ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 7/ मन्त्र 6
यु॒ष्माँ उ॒ नक्त॑मू॒तये॑ यु॒ष्मान्दिवा॑ हवामहे । यु॒ष्मान्प्र॑य॒त्य॑ध्व॒रे ॥
स्वर सहित पद पाठयु॒ष्मान् । ऊँ॒ इति॑ । नक्त॑म् । ऊ॒तये॑ । यु॒ष्मान् । दिवा॑ । ह॒वा॒म॒हे॒ । यु॒ष्मान् । प्र॒ऽय॒ति । अ॒ध्व॒रे ॥
स्वर रहित मन्त्र
युष्माँ उ नक्तमूतये युष्मान्दिवा हवामहे । युष्मान्प्रयत्यध्वरे ॥
स्वर रहित पद पाठयुष्मान् । ऊँ इति । नक्तम् । ऊतये । युष्मान् । दिवा । हवामहे । युष्मान् । प्रऽयति । अध्वरे ॥ ८.७.६
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 6
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
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अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
विषयः
अथाभ्युदयप्राप्तिहेतुर्वर्ण्यते।
पदार्थः
हे योद्धारः ! (ऊतये) स्वरक्षायै (नक्तम्, युष्मान्, उ) रात्रौ युष्मानेव (हवामहे) आह्वयामः (दिवा, युष्मान्) दिने युष्मानेव (प्रयति) प्रारब्धे (अध्वरे) यज्ञे (युष्मान्) युष्मानेव आह्वयामः ॥६॥
विषयः
प्रथमं प्राणा वशीकर्तव्या इति दर्शयति ।
पदार्थः
हे मरुतः प्राणाः । उ एवार्थः । नक्तम्=रात्रौ । युष्मानेव । ऊतये=रक्षायै । हवामहे । दिवा=दिने । युष्मान् हवामहे । अध्वरे=यागे । प्रयति=गच्छति सति । युष्मानेव हवामहे ॥६ ॥
हिन्दी (4)
विषय
अब अभ्युदयप्राप्ति का हेतु वर्णन करते हैं।
पदार्थ
हे योद्धाओ ! (ऊतये) आत्मरक्षा के लिये (नक्तं, युष्मान्, उ) रात्रि में आपका ही (हवामहे) आह्वान करते हैं (दिवा, युष्मान्) दिन में आपका ही और (प्रयाति, अध्वरे) यज्ञ के प्रारम्भ में आपका ही आह्वान करते हैं ॥६॥
भावार्थ
यज्ञ में क्षात्रधर्मवेत्ता सैनिक और पदार्थविद्यावेत्ता विद्वान् तथा अध्यात्मविद्यावेत्ता योगीजन इत्यादि विद्वानों का सत्कार करना अभ्युदय का हेतु है ॥६॥
विषय
प्रथम प्राण वशीकर्त्तव्य हैं, यह दिखलाते हैं ।
पदार्थ
बाह्यवायु का निरूपण करके पुनः आभ्यन्तर प्राणों का वर्णन करते हैं । यथा−हे प्राणो अर्थात् हे इन्द्रियो ! (नक्तम्) रात्रि में (ऊतये) रक्षा और साहाय्य के लिये (युष्मान्+उ) आपकी ही (हवामहे) स्तुति करते हैं (दिवा) दिन में और (अध्वरे+प्रयति) यज्ञ के समय में (युष्मान्) आपकी ही स्तुति करते हैं ॥६ ॥
भावार्थ
इन्द्रियों को वश में करने से ही मनुष्य विधिवत् शुभ कर्म कर सकता है । अतः वेद कहते हैं कि रात्रि दिन और शुभ कर्म के समय प्रथम इन्द्रियों को वशीभूत बना लो, अन्यथा सब कर्म निष्फल हो जाएँगे ॥६ ॥
विषय
मेघ और वृष्टि लाने वाले वायुगण का वर्णन ।
भावार्थ
हे विद्वान् और वीर पुरुषो ! ( नक्तम् ) रात्रि के समय ( ऊतये ) रक्षा के लिये ( युष्मान् उ हवामहे) आप लोगों से ही हम प्रार्थना करते हैं । हे वीर पुरुषो ! ( युष्मान् ) तुम्हें हम ( दिवा ऊतये हवामहे ) दिन के समय रक्षा करने के लिये प्रार्थना करते हैं । और (अध्वरे प्रयति) यज्ञ के अवसर में ( ऊतये हवामहे ) रक्षा के लिये बुलावें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
पुनर्वत्सः काण्व ऋषिः॥ मरुतो देवताः॥ छन्दः—१, ३—५, ७—१३, १७—१९, २१, २८, ३०—३२, ३४ गायत्री । २, ६, १४, १६, २०,२२—२७, ३५, ३६ निचृद् गायत्री। १५ पादनिचृद् गायत्री। २९, ३३ आर्षी विराड् गायत्री षट्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
विषय
प्रातः सायं प्राणसाधना
पदार्थ
[१] हे प्राणो ! (युष्मान् उ) = आपको ही (नक्तम्) = रात्रि में (ऊतये) = रक्षण के लिये हम (हवामहे) = पुकारते हैं। (युष्मान्) = आपको ही (दिवा) = दिन में रक्षण के लिये पुकारते हैं। प्रातः-सायं प्राणसाधना करते हुए हम वासनाओं व रोगों के आक्रमण से अपना रक्षण करनेवाले होते हैं। [२] हे प्राणो ! (युष्मान्) = आपको ही हम (अध्वरे प्रयति) = यज्ञ के चलते हुए होने पर रक्षण के लिये पुकारते हैं। यह जीवनयज्ञ प्राणों द्वारा ही रक्षित होता हुआ चलता है। वस्तुतः प्राणसाधना से ही यह यज्ञ बना रहता है। प्राणसाधना के अभाव में जीवन की वह पवित्रता स्थिर नहीं रहती।
भावार्थ
भावार्थ- हम प्रात:-सायं प्राणसाधना करते हुए रोगों व वासनाओं से अपने को आक्रान्त न होने दें और इस प्रकार अपने जीवन को एक पवित्र यज्ञ का रूप दे सकें।
इंग्लिश (1)
Meaning
We invoke you at night for peace and protection, in the day for action and advancement, and in the beginning of yajna for completion and fulfilment.
मराठी (1)
भावार्थ
यज्ञात क्षात्रधर्मवेत्ते सैनिक पदार्थविद्यावेत्ते विद्वान व अध्यात्मविद्यावेत्ते योगिजन इत्यादी विद्वानांचा सत्कार करणे अभ्युदयाचा हेतू आहे. ॥६॥
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