अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 13
ऋषिः - अथर्वा
देवता - उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
1
सू॒नृता॒ संन॑तिः॒ क्षेमः॑ स्व॒धोर्जामृतं॒ सहः॑। उच्छि॑ष्टे॒ सर्वे॑ प्र॒त्यञ्चः॒ कामाः॒ कामे॑न तातृपुः ॥
स्वर सहित पद पाठसू॒नृता॑ । सम्ऽन॑ति: । क्षेम॑: । स्व॒धा । ऊ॒र्जा । अ॒मृत॑म् । सह॑: । उत्ऽशि॑ष्टे । सर्वे॑ । प्र॒त्यञ्च॑: । कामा॑: । कामे॑न । त॒तृ॒पु॒: ॥ ९.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
सूनृता संनतिः क्षेमः स्वधोर्जामृतं सहः। उच्छिष्टे सर्वे प्रत्यञ्चः कामाः कामेन तातृपुः ॥
स्वर रहित पद पाठसूनृता । सम्ऽनति: । क्षेम: । स्वधा । ऊर्जा । अमृतम् । सह: । उत्ऽशिष्टे । सर्वे । प्रत्यञ्च: । कामा: । कामेन । ततृपु: ॥ ९.१३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।
पदार्थ
(सूनृता) प्रिय सत्य वाणी, (संनतिः) यथावत् नम्रता, (क्षेमः) रक्षा, (स्वधा) अन्न, (ऊर्जा) पराक्रम, (सहः) बल और (अमृतम्) अमृत [मृत्यु वा दुःख से बचना अर्थात् पुरुषार्थ]। (सर्वे) [इन] सब (कामाः) कामनायोग्य विषयों ने (उच्छिष्टे) शेष [म० १। परमात्मा] में (प्रत्यञ्चः) व्याप कर (कामेन) इष्ट फल के साथ [मनुष्य को] (ततृपुः) तृप्त किया है ॥१३॥
भावार्थ
जो मनुष्य प्रिय सत्य वचन आदि के साथ आत्मिक और शारीरिक बल बढ़ाते हैं, वे परमात्मा के अनुग्रह से सब उत्तम कामनाएँ सिद्ध करते हैं ॥१३॥
टिप्पणी
१३−(सूनृता) अ० ३।१२।२। प्रियसत्यात्मिका वाक् (संनतिः) सम्यग् नम्रता (क्षेमः) परिरक्षणम् (स्वधा) अ० २।२९।९। अन्नम् (ऊर्जा) ऊर्ज बलप्राणनयोः-पचाद्यच्। पराक्रमः (अमृतम्) मरणराहित्यम् पौरुषम् (सहः) बलम् (उच्छिष्टे) (सर्वे) (प्रत्यञ्चः) अभिमुखमञ्चन्तः प्राप्नुवन्तः (कामाः) काम्यमानाः पदार्थाः (कामेन) इष्टफलेन (ततृपुः) तृप प्रीणने लिट्, सांहितिको दीर्घः। तर्पितवन्तः ॥
विषय
सूनृता-संनतिः
पदार्थ
१. (सूनृता) = प्रिय सत्यवाणी, (संनति:) = [फलस्य नतिः] फल-प्रासि [सत्यप्रतिष्ठायां सर्वक्रिया फलाश्रयत्वम्]-सत्य के होने पर क्रियाफल-प्राति, (क्षेम:) = उपनत फल का रक्षण, (स्वधा) = धारक अन्न, (ऊर्जा) = प्राणस्थापक बलदायी अन्न, (अमृतम्) = अमृतत्व प्रापक पीयूष [अभिनव पय-ताज़ा दूध] (सह:) = पराभिभवनक्षम बल-ये (सर्वे) = सब (कामा:) = काम्यमान फलविशेष (उच्छिष्टे) = उच्छिष्यमाण प्रभु में ही हैं। २. ये सब (प्रत्यञ्च:) = आत्माभिमुख प्राप्त होते हुए कामेन तातपः काम्यमान अभिलषित फल से यजमान को प्रीणित करते हैं।
भावार्थ
यज्ञशील पुरुष को 'सूनता, संनति, क्षेम, स्वधा, ऊर्जा, अमृत, सहः' ये सब कमनीय पदार्थ तृप्ति देनेवाले होते हैं।
भाषार्थ
