अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 14
ऋषिः - अथर्वा
देवता - उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
1
नव॒ भूमीः॑ समु॒द्रा उच्छि॑ष्टेऽधि॑ श्रि॒ता दिवः॑। आ॒ सूर्यो॑ भा॒त्युच्छि॑ष्टेऽहोरा॒त्रे अपि॒ तन्मयि॑ ॥
स्वर सहित पद पाठनव॑ । भूमी॑: । स॒मु॒द्रा: । उत्ऽशि॑ष्टे । अधि॑ । श्रि॒ता: । दिव॑: । आ । सूर्य॑: । भा॒ति॒ । उत्ऽशि॑ष्टे । अ॒हो॒रा॒त्रे इति॑ । अपि॑ । तत् । मयि॑ ॥९.१४॥
स्वर रहित मन्त्र
नव भूमीः समुद्रा उच्छिष्टेऽधि श्रिता दिवः। आ सूर्यो भात्युच्छिष्टेऽहोरात्रे अपि तन्मयि ॥
स्वर रहित पद पाठनव । भूमी: । समुद्रा: । उत्ऽशिष्टे । अधि । श्रिता: । दिव: । आ । सूर्य: । भाति । उत्ऽशिष्टे । अहोरात्रे इति । अपि । तत् । मयि ॥९.१४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।
पदार्थ
(नव) नौ [हमारे दो कान, दो आँख, दो नथने, मुख, पायु और उपस्थ इन नौ अर्थात् सब इन्द्रियों से जाने गये] (भूमीः) भूमि के देश, (समुद्राः) अन्तरिक्ष के लोक और (दिवः) प्रकाशमान लोक (उच्छिष्टे) शेष [म० १। परमात्मा] में (अधि) अधिकारपूर्वक (श्रिताः) ठहरे हैं। (सूर्यः) सूर्य (उच्छिष्टे) शेष [परमेश्वर] में (आ) सब ओर (भाति) चमकता है, और (अहोरात्रे) दिन-रात्रि (अपि) भी, (तत्) वह [उनका सुख] (मयि) मुझ [उपासक] में [होवे] ॥१४॥
भावार्थ
मनुष्य अपनी इन्द्रियों से विद्या द्वारा परमेश्वररचित भूमि आदि से यथावत् उपकार लेकर सुखी होवें ॥१४॥
टिप्पणी
१४−(नव) द्वे श्रोत्रे, चक्षुषी, नासिके, मुखम्, द्वे पायूपस्थे नवभिः शरीरच्छिद्रैर्ज्ञायमानाः-इत्यर्थः (भूमीः) भूमयः। भूमिदेशः। (समुद्राः) अन्तरिक्षलोकाः (उच्छिष्टे) म० १। शेषे। परमात्मनि (अधि) अधिकृत्य (श्रिताः) स्थिताः (दिवः) प्रकाशमाना लोकाः (आ) समन्तात् (सूर्यः) भास्करः (भाति) दीप्यते (उच्छिष्टे) अहोरात्रे रात्रिदिने (अपि) (तत्) सुखम् (मयि) उपासके ॥
विषय
भूमी:-समुद्रा:-दिवः
पदार्थ
१. (नव भूमी:) = नौ खण्डोंवाले ये पृथिवीलोक अथवा स्तुति के योग्य ये पृथिवीलोक, (समुद्रा:) = अन्तरिक्षस्थ लोक तथा (दिव:) = उपरितन धुलोक (उच्छिष्टे अधिश्रिता:) = उच्छिष्यमाण प्रभु में आश्रित हैं। यह (सूर्य:) = सूर्य तथा (अहोरात्रे अपि) = दिन-रात भी (उच्छिष्टे) = उस उच्छिष्ट प्रभु में ही (आभाति) = चमक रहे हैं। (तत्) = वह प्रभु (मयि) = मुझमें भी दीप्त हो-मैं भी प्रभु के प्रकाश से प्रकाशवाला बनें।
भावार्थ
पृथिवी, अन्तरिक्ष व धुलोक सभी प्रभु में आश्रित हैं। सूर्य व दिन-रात प्रभु में ही दीप्त होते हैं। प्रभु के आधार में मैं भी दीप्तिबाला बनूं।
भाषार्थ
(नव भूमीः) ९ भूमियां, (समुद्राः) सब समुद्र, (दिवः) तीन द्युलोक या द्युलोक के ३ खण्ड, (उच्छिष्टे अधि) प्रलय में अवशिष्ट ब्रह्म में (श्रिताः) आश्रित है। (सूर्यः) सूर्य (उच्छिष्टे) प्रलय में अवशिष्ट रहने वाले ब्रह्म में (आ भाति) प्रदीप्त होता है, (अहोरात्रे अपि) दिन और रात भी उच्छिष्ट में भासित होते हैं, परन्तु (तत्) वह ब्रह्म (मयि) मुझ में भासित होते हैं।
टिप्पणी
[नव भूमीः=इस के दो अभिप्राय हैं। एक यह कि पृथिवी एक अविभाज्य इकाई नहीं। यह ९ खण्डों में विभक्त है। ये खण्ड चलायमान हैं, और अपने स्थान बदलते रहते हैं, ऐसा वर्तमान वैज्ञानिक मानते हैं। सायण ने भी नवभूमीः का अर्थ किया है। "नवखण्डात्मिकाः पृथिव्यः, ९ खण्डरूप पृथिवियां, अर्थात् पृथिवी के ९ खण्डः। अथवा सौरमण्डल की ९ भूमियां; बुध, शुक्र, पृथिवी, मङ्गल, बृहस्पति, शनैश्चर, युरेनस (वरुण), नेपचून, चन्द्रमा। दिवः= तीन द्यौः, अथवा द्यौः के तीन भाग (देखो मत्कृत-अथर्ववेद-भाष्य १९।१।१०; १३।३।२१,१९।२७।