अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 26
ऋषिः - अथर्वा
देवता - उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
1
आ॑न॒न्दा मोदाः॑ प्र॒मुदो॑ऽभिमोद॒मुद॑श्च॒ ये। उच्छि॑ष्टाज्जज्ञिरे॒ सर्वे॑ दि॒वि दे॒वा दि॑वि॒श्रितः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठआ॒ऽन॒न्दा: । मोदा॑: । प्र॒ऽमुद॑: । अ॒भि॒ऽमो॒द॒ऽमुद॑: । च॒ । ये । उत्ऽशि॑ष्टात् । ज॒ज्ञि॒रे॒ । सर्वे॑ । दि॒वि । दे॒वा: । दि॒वि॒ऽश्रित॑: ॥९.२६॥
स्वर रहित मन्त्र
आनन्दा मोदाः प्रमुदोऽभिमोदमुदश्च ये। उच्छिष्टाज्जज्ञिरे सर्वे दिवि देवा दिविश्रितः ॥
स्वर रहित पद पाठआऽनन्दा: । मोदा: । प्रऽमुद: । अभिऽमोदऽमुद: । च । ये । उत्ऽशिष्टात् । जज्ञिरे । सर्वे । दिवि । देवा: । दिविऽश्रित: ॥९.२६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।
पदार्थ
(आनन्दाः) आनन्द, (मोदाः) हर्ष, (प्रमुदः) बड़े आनन्द (च) और (ये) जो (अभिमोदमुदः) बड़े उत्सवों से हर्ष देनेवाले पदार्थ हैं। [यह सब और] (दिवि) आकाश में [वर्तमान] (दिविश्रितः) सूर्य [के आकर्षण] में ठहरे हुए (सर्वे) सब (देवाः) गतिमान् लोक (उच्छिष्टात्) शेष [म० १ परमात्मा] से (जज्ञिरे) उत्पन्न हुए हैं ॥२६॥
भावार्थ
परमेश्वर ने मनुष्य को अनेक प्रकार से आनन्द पाने के लिये अनेक आनन्दसाधन प्रदान किये हैं ॥२६॥
टिप्पणी
२६−(आनन्दाः) सुखविशेषाः (मोदाः) हर्षाः (प्रमुदः) प्रकृष्टहर्षाः (अभिमोदमुदः) अभिमोदैर्महोत्सवैर्हर्षयितारः पदार्थाः (च) (ये) अन्यत् पूर्ववत् ॥
विषय
सर्वाधार प्रभु
पदार्थ
१. (यत् च) = जो भी प्राणिसमूह (प्राणेन प्राणति) = प्राणवायु से प्राणन-व्यापार करता है अथवा घ्राणेन्द्रिय से गन्धों को सँघता है, (यत् च) = और जो प्राणिसमूह (चक्षुषा पश्यति) = आँख से रूप को देखता है (सर्वे) = वे सब प्राणी (उच्छिष्टात् जजिरे) = उच्छिष्यमाण प्रभु से प्रादुर्भूत हुए हैं तथा (दिवि) = द्युलोक में स्थित (दिविश्रित:) = प्रकाशमय सूर्य के आकर्षण में श्रित (देवा:) = [दिव् गतौ] गतिमय लोक उस उच्छिष्ट प्रभु में ही आश्रित हैं। २. (ऋचः) = पादबद्ध मन्त्र, (सामानि) = गीतिविशिष्टमन्त्र, (छन्दांसि) = गायत्री आदि सातों छन्द, (यजुषा सह) = यज्ञ प्रतिपादक मन्त्रों के साथ (पुराणम्) = सृष्टि-निर्माण व प्रलयादि के प्रतिपादक मन्त्र ये सब उच्छिष्यमाण प्रभु में आश्रित हैं। २. (प्राणापानौ) = प्राण और अपान, (चक्षुः श्रोत्रम्) = आँख व कान, (अक्षिति: च) = क्षय का अभाव (या च क्षिति:) = और जो क्षय है, वह सब उच्छिष्ट प्रभु में आश्रित है। इसी प्रकार (आनन्दाः) = विषयोप भोगजनित सुख, (मोदा:) = विषयदर्शनजन्य हर्ष, (प्रमुदा:) = प्रकृष्ट विषयलाभजन्य हर्ष, (ये च) = और जो (अभीमोदमुद:) = [अभिमोदेन मोदयन्ति] संनिहित सुख हेतु पदार्थ हैं-ये सब उस प्रभु में आश्रित हैं। ३. (देवा:) = आठ वसु, ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य तथा इन्द्र और प्रजापति नामक तेतीस देव, (पितर:) = पालनात्मक कर्मों में प्रवृत्त रक्षक वर्ग, (मनुष्या:) = प्रभुमननपूर्वक धनार्जन करनेवाले मनुष्य, (गन्धर्व-अप्सरसः च ये) = जो वेदवाणी का धारण [गा धारयन्ति] और यज्ञादि कर्मों को करनेवाले [अप्सु सरन्ति] लोग हैं-ये सब उस प्रभु के आधार से ही रह रहे हैं।
