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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 27
    ऋषिः - अथर्वा देवता - उच्छिष्टः, अध्यात्मम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
    1

    दे॒वाः पि॒तरो॑ मनु॒ष्या गन्धर्वाप्स॒रस॑श्च॒ ये। उच्छि॑ष्टाज्जज्ञिरे॒ सर्वे॑ दि॒वि दे॒वा दि॑वि॒श्रितः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वा: । पि॒तर॑: । म॒नु॒ष्या᳡: । ग॒न्ध॒र्व॒ऽअ॒प्स॒रस॑: । च॒ । ये । उत्ऽशि॑ष्टात् । ज॒ज्ञि॒रे॒ । सर्वे॑ । दि॒वि । दे॒वा: । दि॒वि॒ऽश्रित॑: ॥९.२७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवाः पितरो मनुष्या गन्धर्वाप्सरसश्च ये। उच्छिष्टाज्जज्ञिरे सर्वे दिवि देवा दिविश्रितः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    देवा: । पितर: । मनुष्या: । गन्धर्वऽअप्सरस: । च । ये । उत्ऽशिष्टात् । जज्ञिरे । सर्वे । दिवि । देवा: । दिविऽश्रित: ॥९.२७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 7; मन्त्र » 27
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

    पदार्थ

    (देवाः) विद्वान् लोग, (पितरः) ज्ञानी लोग, (मनुष्याः) मननशील लोग (च) और (ये) जो (गन्धर्वाप्सरसः) गन्धर्व [पृथिवी के धारण करनेवाले] और अप्सर [आकाश में चलनेवाले पुरुष] हैं। [यह सब और] (दिवि) आकाश में [वर्तमान] (दिविश्रितः) सूर्य [के आकर्षण] में ठहरे हुए (सर्वे) सब (देवाः) गतिमान् लोक (उच्छिष्टात्) शेष [म० १। परमात्मा] से (जज्ञिरे) उत्पन्न हुए हैं ॥२७॥

    भावार्थ

    परमात्मा के सामर्थ्य से अनेक विद्वान् लोग और अनेक पदार्थ संसार में सुख बढ़ाने के लिये उत्पन्न हुए हैं ॥२७॥यह मन्त्र महर्षि दयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका पृष्ठ १३५, १३६ में व्याख्यात है ॥

    टिप्पणी

    २७−(देवाः) विद्वांसः (पितरः) ज्ञानिनः (मनुष्याः) मननशीलाः (गन्धर्वाप्सरसः) अ० ८।८।१५। गां पृथिवीं धरन्ति ये ते गन्धर्वाः। अप्सु आकाशे सरन्ति ते अप्सरसः। तथाभूताः पुरुषाः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    पदार्थ

    शब्दार्थ = ( देवा: ) = विद्वान् लोग  ( पितर: ) = ज्ञानी लोग  ( मनुष्या: ) = साधारण मनुष्य  ( च ) = और  ( गन्धर्वः ) = गानेवाले  ( अप्सरसः ) = आकाश में चलनेवाले पुरुष हैं, ये सब  ( दिवि ) = आकाश में वर्त्तमान  ( दिविश्रितः ) = सूर्य के आकर्षण में ठहरे हुए  ( सर्वे देवा: ) =  सब गतिमान् लोक  ( उच्छिष्टात् ) = परमात्मा से  ( जज्ञिरे ) = उत्पन्न हुए हैं। 

    भावार्थ

    भावार्थ = बड़े-बड़े भारी विद्वान् और पृथिवी आदि लोक ज्ञानी और मननशील मनुष्य, गाने बजानेवाले आकाश में विचरनेवाले पुरुष जो हैं ये सब, उस जगदीश्वर से उत्पन्न होकर सूर्य के आकर्षण में ठहरे हुए उस परमात्मा के आश्रय में वर्त्तमान हैं ।

