ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 7/ मन्त्र 18
येना॒व तु॒र्वशं॒ यदुं॒ येन॒ कण्वं॑ धन॒स्पृत॑म् । रा॒ये सु तस्य॑ धीमहि ॥
स्वर सहित पद पाठयेन॑ । आ॒व । तु॒र्वश॑म् । येन॑ । कण्व॑म् । ध॒न॒ऽस्पृत॑म् । रा॒ये । सु । तस्य॑ । धी॒म॒हि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
येनाव तुर्वशं यदुं येन कण्वं धनस्पृतम् । राये सु तस्य धीमहि ॥
स्वर रहित पद पाठयेन । आव । तुर्वशम् । येन । कण्वम् । धनऽस्पृतम् । राये । सु । तस्य । धीमहि ॥ ८.७.१८
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 18
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 21; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 21; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(येन) येन रक्षणेन (तुर्वशम्, यदुम्) हिंसानाशकं जनं (आव) अरक्षत (येन) येन रक्षणेन च (धनस्पृतम्, कण्वम्) धनमिच्छन्तं विद्वांसं च आव (राये) धनाय (तस्य) तं रक्षणम् (सुधीमहि) सुष्ठु ध्यायाम ॥१८॥
विषयः
प्राणायामफलमाह ।
पदार्थः
हे मरुतः प्राणाः । येन व्यापारेण यूयम् । तुर्वशम्=दुर्वशम् । यदुम्=गमनशीलं मनः । आव=रक्षथ । अवतेर्लिटि मध्यमपुरुषबहुवचने रूपम् । येन । धनस्पृतम्= धनाभिलाषिणम् । कण्वमात्मानम् । अवथ । तस्य=तं व्यापारम् । राये=धनाय । सुधीमहि=शोभनं ध्यायाम ॥१८ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(येन) जिस रक्षण से (तुर्वशम्, यदुम्) हिंसा को नष्ट करनेवाले मनुष्य को (आव) रक्षित किया (येन) और जिस रक्षा से (धनस्पृतम्, कण्वम्) धन चाहनेवाले विद्वान् को रक्षित किया (राये) धन के निमित्त हम (तस्य) उस रक्षण को (सुधीमहि) सम्यक् स्मरण करते हैं ॥१८॥
भावार्थ
हे विद्वान् सैनिक नेताओ ! आप आध्यात्मिक विद्यावेत्ता विद्वानों के रक्षणार्थ अनन्त प्रकार के ऐश्वर्य्य प्रदान करते हैं, जिससे ब्रह्मविद्या की भले प्रकार उन्नति होती है ॥१८॥
विषय
प्राणायाम का फल कहते हैं ।
पदार्थ
हे प्राणो ! (येन) जिस व्यापार से (तुर्वशम्) कठिनता से विवश होनेवाले (यदुम्) अतिगमनशील मन की (आव) रक्षा करते हैं (येन) जिस व्यापार से आप (धनस्पृतम्) धनाभिलाषी (कण्वम्) आत्मा की रक्षा करते हैं (तस्य) उस व्यापार का (राये) सुखप्राप्ति के लिये (सु+धीमहि) अच्छे प्रकार ध्यान करें ॥१८ ॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश देता है कि हे मनुष्यों ! प्राणायाम से इन्द्रियसहित मन और आत्मा की रक्षा होती है, अतः प्रतिदिन उसका अभ्यास करो और इससे तुमको शान्ति मिलेगी, अतः उसका ध्यान सदा रक्खो ॥१८ ॥
विषय
उन की तुलना से सज्जनों, वीरों के कर्तव्य ।
भावार्थ
( येन ) जिस साधन से आप लोग ( तुर्वशं ) शत्रु के नाशक वा हिंसकों के वशकर्त्ता वा पुरुषार्थं चतुष्टय के इच्छुक ( यदुं ) यत्नशील, उद्योगी मनुष्य वर्ग को और (येन) जिस उपाय से ( धन-स्पृतं ) धन की कामना करने वाले वैश्य वर्ग और ( कण्वं ) विद्वान् उपदेष्टा ब्राह्मण वर्ग की ( आव ) रक्षा करते हो ( तस्य ) उसी उपाय का हम ( राये ) ऐश्वर्य के लाभ के लिये ( सु धीमहि ) अच्छी प्रकार धारण और विचार करें । इसी प्रकार वृष्टि जल से चारों वर्णों के जो उपकार हो सकते हैं उन सब का हम सदा ध्यान रक्खें और वर्षा के जल को व्यर्थ न जाने दिया करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
पुनर्वत्सः काण्व ऋषिः॥ मरुतो देवताः॥ छन्दः—१, ३—५, ७—१३, १७—१९, २१, २८, ३०—३२, ३४ गायत्री । २, ६, १४, १६, २०,२२—२७, ३५, ३६ निचृद् गायत्री। १५ पादनिचृद् गायत्री। २९, ३३ आर्षी विराड् गायत्री षट्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
विषय
'तुर्वश, यदु, कण्व, धनस्पृत्'
पदार्थ
[१] हे मरुतो [प्राणो] ! (येन) = जिस मार्ग से आप (तुर्वशम्) = त्वरा से शत्रुओं को वश में करनेवाले, (यदुम्) = यत्नशील मनुष्य को (आव) = रक्षित करते हो। (येन) = जिस मार्ग से (धनस्पृतम्) = धन के देनेवाले (कण्वम्) = मेधावी पुरुष को रक्षित करते हो। हम भी (राये) = ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिये (तस्य) = उस उपाय का (सुधीमहि) = सम्यक् धारण करते हैं। [२] वस्तुतः प्राणसाधना ही हमें 'तुर्वश, यदु, कण्व व धनस्पृत्' बनाती है । प्राणसाधना के द्वारा ही हम उस मार्ग पर चलने में भी समर्थ होते हैं जिस पर कि चलकर हम ऐश्वर्यों को प्राप्त करनेवाले होते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणसाधना करते हुए हम शत्रुओं को वश में करनेवाले, यत्नशील, मेधावी व धन के दाता बनें। ये प्राणसाधना ही हमें धन प्राप्ति की योग्यता प्राप्त कराये।
इंग्लिश (1)
Meaning
Of the Maruts, we solicit that wealth and power by which they protect the man fighting against violence and the wise sage who too prays for wealth and honour in the world.
मराठी (1)
भावार्थ
हे विद्वान सेनापतींनो, तुम्ही आध्यात्मिक विद्यावेत्ता विद्वानासाठी, त्याच्या रक्षणासाठी अनंत प्रकारचे ऐश्वर्य प्रदान करता. त्यामुळे ब्रह्मविद्येची चांगल्या प्रकारे उन्नती होते. ॥१८॥
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