(सूनृता) सत्यप्रियवाणी, (संनतिः) नम्रता तथा फल प्राप्ति, (क्षेम) कल्याण, (स्वधा) अन्न तथा स्वधारण सामर्थ्य, (ऊर्जा) बल और प्राणन, (अमृतम्) मोक्ष, (सहः) सहनशक्ति, सहिष्णुता,- (सर्वे) ये सब (उच्छिष्टे) उच्छिष्ट परमेश्वर (प्रत्यञ्चः) के प्रति समर्पित हैं। (कामाः) यतः सब कामनाएं (कामेन) परमेश्वर की कामना अर्थात् इच्छा द्वारा (तातृपुः) तृप्त होती है।
विषय
सर्वोपरि विराजमान उच्छिष्ट ब्रह्म का वर्णन।
भावार्थ
(सूनृता) उत्तम शुभ, सत्य वाणी (संनतिः) उत्तम भक्ति भाव अथवा उत्तम फल की प्राप्ति (क्षेमः) कल्याणमय वृद्धि, (स्वधा) अन्न, (ऊर्जा) बलकारी विशेष शक्ति (अमृतम्) परम आनन्द रूप अमृत और (सहः) बल और (सर्वे प्रत्यञ्चः कामाः) सब आत्मा में साक्षात् अनुभव होने वाली अभिलाषाएं जो (कामेन) काम्य फल से अथवा पूर्ण काम या पूर्वोक्त कामसूक्त में प्रतिपादित सर्वकाम परमात्मा के दर्शन से तृप्त हो जाते हैं वे सब (उच्छिष्टे) उस परमोत्कृष्ट परमात्मा में आश्रित हैं।
टिप्पणी
(च०) ‘तृम्पन्ति’ इति पैप्प० सं०। ‘क्षेम स्वधो’ इति बहुत्र।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। अध्यात्म उच्छिष्टो देवता। ६ पुरोष्णिग् बार्हतपरा, २१ स्वराड्, २२ विराट् पथ्याबृहती, ११ पथ्यापंक्तिः, १-५, ७-१०, २०, २२-२७ अनुष्टुभः। सप्तविंशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Ucchhishta, the Ultimate Absolute Brahma
Meaning
Truth and honesty of word and deed, reverence and humility, peace and protection, essential virtue and food for all, energy, immortality and the eternal joy of life, all these proceed from Brahma and return unto this Ultimate Divinity, and all the desires, plans and projects of humanity are fulfilled only by Its will and ultimate pleasure.
Translation
Pleasantness, compliance (samnati); comfort (ksema), custom (? svadha), refreshment, immortality, power - in the remant all occurring (pratyanc) desires are satisfied with desire.
Translation
Pratihara, Nidhana, Vishvajit and that which is Abhijit, Sahna and Atiratra and Dvadshah are remaining in Uchchhista. Let them be fruitful in me.
Translation
Pleasant, truthful speech, humility, protection, food, valour, enterprise strength, and all the desires that arise in the soul, rest in God. They satisfy the man with their desired fruit.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१३−(सूनृता) अ० ३।१२।२। प्रियसत्यात्मिका वाक् (संनतिः) सम्यग् नम्रता (क्षेमः) परिरक्षणम् (स्वधा) अ० २।२९।९। अन्नम् (ऊर्जा) ऊर्ज बलप्राणनयोः-पचाद्यच्। पराक्रमः (अमृतम्) मरणराहित्यम् पौरुषम् (सहः) बलम् (उच्छिष्टे) (सर्वे) (प्रत्यञ्चः) अभिमुखमञ्चन्तः प्राप्नुवन्तः (कामाः) काम्यमानाः पदार्थाः (कामेन) इष्टफलेन (ततृपुः) तृप प्रीणने लिट्, सांहितिको दीर्घः। तर्पितवन्तः ॥
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