अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 2
ऋषिः - अथर्वा
देवता - उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
3
उच्छि॑ष्टे॒ द्यावा॑पृथि॒वी विश्वं॑ भू॒तं स॒माहि॑तम्। आपः॑ समु॒द्र उच्छि॑ष्टे च॒न्द्रमा॒ वात॒ आहि॑तः ॥
स्वर सहित पद पाठउत्ऽशि॑ष्टे । द्यावा॑पृथि॒वी इति॑ । विश्व॑म् । भू॒तम् । स॒म्ऽआहि॑तम् । आप॑: । स॒मु॒द्र: । उत्ऽशि॑ष्टे । च॒न्द्रमा॑: । वात॑: । आऽहि॑त: ॥९.२॥
स्वर रहित मन्त्र
उच्छिष्टे द्यावापृथिवी विश्वं भूतं समाहितम्। आपः समुद्र उच्छिष्टे चन्द्रमा वात आहितः ॥
स्वर रहित पद पाठउत्ऽशिष्टे । द्यावापृथिवी इति । विश्वम् । भूतम् । सम्ऽआहितम् । आप: । समुद्र: । उत्ऽशिष्टे । चन्द्रमा: । वात: । आऽहित: ॥९.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।
पदार्थ
(उच्छिष्टे) शेष [अनन्त परमेश्वर] में (द्यावापृथिवी) सूर्य और पृथिवी और (विश्वम्) प्रत्येक (भूतम्) सत्तावाला (समाहितम्) एकत्र किया गया है। (उच्छिष्टे) शेष [जगदीश्वर] में (आपः) जलधाराएँ (समुद्रः) समुद्र, (चन्द्रमाः) चन्द्रमा (वातः) पवन (आहितः) रक्खा गया है ॥२॥
भावार्थ
स्पष्ट है ॥
टिप्पणी
२−(द्यावापृथिवी) द्यावापृथिव्यौ। सूर्यभूमी (विश्वम्) प्रत्येकम् (भूतम्) सत्तान्वितं द्रव्यम् (आपः) व्यापनशीला जलधाराः (समुद्रः) जलौघः (चन्द्रमाः) चन्द्रलोकः (वातः) वायुः। अन्यत् पूर्ववत्-म० १ ॥
पदार्थ
शब्दार्थ = ( उच्छिष्टे ) = उस परमात्मा में ( द्यावापृथिवी ) = द्युलोक, पृथिवी ( विश्वम् भूतम् ) = सब वस्तुमात्र ( समाहितम् ) = स्थित हैं। ( आप: ) = जल ( समुद्र ) = समुद्र ( चन्द्रमा ) = चन्द्रमा ( वातः ) = वायु ( उच्छिष्टे ) = उस परमात्मा में ( आहिता: ) = स्थित हैं।
भावार्थ
भावार्थ = उस परमेश्वर के आश्रय ही सब वस्तुमात्र ठहरी हुई हैं। उस परमात्मा के आश्रय, जल, समुद्र, चन्द्र और वायु ठहरा हुआ है, अर्थात् भूत भौतिक सारा संसार उस परमात्मा के आश्रय ही ठहरा हुआ है।
विषय
उच्छिष्टे द्यावापृथिवी
पदार्थ
१. (द्यावापृथिवी) = ये धुलोक व पृथिवीलोक (उच्छिष्टे) = प्रलय के बाद भी शिष्यमाण प्रभु में आश्रय करके रह रहे हैं। (विश्वं भूतम्) = इन द्यावापृथिवी के सब प्राणी (समाहितम्) = उच्छिष्ट में ही सम्यक् आहित हैं। (आप:) = ये जल व (समुद्गः) = समुद्र (चन्द्रमा:) = चन्द्र तथा (वात:) = वायु ये सब (उच्छिष्टे आहितः) = उस उच्छिष्यमाण प्रभु में ही आश्रित हैं।
भावार्थ
उच्छिष्ट प्रभु में ही द्यावापृथिवी, सब भूत, जल, समुद्र, चन्द्र व वायु आहित हैं।
भाषार्थ
(उच्छिष्टे) उत्कृष्ट शक्तिरूप में प्रलय में अवशिष्ट परमेश्वर में (द्यावापृथिवी) द्युलोक और पृथिवी स्थित हैं, (विश्वम्) समग्र (भूतम्) भूत-भौतिक पदार्थ उच्छिष्ट में (समाहितम्) सम्यक्तया स्थित हैं। (उच्छिष्टे) उच्छिष्ट में (आपः, समुद्रः चन्द्रमाः, वातः) जल, समुद्र, चन्द्रमा और वायु (आहितः) स्थित हैं।
