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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 6
    ऋषिः - अथर्वा देवता - उच्छिष्टः, अध्यात्मम् छन्दः - पुरोष्णिग्बार्हतपरानुष्टुप् सूक्तम् - उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
    1

    ऐ॒न्द्रा॒ग्नं पा॑वमा॒नं म॒हाना॑म्नीर्महाव्र॒तम्। उच्छि॑ष्टे य॒ज्ञस्याङ्गा॑न्य॒न्तर्गर्भ॑ इव मा॒तरि॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऐ॒न्द्रा॒ग्नम् । पा॒व॒मा॒नम् । म॒हाऽना॑म्नी: । म॒हा॒ऽव्र॒तम् । उत्ऽशि॑ष्टे । य॒ज्ञस्य॑ । अङ्गा॑नि । अ॒न्त: । गर्भ॑:ऽइव । मा॒तरि॑ ॥९.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऐन्द्राग्नं पावमानं महानाम्नीर्महाव्रतम्। उच्छिष्टे यज्ञस्याङ्गान्यन्तर्गर्भ इव मातरि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ऐन्द्राग्नम् । पावमानम् । महाऽनाम्नी: । महाऽव्रतम् । उत्ऽशिष्टे । यज्ञस्य । अङ्गानि । अन्त: । गर्भ:ऽइव । मातरि ॥९.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 7; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

    पदार्थ

    (ऐन्द्राग्नम्) इन्द्र [मेघ] और अग्नि [सूर्य, बिजुली आदि] का ज्ञान, (पावमानम्) शुद्धिकारक वायु का ज्ञान, (महानाम्नीः) बड़े नामोंवाली [वेदविद्याएँ] और (महाव्रतम्) महाव्रत और (यज्ञस्य) यज्ञ [देवपूजा, सङ्गतिकरण और दानव्यवहार] के (अङ्गानि) सब अङ्ग (उच्छिष्टे) शेष [म० १। परमात्मा] में हैं, (इव) जैसे (मातरि अन्तः) माता के [उदर के] भीतर (गर्भः) गर्भ [रहता है] ॥६॥

    भावार्थ

    मनुष्य परमेश्वररचित पदार्थों और नियमों के ज्ञान को अपने में धारण करके वृद्धि करे, जैसे माता गर्भ को उदर में रखकर बढ़ाती है ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(ऐन्द्राग्नम्) इन्द्राग्नि-अण्। इन्द्रस्य मेघस्य, अग्नेः सूर्यविद्युतादेश्च ज्ञानम् (पावमानम्) पवमानस्य शुद्धिकारकस्य पवनस्य ज्ञानम् (महानाम्नीः) महान्ति नामानि यासु ता महानाम्न्यः। वेदवाण्याः (महाव्रतम्) पूजनीयं व्रतम् (उच्छिष्टे) (यज्ञस्य) देवपूजासङ्गतिकरणदानव्यवहारस्य (अङ्गानि) अवयवाः (अन्तः) मध्ये (गर्भः) (इव) (मातरि) ॥

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    विषय

    उच्छिष्टे यज्ञस्यांगानि

    पदार्थ

    १.(ऐन्द्राग्राम) = इन्द्र और अग्नि का स्तवन करनेवाला प्रात:सवन में प्रयुज्यमान साम, (पावमानम्) = तीनों सवनों में प्रयुज्यमान पवमान सोमदेवतावाला साम, (महानाम्नी:) = "विदा मघवन् विदा गातुं०' इत्यादि ऋचाएँ 'इन ऋचाओं में गाया जानेवाला शाक्वर साम', (महाव्रतम्) = 'राजन, गायत्र, बृहद, रथन्तर, भद्र' नामक पाँच सामों से क्रियमाण स्तोत्र। इसप्रकार 'ऐन्द्राग्न०' आदि (यज्ञस्य अंगानि) = यज्ञ के सब अंग (उच्छिष्टे अन्त:) = उच्छिष्यमाण प्रभु के अन्दर इसप्रकार रह रहे हैं. (इव) = जैसी (मातरि गर्भ:) = माता के गर्भ में सन्तान होती है। ब्रह्म में आश्रित होते हुए ये सब यज्ञ के अंश यज्ञ को समृद्ध करते हैं।

    भावार्थ

    ऐन्द्राग्न, पावमान, महानानी व महाव्रत आदि यज्ञ के सब अङ्ग उच्छिष्ट प्रभु में ही आश्रित हैं।

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    भाषार्थ

    (ऐन्द्राग्नम्) इन्द्र और अग्नि की स्तुति में गाया जाने वाला सामगान, (पावमानम्) सोमदेवता सम्बन्धी पवित्र करने वाला सोमगान, (महानाम्नीः) सामवेद सम्बन्धी "महानाम" परमेश्वर की स्तुति सम्बन्धी ऋचाएं, (महाव्रतम्) पांच सामों द्वारा की गई स्तुति - (यज्ञस्य) यज्ञ के (अङ्गानि) ये अङ्ग (उच्छिष्टे) उच्छिष्ट परमेश्वर के आश्रय में हैं, (इव) जैसे कि (गर्भः) (मातरि अन्तः) माता के आश्रय में होता है।

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    विषय

    सर्वोपरि विराजमान उच्छिष्ट ब्रह्म का वर्णन।

    भावार्थ

    (मातरि) माता के (अन्तर्गर्भः इव) भीतर के गर्भ में जिस प्रकार बालक के अंग पुष्ट होते हैं और बनते हैं उसी प्रकार (उच्छिष्टे) ‘उच्छिष्ट’ में (ऐन्द्राग्नम्) इन्द्र और अग्नि सम्बन्धी सामवेद के भाग (पावमानम्) पवमान सम्बन्धी सामवेद के भाग (महानाम्नीः) महानाम्नी नाम ऋचाएं (महाव्रतम्) साम का ‘महाव्रत’ नामक प्रकरण ये सब (यज्ञस्य अंगानि) यज्ञ के अंग हैं वे सब उसी परमात्मा के भीतर उत्पन्न होते और पुष्ट होते हैं।

    टिप्पणी

    ऐन्द्रकाण्ड, आग्नेयकाण्ड, पावमानकाण्ड और महानाम्नी आर्चिक महाव्रत नामक उत्तरार्चिक ये सामवेद के भाग हैं। वे सब ‘उच्छिष्ट’ नामक सर्वोत्कृष्ट परमात्मा के भीतर हैं। ये सब उसी की महिमा का वर्णन करते हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। अध्यात्म उच्छिष्टो देवता। ६ पुरोष्णिग् बार्हतपरा, २१ स्वराड्, २२ विराट् पथ्याबृहती, ११ पथ्यापंक्तिः, १-५, ७-१०, २०, २२-२७ अनुष्टुभः। सप्तविंशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Ucchhishta, the Ultimate Absolute Brahma

    Meaning

    The hymns in adoration of Indra and Agni, the ecstatic praise of Soma, hymns in praise of the Supreme Divine, the grand adoration with five songs of Sama, all parts of yajna, all these abide and nestle in Brahma like the baby in the mother’s womb.

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    Translation

    That relating to indra and Agni, that to the purifying (Soma) (pavamana), the ‘great-named ones (f., mahanamnis), the great ceremony (mahavrata)-- within the remenat are (all) the members of the sacrifice, like an embryo within a mother.

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    Translation

    Udgitha, Prastuta and Stuta, Hinkar, Svar Medi, the tone of Saman-all these remain in Uchchhista may the Uchchhista be in me.

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    Translation

    Agneya, Aindraya, Pavamanya Kandas (parts) of the Samaveda, the Mahanämni verses, and Mahavrat part of the Sämaveda, the parts of sacrifice, reside in God, as the unborn babe does in the womb of the mother.

    Footnote

    Agni, Indra, Pavmana Kandas occur in the first half of the Samaveda. Mahnämni verses, ten in number occur in between the first and second parts of the Samaveda. Mahavrata: verses which are given in the second half of the Samaveda, with which a long sacrifice (homa) is performed. This verse has thus been interpreted by Pt. Khem Karan Das Triveda: The knowledge of clouds, Sun, purifying air, grand, vedic verses, mighty resolves, all the parts of sacrifice, rest in God, as the unborn babe does in the womb of the mother.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(ऐन्द्राग्नम्) इन्द्राग्नि-अण्। इन्द्रस्य मेघस्य, अग्नेः सूर्यविद्युतादेश्च ज्ञानम् (पावमानम्) पवमानस्य शुद्धिकारकस्य पवनस्य ज्ञानम् (महानाम्नीः) महान्ति नामानि यासु ता महानाम्न्यः। वेदवाण्याः (महाव्रतम्) पूजनीयं व्रतम् (उच्छिष्टे) (यज्ञस्य) देवपूजासङ्गतिकरणदानव्यवहारस्य (अङ्गानि) अवयवाः (अन्तः) मध्ये (गर्भः) (इव) (मातरि) ॥

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