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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 7/ मन्त्र 17
    ऋषिः - पुनर्वत्सः काण्वः देवता - मरूतः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    उदु॑ स्वा॒नेभि॑रीरत॒ उद्रथै॒रुदु॑ वा॒युभि॑: । उत्स्तोमै॒: पृश्नि॑मातरः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । ऊँ॒ इति॑ । स्व॒नेभिः॑ । ई॒र॒ते॒ । उत् । रथैः॑ । उत् । ऊँ॒ इति॑ । वा॒युऽभिः॑ । उत् । स्तोमैः॑ । पृश्नि॑ऽमातरः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उदु स्वानेभिरीरत उद्रथैरुदु वायुभि: । उत्स्तोमै: पृश्निमातरः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । ऊँ इति । स्वनेभिः । ईरते । उत् । रथैः । उत् । ऊँ इति । वायुऽभिः । उत् । स्तोमैः । पृश्निऽमातरः ॥ ८.७.१७

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 17
    अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 21; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (पृश्निमातरः) योद्धारः (स्वानेभिः) शब्दैः (उदीरते, उ) उद्गच्छन्ति (रथैः) यानैः (उद्) उदीरते (वायुभिः) वायुसदृशवीरैः (उदु) उदीरते (स्तोमैः) स्तोत्रैः (उत्) उदीरते “उ” पूरकः ॥१७॥

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    विषयः

    प्राणायामदशां दर्शयति ।

    पदार्थः

    पृश्निमातरः=आकाशगामिनः । मरुतः । स्वानेभिः=स्वानैः शब्दैः सह । उदीरते=उद्गच्छन्ति । रथैः=रमणीयैर्गमनैः सह उदीरते । वायुभिः=सह उदीरते । स्तोमैः=स्तुतिभिश्च सह उदीरते ॥१७ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (पृश्निमातरः) योद्धा लोग (स्वानेभिः) शब्दों के सहित (उदीरते, उ) स्थान से निकलते हैं (रथैः) यानों द्वारा (उद्) निकलते हैं (वायुभिः) वायुसदृश वीरों सहित (उदु) निकलते और (स्तोमैः) स्तोत्रों सहित (उत्) स्थान से निकलते हैं ॥१७॥

    भावार्थ

    जिन योधाओं के रथों के पहियों से पृथिवी गूँज उठती है, ऐसे शूरवीरों से ही रक्षा की भिक्षा माँगनी चाहिये ॥१७॥

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    विषय

    प्राणायाम की दशा दिखलाते हैं ।

    पदार्थ

    (पृश्निमातरः) आकाशगामी मरुद्गण (स्वानेभिः) महानाद के साथ (उद्+ईरते) ऊपर उठते हैं । (रथैः) रमणीय गमनों के साथ (उद्) ऊपर उठते हैं (वायुभिः) पृथिवीस्थ वायुयों के साथ (उद्) ऊपर उठते हैं । तथा (स्तोमैः+उद्) मनुष्यों के प्रशंसावचनों के साथ ऊपर चढ़ते हैं ॥१७ ॥

    भावार्थ

    भौतिक और आध्यात्मिक दोनों अर्थ होते हैं, आध्यात्मिक इस प्रकार होगा कि प्राणायाम के समय भीतर महानाद होते हैं, उनकी गति अतिवेगवती होती है और मुख्य प्राण की स्तुति इन्द्रिय करते हैं, इत्यादि ॥१७ ॥

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    विषय

    उन की तुलना से सज्जनों, वीरों के कर्तव्य ।

    भावार्थ

    जिस प्रकार ( पृश्नि-मातरः ) जल सेचन अर्थात् जल वर्षण करने वाले मेघों की माता के समान उत्पादक वायुगण ( स्वानेभिः वायुभिः उद् ईरते ) शब्दों, प्रबल वायु वेगों से उठते हैं उसी प्रकार ( पृश्नि-मातरः ) मन्त्रद्रष्टा ऋषि, आचार्य वा पृथिवी रूप माता के पुत्र वीर पुरुष ( स्वानेभिः ) सिंह गर्जनाओं सहित ( उत् ईरते ) उठते हैं, ( रथैः उत् ) रथों से और ( वायुभिः उद् उ ) वायुवत् प्रबल नायकों और ( स्तोमै : उत् ) स्तुतियोग्य प्रशंसा-वचनों से ( उत् ईरते ) ऊपर उठते, उत्साहित होते और विजय करते हैं। ( २ ) इसी प्रकार विद्वान् गण उत्तम ध्वनियों, ( रथैः ) उपदेशों और ( स्तोमैः ) वेदमन्त्र समूहों से ( उत् ईरते ) उन्नति प्राप्त करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    पुनर्वत्सः काण्व ऋषिः॥ मरुतो देवताः॥ छन्दः—१, ३—५, ७—१३, १७—१९, २१, २८, ३०—३२, ३४ गायत्री । २, ६, १४, १६, २०,२२—२७, ३५, ३६ निचृद् गायत्री। १५ पादनिचृद् गायत्री। २९, ३३ आर्षी विराड् गायत्री षट्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    (१) (पृश्निमातर:) = प्राणसाधना के द्वारा ज्ञानरश्मियों का अपने अन्दर निर्माण करनेवाले लोग (स्वानेभिः) = इन ज्ञान की वाणियों के उच्चारण के द्वारा (उ) = निश्चय से (उदीरते) = उन्नत होते हैं। ये साधक (रथैः) = इन शरीर रथों से भी (उद्) = ऊपर उठते हैं। इनका ठीक प्रयोग करते हुए जीवन में उन्नत होते हैं। (२) (उ) = और ये साधक (वायुभिः) = (वा गतौ) इन गतिशील इन्द्रियाश्वों के द्वारा (उत्) = ये उन्नत होते हैं, वायुसम वेगवाले इन्द्रियाश्व इन्हें आगे और आगे ले चलते हैं। (स्तोमैः) = प्रभु के स्तोत्रों के द्वारा (उत्) = ये उन्नत होते हैं। वस्तुतः प्रभु का स्तवन करते हुए ही ये सब कार्यों को करते हैं। इनके शरीररथ ज्ञान की वाणियों से जुड़े हुए हैं, तो इनकी इन्द्रियों से होनेवाले सब कर्म प्रभु-स्तवनों से।

    पदार्थ

    भावार्थ- प्राणसाधना के द्वारा (क) हम शरीर-रथों को दृढ़ बनायें, (ख) इन शरीर - रथों को ज्ञान की वाणियों के प्रकाश से युक्त करें, (ग) इन्द्रियाँ हमारी सतत कर्त्तव्यकर्मपरायण हों, (घ) हमारे कर्म प्रभु-स्तवन के साथ चलें।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Children of the winds, heavens and the skies emerge and advance from their abode with winds and roars by chariots to the accompaniment of songs of jubilation.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ज्या योद्ध्यांच्या रथाच्या चक्राने पृथ्वी गुंजायमान होत, अशा शूर वीरांसमोर रक्षणाची प्रार्थना केली पाहिजे. ॥१७॥

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