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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 7/ मन्त्र 4
    ऋषिः - पुनर्वत्सः काण्वः देवता - मरूतः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    वप॑न्ति म॒रुतो॒ मिहं॒ प्र वे॑पयन्ति॒ पर्व॑तान् । यद्यामं॒ यान्ति॑ वा॒युभि॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वप॑न्ति । म॒रुतः॑ । मिह॑म् । प्र । वे॒प॒य॒न्ति॒ । पर्व॑तान् । यत् । याम॑म् । यान्ति॑ । वा॒युऽभिः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वपन्ति मरुतो मिहं प्र वेपयन्ति पर्वतान् । यद्यामं यान्ति वायुभि: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वपन्ति । मरुतः । मिहम् । प्र । वेपयन्ति । पर्वतान् । यत् । यामम् । यान्ति । वायुऽभिः ॥ ८.७.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 4
    अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 18; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (यत्) यदा (वायुभिः) सेनासहिताः (मरुतः) योधाः (यामम्, यान्ति) यानारूढा भवन्ति तदा (मिहम्, वपन्ति) शस्त्रवर्षं मुञ्चन्ति (पर्वतान्) दुर्गप्रदेशांश्च (प्रवेपयन्ति) प्रकम्पयन्ति ॥४॥

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    विषयः

    मरुन्महत्त्वं दर्शयति ।

    पदार्थः

    प्रसङ्गाद् बाह्यवायूपद्रवं दर्शयति । मरुतः । मिहम्=वृष्टिम् । वपन्ति=विक्षिपन्ति । मिह सेचने । तथा । पर्वतान्=गिरीन् मेघांश्च । प्रवेपयन्ति=प्रकम्पयन्ति । कदेत्याकाङ्क्षायामाह− यद्=यदा । वायुभिः सह । यामम्=गतिम् । यन्ति=कुर्वन्ति ॥४ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (यत्) जब (वायुभिः) सेनासहित (मरुतः) योद्धा लोग (यामम्, यान्ति) यानारूढ होते हैं, तब (मिहम्, वपन्ति) शस्त्रवृष्टि करते हैं और (पर्वतान्) दुर्गप्रदेशों को (प्रवेपयन्ति) कँपा देते हैं ॥४॥

    भावार्थ

    जो लोग व्योमयानादि द्वारा=विद्यानिर्मित यानों द्वारा शत्रु पर आक्रमण करते हैं, वे ही शत्रुबल को कम्पायमान कर सकते हैं, अन्य नहीं ॥४॥

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    विषय

    वायु का महत्त्व दिखलाते हैं ।

    पदार्थ

    (यद्) जब (मरुतः) झञ्झावायु=आँधी तूफान (वायुभिः) सामान्य व्यापक वायुओं के साथ (यामम्+यान्ति) गति करता है, तब (मिहम्) वृष्टि को (वपन्ति) इधर-उधर कर फार देता है और (पर्वतान्) पहाड़ों और मेघों को (प्र+वेपयन्ति) हिला देता है ॥४ ॥

    भावार्थ

    जैसे बाह्य वायु का उपद्रव हम देखते हैं, तद्वत् इस शरीरस्थ वायु का भी है । उसकी शान्ति केवल प्राणायाम और चित्तैकाग्रता से होती है, अन्यथा मनुष्य की बुद्धि स्थिर नहीं होती ॥४ ॥

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    विषय

    मेघ और वृष्टि लाने वाले वायुगण का वर्णन ।

    भावार्थ

    जिस प्रकार ( मरुतः यद् यामं वायुभिः यान्ति ) सजल वायुएं जलस्थनीय वायुओं के साथ आकाश मार्ग से जाते हैं तब वे ( पर्वतान् प्रवेपयन्ति ) मेघों को भी गति देते और ( मिहं वपन्ति ) वर्षा को भी बीजवपनवत् भूमि पर डालते हैं। इसी प्रकार ( मरुतः ) प्रचण्ड वात के समान वीर नायक गण ( यत् ) जब ( वायुभिः ) तीव्र वायुवत् बलवान् सैनिकों के साथ ( यामं ) प्रयाण मार्ग में गमन करते हैं तब वे ( मिहं वपन्ति ) शस्त्र वृष्टि करते हैं, और ( पर्वतान् ) पर्वतवत् दृढ़ शत्रुओं को भी ( प्रवेपयन्ति ) खूब कंपा देते हैं, विचलित कर देते हैं । विशेष वृष्टि लाने वाली मानसून वायुएं ही वेद में 'मरुतः' कहे गये हैं । ( २ ) इसी प्रकार ( मरुतः ) मर्त्य युवा मनुष्य ( यत् ) जब ( वायुभिः ) गन्धयुक्त भूमिवत् धर्म दाराओं के साथ ( यामं यन्ति ) उपयम अर्थात् विवाह बन्धन को प्राप्त कर लेते हैं तब वे ( पर्वतान् ) प्रसन्न करने और पालने योग्य आदरणीय जनों को ( प्रवेपयन्ति ) हर्षित करते हैं और ( मिहं वपन्ति ) निषेक द्वारा उत्तम सन्तानों का वपन करते हैं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    पुनर्वत्सः काण्व ऋषिः॥ मरुतो देवताः॥ छन्दः—१, ३—५, ७—१३, १७—१९, २१, २८, ३०—३२, ३४ गायत्री । २, ६, १४, १६, २०,२२—२७, ३५, ३६ निचृद् गायत्री। १५ पादनिचृद् गायत्री। २९, ३३ आर्षी विराड् गायत्री षट्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    मिहं वपन्ति, पर्वतान् प्रवेपयन्ति

    पदार्थ

    [१] (यद्) = जब (वायुभिः) = इन प्राणों के द्वारा (यामं यान्ति) = जितेन्द्रियता को [याम control] प्राप्त करते हैं, तो (मरुतः) = ये प्राणसाधना करनेवाले पुरुष (मिहं वपन्ति) = अंग-प्रत्यंग में शक्ति का सेचन करते हैं और (पर्वतान् प्रवेपयन्ति) = अविद्या पर्वतों को कम्पित करके दूर करते हैं। [२] प्राणसाधना हमें इन्द्रियों को वशीभूत करने में समर्थ करती है। यह जितेन्द्रियता सोम का रक्षण करती है। सोमरक्षण से शरीर शक्ति सम्पन्न बनता है तो मस्तिष्क का अज्ञानान्धकार नष्ट हो जाता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणसाधना द्वारा जितेन्द्रिय बनकर हम सोमरक्षण करते हुए शरीर को शक्ति-सम्पन्न तथा मस्तिष्क को ज्ञानदीप्त बनाते हैं।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    When the Maruts take to their vehicles with the winds, they shoot out showers of rain and shake up mountainous strongholds of energy.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे लोक व्योम यान इत्यादीद्वारे = विद्यानिर्मित यानांद्वारे शत्रूवर आक्रमण करतात तेच शत्रूबलाला कम्पायमान करू शकतात, इतर नव्हे. ॥४॥

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