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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 21
    ऋषिः - अथर्वा देवता - उच्छिष्टः, अध्यात्मम् छन्दः - स्वराडनुष्टुप् सूक्तम् - उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
    1

    शर्क॑राः॒ सिक॑ता॒ अश्मा॑न॒ ओष॑धयो वी॒रुध॒स्तृणा॑। अ॒भ्राणि॑ वि॒द्युतो॑ व॒र्षमुच्छि॑ष्टे॒ संश्रि॑ता श्रि॒ता ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शर्क॑रा: । सिक॑ता: । अश्मा॑न: । ओष॑धय: । वी॒रुध॑: । तृणा॑ । अ॒भ्राणि॑ । वि॒ऽद्युत॑: । व॒र्षम् । उत्ऽशि॑ष्टे । सम्ऽश्रि॑ता । श्रि॒ता ॥९.२१।


    स्वर रहित मन्त्र

    शर्कराः सिकता अश्मान ओषधयो वीरुधस्तृणा। अभ्राणि विद्युतो वर्षमुच्छिष्टे संश्रिता श्रिता ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शर्करा: । सिकता: । अश्मान: । ओषधय: । वीरुध: । तृणा । अभ्राणि । विऽद्युत: । वर्षम् । उत्ऽशिष्टे । सम्ऽश्रिता । श्रिता ॥९.२१।

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 7; मन्त्र » 21
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    हिन्दी (4)

    विषय

    सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।

    पदार्थ

    (शर्कराः) कंकड़ आदि (अश्मानः) पत्थर, (सिकताः) बालू, (ओषधयः) ओषधें [अन्नादि], (वीरुधः) जड़ी-बूटियाँ, (तृणा) घासें, (अभ्राणि) बादल, (विद्युतः) बिजुलियाँ, (वर्षम्) बरसात, (संश्रिता) [ये सब] परस्पर आश्रित द्रव्य (उच्छिष्टे) शेष [म० १। परमात्मा] में (श्रिता) ठहरे हैं ॥२१॥

    भावार्थ

    मनुष्य परमेश्वर की महिमा को विचार कर कंकड़-पत्थर आदि पदार्थों से यथायोग्य कार्य सिद्ध करें ॥२१॥

    टिप्पणी

    २१−(शर्कराः) श्रः करन्। उ० ४।३। शॄ हिंसायाम्-करन्, टाप्। उपलखण्डाः (सिकताः) बालुकाः (अश्मानः) प्रस्तराः (ओषधयः) अन्नादयः (वीरुधः) विरोहणशीला लतादयः (तृणा) गवादिभक्षणानि (अभ्राणि) अभ्र गतौ-अच्। गतिमन्तो मेघाः (विद्युतः) तडितः (वर्षम्) वृष्टिः, (उच्छिष्टे) (संश्रिता) परस्परस्थितानि (श्रिता) स्थितानि ॥

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    विषय

    शर्करा: सिकताः

    पदार्थ

    १. (शर्करा:) = क्षुद्र पाषाणविशेष [बजरी], (सिकता:) = बालुका [रेत], (अश्मान:) = पत्थर, (ओषधयः) = व्रीहि-यव आदि ओषधियाँ, (वीरुधः) = लताएँ, (तृणा:) = गौ आदि से उपभोग्य घास, (अभ्राणि) = मेघ, (विद्युत:) = बिजली, (वर्षम्) = वृष्टि-ये सब (उच्छिष्टे) = उच्छिष्यमाण प्रभु में (संश्रिता) = समवस्थित हुए-हुए श्रिता-प्रभु के आश्रय में रह रहे हैं।

    भावार्थ

    'शर्करा, सिकता, पाषाण' आदि सब पदार्थों के आधार प्रभु ही हैं। । सूचना-'संश्रिता' का अर्थ अन्य 'स्वाश्रय समवेत पदार्थ' भी लिया जा सकता है। ये सब भी उस उच्छिष्ट में श्रिता-आश्रित हैं।

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    भाषार्थ

    (शर्कराः) पथरीली रेता अर्थात् बजरी, (सिकताः) रेता, (अश्मानः) पत्थर, (ओषधयः वीरुधः, तृणाः तृणानि) ओषधियाँ, लताएँ तथा घास, (अभ्राणि) मेघ, (विद्युतः) बिजलियां, (वर्षम्) तथा वर्षा (उच्छिष्टे) प्रलय में अवशिष्ट परमेश्वर में (श्रिताः) आश्रय पाएं हुए (संश्रिता) सम्यक् आश्रयवान् हुए-हुए हैं।

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    विषय

    सर्वोपरि विराजमान उच्छिष्ट ब्रह्म का वर्णन।

    भावार्थ

    (शर्कराः) बजरी, पथरीली बालू, (सिकताः) बालू (अश्मानः) पत्थर, (ओषधयः) ओषधियां, (वीरूधः) लताएं, (तृणा) घास, (अभ्राणि) मेघ, (विद्युतः) बिजुलियां, (वर्षम्) वर्षा ये सब (उच्छिष्टे) उस सर्वोत्कृष्ट परमेश्वर में (संश्रिता*) भली प्रकार आश्रय लेकर (श्रिता*) अपनी सत्ता बनाये हुए हैं, टिके हुए हैं।

    टिप्पणी

    (प्र०) ‘सिक्ताश्मान’ इति पैप्प० सं०। * नपुंसकमनपुंसकेनैकवच्चास्यान्यतरस्याम्। इति नपुंसकं शेषः।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। अध्यात्म उच्छिष्टो देवता। ६ पुरोष्णिग् बार्हतपरा, २१ स्वराड्, २२ विराट् पथ्याबृहती, ११ पथ्यापंक्तिः, १-५, ७-१०, २०, २२-२७ अनुष्टुभः। सप्तविंशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Ucchhishta, the Ultimate Absolute Brahma

    Meaning

    Gravel, sand, stone, herbs, creepers, grasses, clouds, lightning, rain, all abide at peace nestled in the Ultimate Brahma.

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    Translation

    Pebbles, gravel, : stones, herbs, plants, grasses, clouds, lightnings, rain -- in the remnant (are they) set together, set.

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    Translation

    Sand, pebbles, stones, herbs, creeping plants, grass, clouds, lightning, and rain are dependent and based on the (working and desire of) Uchchhista.

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    Translation

    Pebbles, sand, stones, and herbs, and plants, and grass rest in God. Closely embraced and laid therein are lightning’s and the clouds and rain.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २१−(शर्कराः) श्रः करन्। उ० ४।३। शॄ हिंसायाम्-करन्, टाप्। उपलखण्डाः (सिकताः) बालुकाः (अश्मानः) प्रस्तराः (ओषधयः) अन्नादयः (वीरुधः) विरोहणशीला लतादयः (तृणा) गवादिभक्षणानि (अभ्राणि) अभ्र गतौ-अच्। गतिमन्तो मेघाः (विद्युतः) तडितः (वर्षम्) वृष्टिः, (उच्छिष्टे) (संश्रिता) परस्परस्थितानि (श्रिता) स्थितानि ॥

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