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    विषय

    सर्वाधार प्रभु

    पदार्थ

    १. (यत् च) = जो भी प्राणिसमूह (प्राणेन प्राणति) = प्राणवायु से प्राणन-व्यापार करता है अथवा घ्राणेन्द्रिय से गन्धों को सँघता है, (यत् च) = और जो प्राणिसमूह (चक्षुषा पश्यति) = आँख से रूप को देखता है (सर्वे) = वे सब प्राणी (उच्छिष्टात् जजिरे) = उच्छिष्यमाण प्रभु से प्रादुर्भूत हुए हैं तथा (दिवि) = द्युलोक में स्थित (दिविश्रित:) = प्रकाशमय सूर्य के आकर्षण में श्रित (देवा:) = [दिव् गतौ] गतिमय लोक उस उच्छिष्ट प्रभु में ही आश्रित हैं। २. (ऋचः) = पादबद्ध मन्त्र, (सामानि) = गीतिविशिष्टमन्त्र, (छन्दांसि) = गायत्री आदि सातों छन्द, (यजुषा सह) = यज्ञ प्रतिपादक मन्त्रों के साथ (पुराणम्) = सृष्टि-निर्माण व प्रलयादि के प्रतिपादक मन्त्र ये सब उच्छिष्यमाण प्रभु में आश्रित हैं। २. (प्राणापानौ) = प्राण और अपान, (चक्षुः श्रोत्रम्) = आँख व कान, (अक्षिति: च) = क्षय का अभाव (या च क्षिति:) = और जो क्षय है, वह सब उच्छिष्ट प्रभु में आश्रित है। इसी प्रकार (आनन्दाः) = विषयोप भोगजनित सुख, (मोदा:) = विषयदर्शनजन्य हर्ष, (प्रमुदा:) = प्रकृष्ट विषयलाभजन्य हर्ष, (ये च) = और जो (अभीमोदमुद:) = [अभिमोदेन मोदयन्ति] संनिहित सुख हेतु पदार्थ हैं-ये सब उस प्रभु में आश्रित हैं। ३. (देवा:) = आठ वसु, ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य तथा इन्द्र और प्रजापति नामक तेतीस देव, (पितर:) = पालनात्मक कर्मों में प्रवृत्त रक्षक वर्ग, (मनुष्या:) = प्रभुमननपूर्वक धनार्जन करनेवाले मनुष्य, (गन्धर्व-अप्सरसः च ये) = जो वेदवाणी का धारण [गा धारयन्ति] और यज्ञादि कर्मों को करनेवाले [अप्सु सरन्ति] लोग हैं-ये सब उस प्रभु के आधार से ही रह रहे हैं।

    भावार्थ

    प्राणिमात्र व पदार्थमात्र के आधार वे प्रभु ही है, सब ज्ञानों व आनन्दों का आधार भी वही हैं।

    सर्वाधार प्रभु का स्मरण करता हुआ यह साधक अपने कर्तव्यमार्ग पर निरन्तर आगे बढ़ता है। कर्त्तव्य कर्म करने को ही अपना मार्ग समझनेवाला यह 'कौरुपथि' ही अगले सूक्त का ऋषि है। इस सूक्त का देवता 'अध्यात्मम् है, इसमें शरीर की रचना आदि का काव्यमय वर्णन है -

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    भाषार्थ

    (देवाः) विद्वान् लोग, (पितरः) गृहस्थी, (मनुष्याः) साधारण मनुष्य (ये गन्धर्वाः) जो गो अर्थात् पृथिवी का धारण करने वाले राजा आदि, (अप्सरसः च) और विस्तृत प्रजा में [उन की देख-भाल के लिये] सरण करने वाली उन की स्त्रियां, (सर्वे देवाः) तथा सब देव अर्थात् ज्योतियां (दिवि) जोकि द्युलोक में हैं, (दिविश्रितः) और द्युलोक में जिन का आश्रय है,—(उच्छिष्टात्) प्रलय में भी अवशिष्ट परमेश्वर से (जज्ञिरे) पैदा हुए है।

    टिप्पणी

    [देवाः = विद्वांसः। अप्सरसः= आपः (विस्तृत प्रजाः) +सर सः (सरण करने वाली)। अथवा गन्धर्वाप्सरसः = अग्निर्गन्धर्वः, ओषधयोऽप्स रसः। सूर्यो गन्धर्वः, मरीचयोऽप्सरसः। चन्द्रमाः गन्धर्वः, नक्षत्राण्यप्सरसः। वातो गन्धर्वः, आपः अप्सरसः। यज्ञो गन्धर्वः, दक्षिणा अप्सरसः। मनो गन्धर्वः, ऋक्सामान्यप्सरस: (यजु० १८।३८-४३)]।

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    विषय

    सर्वोपरि विराजमान उच्छिष्ट ब्रह्म का वर्णन।

    भावार्थ

    (देवाः) विद्वान् गण देव लोग (पितरः) पालक लोग, माता, पिता, पितामह, गुरु आदि (मनुष्याः) मनुष्य (गन्धर्वाप्सरसः च ये) और जो गन्धर्व, युवा पुरुष अप्सराएं युवतियें हैं (सर्वे देवा दिविश्रितः दिवि) समस्त आकाश में वर्त्तमान प्रकाशमान सूर्यादि पदार्थ सब (उच्छिष्टात् जज्ञिरे) उस सर्वोकृष्ट परमात्मा से ही उत्पन्न होते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। अध्यात्म उच्छिष्टो देवता। ६ पुरोष्णिग् बार्हतपरा, २१ स्वराड्, २२ विराट् पथ्याबृहती, ११ पथ्यापंक्तिः, १-५, ७-१०, २०, २२-२७ अनुष्टुभः। सप्तविंशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Ucchhishta, the Ultimate Absolute Brahma

    Meaning

    All the divinities of nature and humanity, Pitaras, parental sustainers of humanity, the ordinary people, sustainers of earth and the divine Word and culture, all fluent forces in flux, and all the divine virtues abiding and sustained in the light of heaven are born of the Ultimate, all comprehensive Brahma, first and last everlasting of all else that is.

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    Translation

    The gods, the Fathers, human beings, and they that are gandharvas and apsarases : from the remnant etc.etc.

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    Translation

    The men of wisdom, men of practical experiments and actions, human-beings, clouds and electricities and all the luminous forces having their stations in wonderous space of sky are created by Uchchhista, God who is over and above all physical and non-physical forces.

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    Translation

    The sages, the Father's men, rulers of the earth, those who fly in air, all luminous objects in heaven, and all emancipated souls spring from God.

    Footnote

    This verse has been translated by Maharshi Dayananda in the Rigveda, Adi Bhashya Bhumika pp. 135, 136. गंधर्व गां पृथिवीं भरन्ति, चे ते गन्धवाः। अप्सु आकाशे सरन्ति ये ते अप्सरसः ।

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २७−(देवाः) विद्वांसः (पितरः) ज्ञानिनः (मनुष्याः) मननशीलाः (गन्धर्वाप्सरसः) अ० ८।८।१५। गां पृथिवीं धरन्ति ये ते गन्धर्वाः। अप्सु आकाशे सरन्ति ते अप्सरसः। तथाभूताः पुरुषाः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    बंगाली (1)

    পদার্থ

    দেবাঃ পিতরো মনুষ্যা গন্ধর্বাপ্সরসশ্চ য়ে। 

    উচ্ছিষ্টাজ্জজ্ঞিরে সর্বে দিবি দেবা দিবিশ্রিতঃ ।।৩২।।

    (অথর্ব ১১।৭।২৭)

    পদার্থঃ (যে) যেসব (দেবাঃ) দিব্য শক্তিসমূহ, (পিতরঃ) পালনাত্মক কর্মে নিবৃত রক্ষকগণ, (মনুষ্যাঃ) মানুষ (চ) আর (গন্ধর্বঃ) বেদ বাণীর ধারণকারী  (চ) এবং (অপ্সরসঃ) কর্ম যজ্ঞের আচরণকারী, তারা সকলেই (দিবি) সেই দিব্য (দিবিশ্রিতঃ) পরমাত্মার আশ্রয়ে আশ্রিত। (সর্বে দেবা) সকল গতিমান লোক বা জগৎ (উচ্ছিষ্টাৎ) পরমাত্মা থেকে (জজ্ঞিরে) প্রকাশিত হয়েছে।

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ সকল প্রকার দিব্য শক্তি, পৃথিবী আদি লোক বা জগৎ, জ্ঞানী ও মননশীল মনুষ্য, বেদ বিদ্যা ধারণকারী এবং যজ্ঞের অনুষ্ঠানকারী যারা আছে, তারা সকলে সেই জগদীশ্বর থেকে উৎপন্ন হয়ে সেই দিব্য শক্তির আকর্ষণে সেই পরমাত্মার আশ্রয়ে বর্তমান আছে ।।৩২।।

     

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