये की जाती है कि वे अतिचपल हैं । वेद प्रत्येक वस्तु को चेतनत्व का आरोपकर वर्णन करते हैं, यह ध्यान में सदा रखना चाहिये । ईश्वरोपासनार्थ जब उपासक बैठे, तब प्रथम अपने इन्द्रियों को छू-छूकर देखे कि कोई कलङ्कित तो नहीं हुआ है । इनको विषय से छुड़ाकर ध्यान में लगाना कठिन है, अतः हे मनुष्यों ! सावधान होकर इनको सुशिक्षित बनाओ ॥११ ॥

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    विषय

    उन की तुलना से सज्जनों, वीरों के कर्तव्य ।

    भावार्थ

    हे ( मरुतः ) जलवर्षी वायु गणों के समान विद्वान् एवं वीर जनो ! हम लोग ( यत् ह वः ) जब भी आप लोगों को ( सुम्नायन्तः ) अपना सुख एवं उत्तम ज्ञान चाहते हुए ( हवामहे ) आदर से प्रार्थना करें ( आ तु ) अनन्तर ही आप लोग ( नः उप गन्तन ) आप हमारे समीप प्राप्त हुआ करें। रक्षेच्छुक प्रजाजनों के लिये सिपाही जनों को तुरत जाना चाहिये।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    पुनर्वत्सः काण्व ऋषिः॥ मरुतो देवताः॥ छन्दः—१, ३—५, ७—१३, १७—१९, २१, २८, ३०—३२, ३४ गायत्री । २, ६, १४, १६, २०,२२—२७, ३५, ३६ निचृद् गायत्री। १५ पादनिचृद् गायत्री। २९, ३३ आर्षी विराड् गायत्री षट्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    दिवः सुम्नायन्तः

    पदार्थ

    [१] हे (मरुतः) = प्राणो ! (यत् ह) = जब निश्चय से (दिवः सुम्नायन्तः) = ज्ञान के सुख की कामना करते हुए हम (वः हवामहे) = आपको पुकारते हैं, (तु) = तो आप (नः) = हमें (आ उपगन्तन) = सर्वथा समीपता से प्राप्त होवो। [२] प्राणसाधना से ही बुद्धि की तीव्रता होकर ज्ञान का सुख प्राप्त होता है। प्राणसाधना के अभाव में ज्ञान एकदम अरुचिकर प्रतीत होता है।

    भावार्थ

    भावार्थ-प्राणसाधना से बुद्धि तीव्र होती है। बुद्धि की तीव्रता के होने पर हमें ज्ञान प्राप्ति में आनन्द का अनुभव होता है।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Maruts, O tempestuous heroes, as we call upon you for the sake of peace, progress and prosperity, pray come fast from the heavens through the skies close to us on earth.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात त्या योद्ध्यांच्या आव्हानाचे कथन केलेले आहे. जे विमानाद्वारे अंतरिक्षात विहार करतात, एखाद्या अन्य देवविशेषाचे वर्णन नव्हे. ॥११॥

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