३)। “नव भूमीः" के सम्बन्ध में, “हिन्दुस्तान टाईम्ज" अक्टूबर ४, १९८२ में प्रकाशित एक लेख में से निम्नलिखित उद्धरण विशेष प्रकाश डालते हैं-North-east India is gently moving eastward and is dipping under Burma, according to an analysis of the data of earthquakes that had taken place in the region during the last 75 years. Scientists claim to have found a belt where the Indian plate is dipping to. 200 K. M gently beneath the Burmese plate at an angle of 35 to 69 degrees. Academy of sciences carried out the investigations on the background of tectonic condition of the region. According to tectonic Theory, the crustal plates of the continents are broken and quakes are produced along plate boundrie rubbing each other. अर्थात् भारत का उत्तर-पूर्व भाग, शनैः-शनैः पूर्व की ओर सरक रहा है, और बर्मा के नीचे घुस रहा है। गत ७५ वर्षों में जो इस भाग में भूचाल आए हैं, उन के आधार पर यह परिणाम निकलता है। वैज्ञानिकों ने इस भू-भाग में ऐसा भाग पाया है जहां कि भारत भू-भाग, ३५ से ६९ डिग्री पर, २०० किलोमीटर, शनैः-शनैः, बर्मा के भूभाग में घुसता जा रहा है। पृथिवी के स्तरों की रचनानुसार, पृथिवी के भिन्न भिन्न महाखण्ड परस्पर विभक्त हैं, और जब ये खण्ड परस्पर रगड़ खाते हैं तो भूचाल पैदा होते हैं। वैज्ञानिकों की इस खोज के अनुसार मन्त्रगत "नव भूमीः" का अर्थ "नवखण्डात्मिकाः पृथिव्यः" ठीक प्रतीत होता है]।
विषय
सर्वोपरि विराजमान उच्छिष्ट ब्रह्म का वर्णन।
भावार्थ
(नव भूमीः) नव भूमियां (समुद्राः) समस्त समुद्र और (दिवः) सब आकाश के भाग भी (उच्छिष्टे अधि श्रिताः) उस उत्कृष्ट परमात्मा में आश्रित हैं। (उच्छिष्टे) उस परमात्मा के आश्रय में (सूर्यः आभाति) सूर्य प्रकाशमान हो रहा है। (अहोरात्रे अपि) दिन रात भी उसी पर आश्रित हैं। (तत् मयि) वह परमात्मा मुझ में, मेरे अन्तरात्मा में प्रकाशित हो।
टिप्पणी
(प्र०) ‘भूम्यां समुद्रस्योच्छिष्टे’ (च०) ‘रात्रे च तन्मयि’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। अध्यात्म उच्छिष्टो देवता। ६ पुरोष्णिग् बार्हतपरा, २१ स्वराड्, २२ विराट् पथ्याबृहती, ११ पथ्यापंक्तिः, १-५, ७-१०, २०, २२-२७ अनुष्टुभः। सप्तविंशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Ucchhishta, the Ultimate Absolute Brahma
Meaning
Nine-region earths of space, oceans of earths and space, all orders of the regions of light, abide and are sustained in the Ultimate Brahma. The sun shines in Brahma. The day and night abide in Brahma. I pray the same be in me, the same also is in me. I am the microcosm.
Translation
The nine earths, oceans, skies, are set (Srita) in the remnant; the sun shines in the remnant; day and night: also that in me.
Translation
Sweet truthful speech, reverence, peace, power or grain, strength, vigor and immortality and all the wishes which transcend the physical ones and are felt by soul are dependent on this Uchchhista.
Translation
Nine material forces, heavenly bodies, luminous planets take shelter in God. Bright shines the Sun in Him, Day and Night also rest in God, May He reside in my soul.
Footnote
Nine forces: Two eyes, two ears, two nostrils mouth, anus, penis.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१४−(नव) द्वे श्रोत्रे, चक्षुषी, नासिके, मुखम्, द्वे पायूपस्थे नवभिः शरीरच्छिद्रैर्ज्ञायमानाः-इत्यर्थः (भूमीः) भूमयः। भूमिदेशः। (समुद्राः) अन्तरिक्षलोकाः (उच्छिष्टे) म० १। शेषे। परमात्मनि (अधि) अधिकृत्य (श्रिताः) स्थिताः (दिवः) प्रकाशमाना लोकाः (आ) समन्तात् (सूर्यः) भास्करः (भाति) दीप्यते (उच्छिष्टे) अहोरात्रे रात्रिदिने (अपि) (तत्) सुखम् (मयि) उपासके ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal