ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 7/ मन्त्र 30
क॒दा ग॑च्छाथ मरुत इ॒त्था विप्रं॒ हव॑मानम् । मा॒र्डी॒केभि॒र्नाध॑मानम् ॥
स्वर सहित पद पाठक॒दा । ग॒च्छा॒थ॒ । म॒रु॒तः॒ । इ॒त्था । विप्र॑म् । हव॑मानम् । मा॒र्डी॒केभिः॑ । नाध॑मानम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
कदा गच्छाथ मरुत इत्था विप्रं हवमानम् । मार्डीकेभिर्नाधमानम् ॥
स्वर रहित पद पाठकदा । गच्छाथ । मरुतः । इत्था । विप्रम् । हवमानम् । मार्डीकेभिः । नाधमानम् ॥ ८.७.३०
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 30
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 5
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अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(मरुतः) हे योद्धारः ! (इत्था) इत्थम् (हवमानम्) आह्वयन्तम् (विप्रम्) मेधाविनम् (नाधमानम्) त्वदागमनं याचमानम् (मार्डीकेभिः) सुखसाधनपदार्थैः सह (कदा, गच्छाथ) कदा गच्छसि ॥३०॥
विषयः
प्राणचञ्चलत्वं दर्शयति ।
पदार्थः
हे मरुतः प्राणाः=इन्द्रियसमेताः प्राणाः । कदा=कस्मिन् काले । हवमानम्=परमदेवं निमन्त्रयन्तम् । मार्डीकेभिः= सुखकरैः स्तोत्रैः । नाधमानम्=याचमानम्=प्रार्थयमानम् । विप्रम्=मेधाविनं योगिनम् । गच्छाथ=गच्छथ ॥३० ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(मरुतः) हे योधाओ ! (इत्था) इस प्रकार (हवमानम्) बुलाते हुए (नाधमानम्) आपके आगमन की याचना करते हुए (विप्रम्) मेधावी पुरुष के यहाँ (मार्डीकेभिः) सुखसाधन पदार्थों सहित आप (कदा, गच्छाथ) कब जाते हैं ॥३०॥
भावार्थ
इस मन्त्र में नाना प्रकार की विद्याओं को जाननेवाले मरुत्=विद्वान् योद्धाओं के आगमन की प्रतीक्षा का वर्णन किया गया है कि हे मरुद्गण ! आप सुखसामग्री सहित कब जाते हैं अर्थात् शीघ्र जाएँ ॥३०॥
विषय
प्राणों की चञ्चलता दिखलाते हैं ।
पदार्थ
(मरुतः) हे प्राणसहित इन्द्रियो ! (कदा) कब (हवमानम्) परमदेव को निमन्त्रित करते हुए और (मार्डीकेभिः) सुखकर स्तोत्रों से (नाधमानम्) प्रार्थना में लगे हुए (विप्रम्) मेधावी योगी को आप प्राप्त होंगे ॥३० ॥
भावार्थ
जब उपासक समाधिकाल में ईश्वर की प्रार्थना करने लगे, तब प्रथम इन्द्रियों को सर्वथा वश में कर लेवे, क्योंकि जब इन्द्रियगण इधर-उधर भाग जाते हैं, तब उनको पुनः विवश करना अति कठिन हो जाता है ॥३० ॥
विषय
उन की तुलना से सज्जनों, वीरों के कर्तव्य ।
भावार्थ
हे ( मरुतः ) विद्वान् वीर पुरुषो ! आप लोग ( इत्था ) इस प्रकार ( हवमानं विप्रम् ) स्तुतिशील वा यज्ञकर्त्ता, विद्वान् पुरुष को ( मार्डीकेभिः ) सुखजनक वचनों से ( नाधमानम् ) प्रार्थना करते हुए ( कदा गच्छाथ ) कब प्राप्त होते हैं ? [ उत्तर ] अथवा ( मार्डीकेभिः नाधमानं ) सुखजनक द्रव्यों से समृद्ध ( हवमानं विप्रम् ) दान देते हुए विविध धनों से पूर्ण मनुष्य को ही प्राप्त होते हो । इति त्रयोविंशो वर्गः
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
पुनर्वत्सः काण्व ऋषिः॥ मरुतो देवताः॥ छन्दः—१, ३—५, ७—१३, १७—१९, २१, २८, ३०—३२, ३४ गायत्री । २, ६, १४, १६, २०,२२—२७, ३५, ३६ निचृद् गायत्री। १५ पादनिचृद् गायत्री। २९, ३३ आर्षी विराड् गायत्री षट्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
विषय
प्राणसाधक की आतुरता
पदार्थ
[१] हे (मरुतः) = प्राणो! आप (इत्था) = सत्यरूप में (हवमानम्) = पुकारते हुए (विप्रम्) = इस अपने पूरण करनेवाले पुरुष को (कदा) = कब (गच्छाथ) = प्राप्त होते हो। [२] (मार्डीकेभिः) = उस [मृडीकस्य शिवस्य इमानि] आनन्दमय प्रभु के नामों से (नाधमानम्) = याचना करते हुए इस विप्र को आप कब प्राप्त होवोगे ? प्राणसाधना करते हुए प्रभु के नामों का उच्चारण साधना में सहायक हो जाता है।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणसाधना करता हुआ पुरुष प्रभु के नामों का उच्चारण करे तथा उसे साधना के लिये एक आतुरता-सी हो ।
इंग्लिश (1)
Meaning
O Maruts, when would you thus reach the vibrant scholar who calls you to yajna and awaits, and carry gifts of prosperity to the supplicant?
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात नाना प्रकारच्या विद्या जाणणाऱ्या मरुत विद्वान योद्ध्यांच्या आगमन प्रतीक्षेचे वर्णन आहे. हे मरुद्गण । तुम्ही सुखसाधनांसह केव्हा जाता अर्थात तत्काळ जा ॥३०॥
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