भावार्थ
प्राणिमात्र व पदार्थमात्र के आधार वे प्रभु ही है, सब ज्ञानों व आनन्दों का आधार भी वही हैं।
सर्वाधार प्रभु का स्मरण करता हुआ यह साधक अपने कर्तव्यमार्ग पर निरन्तर आगे बढ़ता है। कर्त्तव्य कर्म करने को ही अपना मार्ग समझनेवाला यह 'कौरुपथि' ही अगले सूक्त का ऋषि है। इस सूक्त का देवता 'अध्यात्मम् है, इसमें शरीर की रचना आदि का काव्यमय वर्णन है -
भाषार्थ
(आनन्दाः) समृद्धि के द्वारा उत्पन्न सुख विशेष या ब्रह्मोपासना द्वारा उत्पन्न आनन्दमयी चित्तवृत्तियां, (मोदाः प्रमोदाः) मानसिक मोद प्रमोद अर्थात् हर्ष, (ये) जो (अभीमोदमुदः च) और संमुख प्राप्तविषयजन्य हर्षातिरेक, (सर्वे देवाः) तथा सब देव (दिवि) जो कि द्युलोक में हैं, (दिविश्रितः) और द्युलोक में जिन का आश्रय है- (उच्छिष्टात्) प्रलय में भी अवशिष्ट परमेश्वर से (जज्ञिरे) पैदा हुए हैं।
विषय
सर्वोपरि विराजमान उच्छिष्ट ब्रह्म का वर्णन।
भावार्थ
(आनन्दाः) सब प्रकार के आनन्द (मोदाः) सब प्रकार के विनोद और हर्ष (प्रमुदः) विशेष हर्ष (अभीमोदमुदः) साक्षात् प्राप्य सुखों से उत्पन्न होने वाले आनन्द और
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। अध्यात्म उच्छिष्टो देवता। ६ पुरोष्णिग् बार्हतपरा, २१ स्वराड्, २२ विराट् पथ्याबृहती, ११ पथ्यापंक्तिः, १-५, ७-१०, २०, २२-२७ अनुष्टुभः। सप्तविंशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Ucchhishta, the Ultimate Absolute Brahma
Meaning
All ecstasy, pleasures, delights, happy celebrations and all the divinities abiding and sustained in the light of heaven are born of Ultimate Brahma.
Translation
Delights, joys, enjoymients and they that enjoy enjoyments; from the remnant etc.etc.
Translation
All pleasure and enjoyments, all sorts of delight, and rapturous ecstasies came from Uchchhista, God. Rest is like previous one.
Translation
All pleasures and enjoyments, all delights and rapturous ecstasies, all luminous objects in heaven, and all emancipated souls spring from God.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२६−(आनन्दाः) सुखविशेषाः (मोदाः) हर्षाः (प्रमुदः) प्रकृष्टहर्षाः (अभिमोदमुदः) अभिमोदैर्महोत्सवैर्हर्षयितारः पदार्थाः (च) (ये) अन्यत् पूर्ववत् ॥
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