अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 22
ऋषिः - अथर्वा
देवता - उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
छन्दः - विराट्पथ्याबृहती
सूक्तम् - उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
1
राद्धिः॒ प्राप्तिः॒ समा॑प्ति॒र्व्याप्ति॒र्मह॑ एध॒तुः। अत्या॑प्ति॒रुच्छि॑ष्टे॒ भूति॒श्चाहि॑ता॒ निहि॑ता हि॒ता ॥
स्वर सहित पद पाठराध्दि॑: । प्रऽआ॑प्ति: । सम्ऽआ॑प्ति: । विऽआ॑प्ति: । मह॑: । ए॒ध॒तु: । अति॑ऽआप्ति: । उत्ऽशि॑ष्टे । भूति॑: । च॒ । आऽहि॑ता । निऽहि॑ता । हि॒ता ॥९.२२॥
स्वर रहित मन्त्र
राद्धिः प्राप्तिः समाप्तिर्व्याप्तिर्मह एधतुः। अत्याप्तिरुच्छिष्टे भूतिश्चाहिता निहिता हिता ॥
स्वर रहित पद पाठराध्दि: । प्रऽआप्ति: । सम्ऽआप्ति: । विऽआप्ति: । मह: । एधतु: । अतिऽआप्ति: । उत्ऽशिष्टे । भूति: । च । आऽहिता । निऽहिता । हिता ॥९.२२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।
पदार्थ
(राद्धिः) अर्थसिद्धि, (प्राप्तिः) प्राप्ति [लाभ], (समाप्तिः) समाप्ति [पूर्ति], (व्याप्तिः) व्याप्ति [फैलाव], (महः) बड़ाई, (एधतुः) बढ़ती, (अत्याप्तिः) अत्यन्त प्राप्ति (च) और (आहिता) सब ओर से रक्खी हुई और (निहिता) गहरी रक्खी हुई (भूतिः) विभूति [सम्पत्ति] (उच्छिष्टे) शेष [म० १। परमात्मा] में (हिता) रक्खी हैं ॥२२॥
भावार्थ
मनुष्य परमेश्वर के आश्रय से अर्थसिद्धि आदि प्राप्त करके ऐश्वर्यवान् होवें ॥२२॥
टिप्पणी
२२−(राद्धिः) अर्थसिद्धिः (प्राप्तिः) लाभः (समाप्तिः) पूर्तिः (व्याप्तिः) विस्तृतिः (महः) महत्त्वम् (एधतुः) एधिवह्योश्चतुः। उ० १।७७। एध वृद्धौ−चतु। वृद्धिः (अत्याप्तिः) अत्यन्तप्राप्तिः (उच्छिष्टे) (आहिता) समन्ताद् धृता (निहिता) निक्षिप्ता (हिता) स्थिता ॥
विषय
प्राप्ति, समाति, व्याति
पदार्थ
१. (राद्धिः) = फल की सिद्धि, (प्राति:) = प्रेप्सित फल की प्राप्ति, (समाप्ति:) = कर्म की पूर्णता, (व्याप्ति:) = नाना मनोरथों के अनुरूप फलों की प्राप्ति, (मह:) = तेज, (एधतु:) = वृद्धि, (अत्यासि:) = आशातीत प्राप्ति, (भूति:) = समृद्धि जोकि (आहिता) = चारों ओर सूर्य आदि देवों में स्थापित है, अथवा जो (निहिता) = पर्वतकन्दराओं व भूगर्भ में सुरक्षित रक्खी है-वह सब (उच्छिष्टे हिता) = उच्छिष्यमाण प्रभु में स्थापित है।
भावार्थ
सब 'सिद्धि प्राप्ति, वृद्धि व भूति' के आधार प्रभु ही हैं।
भाषार्थ
(राद्धिः) सिद्धि, (प्राप्तिः) अभीष्ट की प्राप्ति, (समाप्तिः) क्रियमाण कर्म का पूरा होना, (व्याप्तिः) विविध कर्मों में व्यापृत रहना, (महः) महत्त्व, (एधतुः) वृद्धि, (अत्याप्तिः) आशातीत की प्राप्ति, (भूति) तथा सम्पत्ति, (उच्छिष्टे) प्रलय में भी अवशिष्ट परमेश्वर में (आहिता) स्थित हैं, (निहिता) निधिवत् सुरक्षित हैं, (हिता) स्थिरतया स्थित हैं।
टिप्पणी
["आहिता, निहिता, हिता" इन सब में विसर्ग लोप छान्दस है। हिता= हिताः= अथवा ये सब हमारे हितकर हैं]।
विषय
सर्वोपरि विराजमान उच्छिष्ट ब्रह्म का वर्णन।
भावार्थ
(राद्धिः) फल की सिद्धि या आराधना, (प्राप्तिः) परम फल की प्राप्ति, (समाप्तिः) सर्व कर्म की समाप्ति, (व्याप्तिः) नाना मनोरथानुरूप फलों को प्राप्त करना, (महः) तेज और आनन्द उत्सव करना, (एधतुः) वृद्धि, (अव्याप्तिः) आशा से अधिक फल पाना, (भूतिः) नाना समृद्धि, ये सब (उच्छिष्टे) उत्कृष्टतम परमेश्वर में (आहिता) स्थित होकर (निहिता) सुरक्षित है और इसीलिये (हिता) जीव लोक के हित कर भी हैं। अथवा (हिता निहिता) समस्त हितकारी पदार्थ भी उसी परमेश्वर में आश्रित हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। अध्यात्म उच्छिष्टो देवता। ६ पुरोष्णिग् बार्हतपरा, २१ स्वराड्, २२ विराट् पथ्याबृहती, ११ पथ्यापंक्तिः, १-५, ७-१०, २०, २२-२७ अनुष्टुभः। सप्तविंशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Ucchhishta, the Ultimate Absolute Brahma
Meaning
Success and prosperity, achievement, attain¬ ment, universality, greatness, progress, abundance, prosperity, all abide, withdrawn, resolved, sustained in Ultimate Brahma.
Translation
Success (riddhi), attainment, obtainment, permeation, greatness, prosperity (edhatu)-- in the remnant overattainment and growth (bhui) (is) put in, put down, put.
Translation
Success, acquisition and successfulness complete prosperity, greatness, progress, grain in abundance and wealth are placed, held and stored in Uchchhista.
Translation
Gain, acquisition, success, fullness, complete prosperity, great gain and wealth are laid, concealed and treasured, in God.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२२−(राद्धिः) अर्थसिद्धिः (प्राप्तिः) लाभः (समाप्तिः) पूर्तिः (व्याप्तिः) विस्तृतिः (महः) महत्त्वम् (एधतुः) एधिवह्योश्चतुः। उ० १।७७। एध वृद्धौ−चतु। वृद्धिः (अत्याप्तिः) अत्यन्तप्राप्तिः (उच्छिष्टे) (आहिता) समन्ताद् धृता (निहिता) निक्षिप्ता (हिता) स्थिता ॥
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