अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 20
ऋषिः - अथर्वा
देवता - उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
1
अ॑र्धमा॒साश्च॒ मासा॑श्चार्त॒वा ऋ॒तुभिः॑ स॒ह। उच्छि॑ष्टे घो॒षिणी॒रापः॑ स्तनयि॒त्नुः श्रुति॑र्म॒ही ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒र्ध॒ऽमा॒सा: । च॒ । मासा॑: । च॒ । आ॒र्त॒वा: । ऋ॒तुऽभि॑: । स॒ह । उत्ऽशि॑ष्टे । घो॒षिणी॑: । आप॑: । स्त॒न॒यि॒त्नु: । श्रुति॑: । म॒ही ॥९.२०॥
स्वर रहित मन्त्र
अर्धमासाश्च मासाश्चार्तवा ऋतुभिः सह। उच्छिष्टे घोषिणीरापः स्तनयित्नुः श्रुतिर्मही ॥
स्वर रहित पद पाठअर्धऽमासा: । च । मासा: । च । आर्तवा: । ऋतुऽभि: । सह । उत्ऽशिष्टे । घोषिणी: । आप: । स्तनयित्नु: । श्रुति: । मही ॥९.२०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सब जगत् के कारण परमात्मा का उपदेश।
पदार्थ
(अर्धमासाः) आधे महीने (च) और (मासाः) महीने (च) और (ऋतुभिः सह) ऋतुओं के साथ (आर्तवाः) ऋतुओं के पदार्थ, (घोषिणीः) शब्द करनेवाली (आपः) जलधाराएँ, (स्तनयित्नुः) मेघ की गर्जन, (श्रुतिः) सुनने योग्य [वेदवाणी] और (मही) भूमि (उच्छिष्टे) शेष [म० १। परमात्मा] में हैं ॥२०॥
भावार्थ
परमेश्वर ने मनुष्य के सुख के लिये पखवाड़े, महीने, ऋतुएँ और ऋतुओं की उपज और अन्य सब पदार्थ उत्पन्न किये हैं ॥२०॥
टिप्पणी
२०−(अर्धमासाः) मासपक्षाः (च) (मासाः) चैत्राद्याः (आर्तवाः) ऋतुषु समुत्पन्नाः पदार्थाः (ऋतुभिः) वसन्तादिभिः (सह) (उच्छिष्टे) (घोषिणीः) शब्दवत्यः (आपः) जलधाराः (स्तनयित्नुः) अ० ४।१५।११। मेघध्वनिः (श्रुतिः) श्रवणीया वेदवाणी (मही) भूमिः ॥
विषय
अर्धमासाः च मासा: च
पदार्थ
१. (अर्धमासा:) = पन्द्रह दिनों से बने पक्ष, (मासा:) = चैत्र आदि महीने, (आर्तवा:) = ऋतुसम्बन्धी पदार्थ, (ऋतुभिः सह) = वसन्त आदि ऋतुओं के साथ (उच्छिष्टे) = उस उच्छिष्यमाण प्रभु में आश्रित हैं। (घोषिणी: आप:) = वे घोषयुक्त जल, (स्तनयित्नु:) = गर्जना करता हुआ मेघ तथा (मही श्रुति:) = यह महनीय [आदरणीय] वेदवाणी उस प्रभु में ही आश्रित हैं।
भावार्थ
'सब काल, उस-उस काल में होनेवाले पदार्थ, जल, मेघ व वेदवाणी' ये सब उच्छिष्यमाण प्रभु में आश्रित हैं।
भाषार्थ
(अर्धमासाः च) चान्द्र अर्धमास, (मासाः च) और मास, (ऋतुभिः सह, आर्तवाः) ऋतुओं के साथ ऋतुसमूह, (घोषिणीः आपः) शब्द करने वाले जल [सम्भवतः नदियों में बहने वाले वर्षा के जल], (स्तनयित्नुः) गर्जते मेघ, (मही) महती (श्रुतिः) वेदवाणी (उच्छिष्टे) उच्छिष्ट परमेश्वर में आश्रित हैं।
टिप्पणी
[श्रुतिः= वेदवाणी गुरुमुख से सुनी जाती है, अतः घोषमयी है। इसलिये श्रुति का वर्णन घोषिणीः आपः, तथा स्तनयित्नु के साथ हुआ है]।
विषय
सर्वोपरि विराजमान उच्छिष्ट ब्रह्म का वर्णन।
भावार्थ
(अर्धमासाः च) अर्धमास = पक्ष (मासाः च) मास, (ऋतुभिः सह आर्तवाः) ऋतुओं सहित ऋतुओं में उत्पन्न नाना पदार्थ (घोषणीः आपः) घोषणा या गर्जना करने वाली जलधाराएं (स्तनयि स्नुः) गर्जने हारा मेघ या बिजुली और (मही) बड़ी भारी यह पृथिवी और (श्रुतिः) परम ज्ञानमय वेद वाणी अथवा (मही श्रुति) बड़ी पूजनीय श्रुति, वेद वाणी ये सब (उच्छिष्टे) उत्कृष्ट परब्रह्म में ही आश्रित हैं। ये सब उसी की शक्ति के चमत्कार हैं।
टिप्पणी
(च०) ‘शुचिर्मही’ इति सायणाभिमतः।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। अध्यात्म उच्छिष्टो देवता। ६ पुरोष्णिग् बार्हतपरा, २१ स्वराड्, २२ विराट् पथ्याबृहती, ११ पथ्यापंक्तिः, १-५, ७-१०, २०, २२-२७ अनुष्टुभः। सप्तविंशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Ucchhishta, the Ultimate Absolute Brahma
Meaning
Half-months specially of the lunar year, months, seasonal activities along with the seasons, rippling, murmuring, roaring waters, thunder and lightning, and the grand voice of the Veda, all abide in the Ultimate Brahma.
Translation
Both the half-months and the months, the year divisions (artava) with the seasons; in the remnant (are) the noisy waters, the thunder, the great sound (? Sruti).
Translation
Half months, months, luxuriant products of the respective seasons with the season resonant waters thunder and the vedic speech and knowledge enjoying all respect and reverence are in the Uchchhista.
Translation
Half-months, months seasons along with their products, resonant waters, thundering clouds, Vedic speech and Earth all testify to the glory of God.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२०−(अर्धमासाः) मासपक्षाः (च) (मासाः) चैत्राद्याः (आर्तवाः) ऋतुषु समुत्पन्नाः पदार्थाः (ऋतुभिः) वसन्तादिभिः (सह) (उच्छिष्टे) (घोषिणीः) शब्दवत्यः (आपः) जलधाराः (स्तनयित्नुः) अ० ४।१५।११। मेघध्वनिः (श्रुतिः) श्रवणीया वेदवाणी (मही) भूमिः ॥
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