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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 7/ मन्त्र 29
    ऋषिः - पुनर्वत्सः काण्वः देवता - मरूतः छन्दः - विराडार्षीगायत्री स्वरः - षड्जः

    सु॒षोमे॑ शर्य॒णाव॑त्यार्जी॒के प॒स्त्या॑वति । य॒युर्निच॑क्रया॒ नर॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒ऽसोमे॑ । श॒र्य॒णाऽव॑ति । आ॒र्जी॒के । प॒स्त्य॑ऽवति । य॒युः । निऽच॑क्रया । नरः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुषोमे शर्यणावत्यार्जीके पस्त्यावति । ययुर्निचक्रया नर: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुऽसोमे । शर्यणाऽवति । आर्जीके । पस्त्यऽवति । ययुः । निऽचक्रया । नरः ॥ ८.७.२९

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 29
    अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (नरः) नेतारस्ते (सुषोमे, शर्यणावति) शोभनसोमयुक्ते उन्नतप्रदेशे (आर्जीके, पस्त्यावति) शोभनगृहयुक्ते अधःप्रदेशे वा (निचक्रया) निगृहीतचक्रया गत्या (ययुः) यान्ति ॥२९॥

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    विषयः

    समाधिर्वर्ण्यते ।

    पदार्थः

    नरो नेतारः प्राणाः । निचक्रया=नीचीनचक्रया=धीरगत्या । सुसोमे=शोभनसोमे=मधुररसे । आर्जीके=शिरःसम्बन्धिनि । पुनः । पस्त्यावति=गृहवति । पस्त्यं गृहम् । शर्य्यणावति=ब्रह्मरन्ध्ररूपे सरसि मध्ये । ययुः=गच्छन्ति ॥२९ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (नरः) वे नेता लोग (सुषोमे, शर्यणावति) सुन्दर सोमवाले उन्नत प्रदेशों में और (आर्जीके, पस्त्यावति) सुन्दर गृहोंवाले सरल=अधःप्रदेशों में (निचक्रया) स्वचक्र को वशीभूत करते हुए (यान्ति) चलते हैं ॥२९॥

    भावार्थ

    जो हिमालय आदि उच्च प्रदेश और जो समुद्रपर्य्यन्त निम्न प्रदेश हैं, उन सब प्रदेशों में पदार्थविद्यावेत्ता योद्धाओं का रथचक्र अव्याहतगति होता है अर्थात् उनके जलयान, पृथिवीयान तथा नभोयानादि यानों को कोई प्रतिपक्षी रोक नहीं सकता ॥२९॥

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    विषय

    समाधि का वर्णन करते हैं ।

    पदार्थ

    समाधि अवस्था में प्राण कहाँ जाते हैं, इसका संक्षिप्त वर्णन यहाँ करते हैं । यथा−(नरः) सब इन्द्रियों के नेता प्राण (निचक्रथा) धीर गति से (सुसोमे) मधुर रसयुक्त (आर्जीके) शिरःसम्बन्धी और (पस्त्यावति) गृहसहित (शर्य्यणावति) ब्रह्मरन्ध्ररूप सरोवर के मध्य (ययुः) जाते हैं ॥२९ ॥

    भावार्थ

    बारम्बार समाधि के अभ्यास से वे प्राण शिर के ब्रह्मरन्ध्र में जाकर शान्ति लेते हैं ॥२९ ॥

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    विषय

    उन की तुलना से सज्जनों, वीरों के कर्तव्य ।

    भावार्थ

    ( नरः ) मनुष्य ( सुषोमे ) उत्तम ऐश्वर्ययुक्त (शर्यणावति) उत्तम सेना, पोलिस आदि से सुरक्षित, (आर्जीके) धार्मिक निवासियों से बरने योग्य, धार्मिक राजा से शासित ( पस्त्यावति ) उत्तम प्रजा से सम्पन्न या नाना गृह भवनों से समृद्ध नगर या देश में ( निचक्रया ) नीचे लगे चक्रों से युक्त ट्राम आदि गाड़ियों से ( ययुः ) जाया आया करें । अथवा—उक्त प्रकार के देश में भी ( मरुतः ) वीर सैनिक (नि-चक्रया) नियमित चक्र अर्थात् सैन्यादि चक्र, व्यूह युक्त सेना से आगे बढ़ें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    पुनर्वत्सः काण्व ऋषिः॥ मरुतो देवताः॥ छन्दः—१, ३—५, ७—१३, १७—१९, २१, २८, ३०—३२, ३४ गायत्री । २, ६, १४, १६, २०,२२—२७, ३५, ३६ निचृद् गायत्री। १५ पादनिचृद् गायत्री। २९, ३३ आर्षी विराड् गायत्री षट्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    सब चक्रों का ठीक होना

    पदार्थ

    [१] (नर:) = उन्नतिपथ पर चलनेवाले लोग इस शरीर गृह में (निचक्रया) = नियमित चक्रसमूह से (ययुः) = गति करते हैं। इनका शरीरों में मूलाधार चक्र से सहस्रार चक्र तक सब आठों चक्र अपना-अपना कार्य ठीक रूप से करते हैं प्राणसाधना ही इन चक्रों की गति को ठीक रखती है। [२] 'कैसे शरीर गृह में ये गति करते हैं?' इसको स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि (सुषोमे) = [सु-सोमे] उत्तम सोमवाले। प्राणसाधना से वीर्य शुद्ध बना रहता है, इसकी ऊर्ध्वगति होती है। (शर्यणावति) = संहारवाले, इस शरीर गृह में रोगकृमियों के वासनाओं का संहार हो जाता है। (आर्जीके) = जिस शरीर गृह में शक्ति का खूब उपार्जन हुआ है। (पस्त्यावति) = जिस शरीर गृह में सब पस्त्य [cells] उत्तम होते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- शरीर वही अच्छा है जिसमें सोम का रक्षण हो, रोगकृमि व वासनाओं का संहार हो, शक्ति का उपार्जन हो तथा सब घटक [cells] ठीक हो। इसमें आठों चक्रों की गति ठीक हो।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    The leading Marut forces proceed to beautiful regions of peace and joy on higher altitudes and to the simple natural planes without vehicular medium by direct currents of energy.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे हिमालय इत्यादी उच्च प्रदेश व जे समुद्रापर्यंत निम्न प्रदेश आहेत त्या सर्व प्रदेशात पदार्थविद्यावेत्या योद्ध्यांच्या रथचक्राची अव्याहत गती असते. अर्थात त्यांचे जलयान, पृथ्वीयान व नभोयान इत्यादी यानांना कोणी प्रतिपक्षी रोखू शकत नाही. ॥२९॥

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