विषय
सर्वोपरि विराजमान उच्छिष्ट ब्रह्म का वर्णन।
भावार्थ
(उच्छिष्टे द्यावापृथिवी) उस पूर्वोक्त ‘उच्छिष्ट’ नाम परब्रह्म में, आकाश और पृथिवी और (विश्वं भूतं समाहितम्) समस्त उत्पन्न कार्य- जगत् भी स्थित है। (आपः समुद्रः उच्छिष्टे) जल और समुद्र उसी ‘उच्छिष्ट’ में हैं और (वातः चन्द्रमाः आहितः) उसी ‘उच्छिष्ट’ में चन्द्रमा और वायु भी स्थित हैं।
टिप्पणी
(च०) ‘वाताहित’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। अध्यात्म उच्छिष्टो देवता। ६ पुरोष्णिग् बार्हतपरा, २१ स्वराड्, २२ विराट् पथ्याबृहती, ११ पथ्यापंक्तिः, १-५, ७-१०, २०, २२-२७ अनुष्टुभः। सप्तविंशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Ucchhishta, the Ultimate Absolute Brahma
Meaning
Earth and heaven abide in Ultimate Brahma. The entire world of existence, of thought, energy and matter, abides and moves therein. The waters, the sea, the moon, the wind, all abide and move in Brahma and are withdrawn into That.
Translation
In the remnant heaven and earth, all existence is set together; in the remnant the waters, the ocean, the moon, the wind is Set.
Translation
The heaven and the earth are held in Almighty God and all the creatures find their persistence in Him. Waters, sea the moon and air find them held in Him.
Translation
God holdeth Earth, Heaven, and all living substances. He holdeth waters, sea, Moon and Wind.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(द्यावापृथिवी) द्यावापृथिव्यौ। सूर्यभूमी (विश्वम्) प्रत्येकम् (भूतम्) सत्तान्वितं द्रव्यम् (आपः) व्यापनशीला जलधाराः (समुद्रः) जलौघः (चन्द्रमाः) चन्द्रलोकः (वातः) वायुः। अन्यत् पूर्ववत्-म० १ ॥
बंगाली (1)
পদার্থ
উচ্ছিষ্টে দ্যাবাপৃথিবী বিশ্বং ভূতং সমাহিতম্।
আপঃ সমুদ্র উচ্ছিষ্টে চন্দ্রমা বাত আহিতঃ ।।৩৫।।
(অথর্ব ১১।৭।২)
পদার্থঃ (উচ্ছিষ্টে) সেই পরমাত্মার মাঝেই (দ্যাবা পৃথিবী) দ্যুলোক, পৃথিবী (বিশ্বম্ ভূতম্) সকল বস্তুসমূহ (সমাহিতম্) আশ্রিত। (আপঃ) জল, (সমুদ্রঃ) সমুদ্র, (চন্দ্রমা) চন্দ্র, (বাতঃ) বায়ু (উচ্ছিষ্টে) সেই পরমাত্মার মাঝেই (আহিতঃ) আশ্রিত।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ সেই পরমেশ্বরের আশ্রয়েই সকল বস্তুসমূহ আশ্রিত আছে। সেই পরমাত্মার আশ্রয়েই জল, সমুদ্র, চন্দ্র ও বায়ু আশ্রিত আছে অর্থাৎ সকল ভূত সমগ্র ভৌতিক সংসার সেই পরমাত্মার আশ্রয়েই আশ্রিত ।।৩৫।।
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