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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 16
    ऋषिः - अथर्वा देवता - उच्छिष्टः, अध्यात्मम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
    1

    पि॒ता ज॑नि॒तुरुच्छि॒ष्टोऽसोः॒ पौत्रः॑ पिताम॒हः। स क्षि॑यति॒ विश्व॒स्येशा॑नो॒ वृषा॒ भूम्या॑मति॒घ्न्यः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पि॒ता । ज॒नि॒तु: । उत्ऽशि॑ष्ट: । असो॑: । पौत्र॑: । पि॒ता॒म॒ह: । स: । क्षि॒य॒ति॒ । विश्व॑स्य । ईशा॑न: । वृषा॑ । भूम्या॑म् । अ॒ति॒ऽघ्न्य᳡: ॥९.१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पिता जनितुरुच्छिष्टोऽसोः पौत्रः पितामहः। स क्षियति विश्वस्येशानो वृषा भूम्यामतिघ्न्यः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पिता । जनितु: । उत्ऽशिष्ट: । असो: । पौत्र: । पितामह: । स: । क्षियति । विश्वस्य । ईशान: । वृषा । भूम्याम् । अतिऽघ्न्य: ॥९.१६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 7; मन्त्र » 16
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

    पदार्थ

    (उच्छिष्टः) शेष [म० १। परमात्मा] (जनितुः) जनक [हमारे उत्पादक] का (पिता) पिता और (असोः) प्राण [हमारे जीवन] का (पौत्रः) पोता [पुत्र के पुत्र समान पीछे वर्तमान] और (पितामहः) दादा [पिता के पिता समान पहिले वर्तमान] है। (सः) वह (विश्वस्य) सबका (ईशानः) ईश्वर, (वृषा) महापराक्रमी [परमात्मा] (भूम्याम्) भूमि पर (अतिघ्न्यः) बिना हराया हुआ (क्षियति) बसता है ॥१६॥

    भावार्थ

    सर्वजनक, अनादि, अनन्त परमेश्वर सर्वविजयी है, उसकी उपासना सब मनुष्य करें ॥१६॥

    टिप्पणी

    १६−(पिता) जनकः (जनितुः) जनकस्य (उच्छिष्टः) म० १। परमात्मा (असोः) असु क्षेपणे-उन्। असुरिति प्राणनामास्तः शरीरे भवति-निरु० ३।८। प्राणस्य जीवनस्य (पौत्रः) पुत्रस्य पुत्रवत् पश्चाद्भावी (पितामहः) अ० ५।५।१। पितुः पितृसमानः प्रथमभवः (सः) (क्षियति) निवसति (विश्वस्य) सर्वस्य (ईशानः) ईश्वरः (वृषा) वृषु सेचने ऐश्वर्ये च-कनिन्। महापराक्रमी। इन्द्रः (भूम्याम्) पृथिव्याम् (अतिघ्न्यः) अघ्न्यादयश्च। उ० ४।११२। अति+हन हिंसागत्योः-यक्। अतिक्रान्तहननः। अहन्तव्यः। अजेयः ॥

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    विषय

    असोः 'पौत्र:-पितामह'

    पदार्थ

    १. (उच्छिष्ट:) = वह उच्छिष्यमाण प्रभु (जनितुः पिता) = जनकों का भी जनक [रक्षक] है। वह (पितामहः) = जनकों का भी जनक प्रभु (असो:) = प्राण का (पौत्रम्) = [पौत्रम् अस्य अस्ति इति] पोतृकर्म करनेवाला-पवित्रता का सम्पादक है। हमारे जीवनों को पवित्र करनेवाले वे प्रभु ही हैं। २. (स:) = वह (विश्वस्य ईशान:) = इस सम्पूर्ण संसार के ऐश्वर्यवाले प्रभु वृषा-सब सुखों का सेचन करनेवाले हैं। अतिध्य-हनन से ऊपर उठे हुए-अहननीय होते हुए वे प्रभुभूम्याम् क्षियति-इस पृथिवी पर निवास करते हैं-सब प्राणिशरीरों में वे प्रभु स्थित हो रहे हैं [अधियज्ञोऽहमेवात्र देहे देहभृतां वर। -गीता ८।४]।

    भावार्थ

    प्रभु जनकों के जनक हैं। ये पितामाह प्रभु प्राणों को पवित्र करनेवाले हैं। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के ईशान वे प्रभु सब सुखों के दाता हैं। अहननीय होते हुए वे सब प्राणिशरीरों में निवास कर रहे हैं।

    सूचना

    यहाँ 'पौत्रः पितामहः' शब्दों में विरोधाभास अलंकार द्रष्टव्य है।

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    भाषार्थ

    (उच्छिष्टः) प्रलय में भी अवशिष्ट रहने वाला परमेश्वर (जनितुः) उत्पादक पिता का (पिता) पिता है, (असोः) प्राण का (पौत्रः) पौत्र है, तो भी (पितामहः) हमारा पितामह है, हमारे पिताओं का भी पिता है। (विश्वस्य) विश्व का (ईशानः) अधीश्वर, (अतिघ्न्यः) हननातीत, अघ्न्य, अहन्तव्य, अविनाश्य, (वृषा) सुखवर्षी (सः) वह परमेश्वर (भूम्याम्) भूमि में (क्षियति) निवास करता है।

    टिप्पणी

    [असोः पौत्रः= प्राणायाम से संयम का परिपोषण होता है। संयम पूर्वक समाप्ति में परमेश्वर का प्रत्यक्ष होता है। अतः परमेश्वर प्राण अर्थात् प्राणायाम का पौत्र है। आठ योगाङ्गों में प्राणायाम के अनन्तर तीन अङ्ग होते हैं, धारण, ध्यान और समाधि। ये तीनों जब एक ध्येय में एकत्र होते हैं तो इन का नाम हो जाता है "संयम"। यथा "त्रयमेकत्र संयमः" (योग३।४)। इस प्रकार "प्राणायाम, संयम, और परमेश्वर का साक्षात्कार" इस क्रम से परमेश्वर है "असु अर्थात् प्राण का पौत्र]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Ucchhishta, the Ultimate Absolute Brahma

    Meaning

    Father of father, the Ultimate Brahma is the Grand-father. It is the grandson of Prana, that is, the third stage of spiritual experience after Pranayama, after Pratyahara and Samyama. Ultimate ruler of the universe, It abides everywhere in the world of existence, omnificent and inviolable.

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    Translation

    The remnant, father of the generator, of breath (asu) the grandson, grandfather — he dwells, ruler of all, an overpowering (? atighnya) bull upon the earth.

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    Translation

    Uphavya differently named as Somayaga, Vishuvan, verily known as Gavamayana, other Yajnas which are hidden in conscience or mind are revealed into practice and knowledge by the Uchchhista, Almighty God who is the father of fathers and the sustainer of the universe, He is the father of all father’s, he is the most powerful protector vital energy. He is the grandfather of all grandfathers. He is the administrator of whole universe. He is the giver of all pleasures and prosperities. He is not to be overpowered by anyone and he pervades the earth.

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    Translation

    God is our Father's sire, the grandson and grandfather of our life. Lord of the universe, the Powerful God dwells on the earth unconquerable.

    Footnote

    God is the grandfather of our life as He exists before us like our grandfather. He is the grandson of our soul, as He exists after our death, as our grandson does.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १६−(पिता) जनकः (जनितुः) जनकस्य (उच्छिष्टः) म० १। परमात्मा (असोः) असु क्षेपणे-उन्। असुरिति प्राणनामास्तः शरीरे भवति-निरु० ३।८। प्राणस्य जीवनस्य (पौत्रः) पुत्रस्य पुत्रवत् पश्चाद्भावी (पितामहः) अ० ५।५।१। पितुः पितृसमानः प्रथमभवः (सः) (क्षियति) निवसति (विश्वस्य) सर्वस्य (ईशानः) ईश्वरः (वृषा) वृषु सेचने ऐश्वर्ये च-कनिन्। महापराक्रमी। इन्द्रः (भूम्याम्) पृथिव्याम् (अतिघ्न्यः) अघ्न्यादयश्च। उ० ४।११२। अति+हन हिंसागत्योः-यक्। अतिक्रान्तहननः। अहन्तव्यः। अजेयः ॥

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