ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 7/ मन्त्र 12
यू॒यं हि ष्ठा सु॑दानवो॒ रुद्रा॑ ऋभुक्षणो॒ दमे॑ । उ॒त प्रचे॑तसो॒ मदे॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयू॒यम् । हि । स्थ । सु॒ऽदा॒न॒वः॒ । रुद्राः॑ । ऋ॒भु॒क्ष॒णः॒ । दमे॑ । उ॒त । प्रऽचे॑तसः । मदे॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यूयं हि ष्ठा सुदानवो रुद्रा ऋभुक्षणो दमे । उत प्रचेतसो मदे ॥
स्वर रहित पद पाठयूयम् । हि । स्थ । सुऽदानवः । रुद्राः । ऋभुक्षणः । दमे । उत । प्रऽचेतसः । मदे ॥ ८.७.१२
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 12
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 20; मन्त्र » 2
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अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 20; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
कुतः (यूयम्, सुदानवः, हि, स्थ) यूयं शोभनदाना एव स्थ (रुद्राः) खलानां रोदयिता (दमे, ऋभुक्षिणः) दमनशक्तौ तेजस्विनः (उत) अथ (मदे) हर्षे प्रजानां (प्रचेतसः) जागरूकश्च स्थ ॥१२॥
विषयः
प्राणाः स्तूयन्ते ।
पदार्थः
उत=अपि च । हे प्राणाः ! यूयं हि । सुदानवः=शोभनदातारः । रुद्राः=पापानां रोदयितारः । ऋभुक्षणः=महान्तः । दमे=शरीरगृहे । स्थ । यूयं हि । मदे=ब्रह्मानन्दे । प्रचेतस=प्रकृष्टज्ञाना भवथ ॥१२ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(यूयम्) आप (सुदानवः) सुन्दर दानशील (हि, स्थ) हैं (रुद्राः) दुष्टों को रुलानेवाले (दमे, ऋभुक्षिणः) दमन के विषय में अति तेजस्वी (उत) और (मदे) प्रजाओं को हर्षित करने में (प्रचेतसः) जागरूक हैं ॥१२॥
भावार्थ
जो पुरुष दमन करने की शक्ति रखते हैं, वे ही उत्पाती, साहसी, लोगों का दमन करके प्रजा में शान्ति उत्पन्न कर सकते हैं, इसलिये ऐसे तेजस्वी पुरुषों की प्राप्ति के लिये परमात्मा से अवश्य प्रार्थना करनी चाहिये ॥१२॥
विषय
प्राणस्तुति कहते हैं ।
पदार्थ
(उत) और हे प्राणो ! (यूयम्+हि) निश्चय आप (दमे) इस शरीररूपी गृह में स्थित होकर (सुदानवः) सुन्दर दान देनेवाले (रुद्राः) पापों को रुलानेवाले होते हैं और (ऋभुक्षणः) महान् हैं (मदे) ब्रह्मानन्द में स्थित होकर (प्रचेतसः) परमज्ञानी होते हैं ॥१२ ॥
भावार्थ
जो कोई प्राणों अर्थात् इन्द्रियों को सदा शुभ कर्म में लगाते हैं, वे किन सुखों को न पाते और वे इस जगत् में महान् होते हैं । अतः हे मनुष्यों ! इनको अच्छे प्रकार जान और जितेन्द्रिय पुरुषों का आख्यान पढ़ अपने जीव को सफल बनाओ ॥१२ ॥
विषय
उन की तुलना से सज्जनों, वीरों के कर्तव्य ।
भावार्थ
हे ( सुदानवः ) शोभन दानशील एवं शत्रुओं का अच्छी प्रकार खण्डन करने वाले ( रुद्राः ) दुष्टों को रुलाने वाले ! ( ऋभुक्षणः ) सत्य का विवेचन 'ऋत' उत्तम अन्न, जल का ज्ञानवत् उपभोग और पालन करने वाले वीर, विद्वान् पुरुषो ! हे ( प्रचेतसः ) उत्कृष्ट ज्ञान और उत्तम चित्त वाले सदाशय पुरुषो ! ( यूयं हि ) आप लोग अवश्य ( दमे ) गृह में, शत्रुदमन के कार्य में (उत) और ( मदे ) समस्त प्रजाजनों को ज्ञान, अन्नादि से तृप्त, सुखी और आनन्दित करने में ( स्थ ) दत्तचित्त रहो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
पुनर्वत्सः काण्व ऋषिः॥ मरुतो देवताः॥ छन्दः—१, ३—५, ७—१३, १७—१९, २१, २८, ३०—३२, ३४ गायत्री । २, ६, १४, १६, २०,२२—२७, ३५, ३६ निचृद् गायत्री। १५ पादनिचृद् गायत्री। २९, ३३ आर्षी विराड् गायत्री षट्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
विषय
'सुदानु रुद्र ऋभुक्षा प्रचेतस्' प्राण
पदार्थ
[१] हे प्राणो ! (यूयम्) = आप (हि) = निश्चय से (सुदानवः) = [दाप् लवने] अच्छी प्रकार वासनाओं का विच्छेद करनेवाले (स्थ) = हो । (रुद्राः) = [रुत् द्र] रोगों को भगानेवाले हो तथा (दमे) = इस शरीर गृह में अथवा दमन के होने पर (ऋभुक्षणः) = विशाल ज्योति में निवास करनेवाले हो । प्राण शरीर को नीरोग बनाते हैं, मन को निर्मल तथा बुद्धि को तीव्र बनाते हैं। [२] (उत) = और (मदे) = हर्ष के निमित्त (प्रचेतसः) = प्रकृष्ट चेतनावाले होते हो। प्रकृष्ट चेतना को प्राप्त कराके ही आप हमारे जीवनों को उल्लासमय बनाते हो।
भावार्थ
भावार्थ- प्राण 'वासनाओं को काटनेवाले, रोगों को भगानेवाले, विशाल ज्ञान दीप्ति में निवासवाले व प्रकृष्ट चेतना को देनेवाले' हैं।
इंग्लिश (1)
Meaning
You are generous, uncompromising agents of justice and punishment, highly intelligent and scholarly. Stay that in your element in the field of peace and discipline, and in a state of exhilaration keep your soul and your brains about you.
मराठी (1)
भावार्थ
ज्या पुरुषांजवळ दमनाची शक्ती असते. तेच उत्पात करणाऱ्या साहसी लोकांचे दमन करून प्रजेत शांती उत्पन्न करू शकतात. त्यासाठी अशा तेजस्वी पुरुषाच्या प्राप्तीसाठी परमेश्वराला अवश्य प्रार्थना केली पाहिजे. ॥१२॥
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