Loading...
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 36
    ऋषिः - अथर्वा देवता - भूमिः छन्दः - विपरीतपादलक्ष्मा पङ्क्तिः सूक्तम् - भूमि सूक्त
    0

    ग्री॒ष्मस्ते॑ भूमे व॒र्षाणि॑ श॒रद्धे॑म॒न्तः शिशि॑रो वस॒न्तः। ऋ॒तव॑स्ते॒ विहि॑ता हाय॒नीर॑होरा॒त्रे पृ॑थिवि नो दुहाताम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ग्री॒ष्म: । ते॒ । भू॒मे॒ । व॒र्षाणि॑ । श॒रत् । हे॒म॒न्त: । शिशि॑र: । व॒स॒न्त: । ऋ॒तव॑: । ते॒ । विऽहि॑ता: । हा॒य॒नी: । अ॒हो॒रा॒त्रे इति॑ । पृ॒थि॒वि॒ । न॒: । दु॒हा॒ता॒म् ॥१.३६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ग्रीष्मस्ते भूमे वर्षाणि शरद्धेमन्तः शिशिरो वसन्तः। ऋतवस्ते विहिता हायनीरहोरात्रे पृथिवि नो दुहाताम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ग्रीष्म: । ते । भूमे । वर्षाणि । शरत् । हेमन्त: । शिशिर: । वसन्त: । ऋतव: । ते । विऽहिता: । हायनी: । अहोरात्रे इति । पृथिवि । न: । दुहाताम् ॥१.३६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 1; मन्त्र » 36
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    राज्य की रक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    (भूमे) हे भूमि ! (ते) तेरे (ग्रीष्मः) घाम ऋतु [ज्येष्ठ-आषाढ़], (वर्षाणि) बरसा [श्रावण-भाद्र], (शरत्) शरद् ऋतु [आश्विन-कार्तिक], (हेमन्तः) शीतकाल [अग्रहायण-पौष], (शिशिरः) उतरता हुआ शीतकाल [माघ-फाल्गुन] और (वसन्तः) वसन्त काल [चैत्र-वैशाख] (ऋतवः) ऋतु हैं, [उनको] (पृथिवि) हे पृथिवी ! (विहिताः) विहित [स्थापित] (हायनीः) वर्षों, तक (ते) तेरे (अहोरात्रे) दिन-राति [दोनों] (नः) हमारे लिये (दुहाताम्) पूर्ण करें ॥३६॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को उचित है कि पृथिवी पर सब ऋतुओं में उचित कर्म करके पूर्ण आयु भागें ॥३६॥ इस मन्त्र का मिलान करो−अ० ६।५५।२ ॥

    टिप्पणी

    ३६−ग्रीष्मादयः शब्दा व्याख्याताः अ० ६।५५।२। (ग्रीष्मः) निदाघः। ज्येष्ठाषाढात्मकः कालः (ते) तव (भूमे) (वर्षाणि) श्रावणभाद्रात्मको मेघकालः (शरत्) आश्विनकार्तिकात्मकः कालः (हेमन्तः) अग्रहायणपौषात्मकः शीतकालः (शिशिरः) माघफाल्गुनात्मकः शीतान्तः कालः (वसन्तः) चैत्रवैशाखात्मकः पुष्पकालः (ऋतवः) कालभेदाः (ते) तव (विहिताः) विधृताः। विधिना बोधिताः (हायनीः) कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे। पा० २।३।५। इति द्वितीया। संवत्सरान् (अहोरात्रे) रात्रिदिने (पृथिवि) (नः) अस्मभ्यम् (दुहाताम्) पूरयताम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    ऋतुचक्र

    पदार्थ

    १. हे (भूमे) = भूमिमात: ! ('ग्रीष्मः, वर्षाणि, शरत, शिशिरः, वसन्त:') = ये ग्रीष्म आदि ऋतुएँ (ते) = तेरी हैं। ये (ते) = तेरी (ऋतवः) = ऋतुएँ (हायनी:) = प्रतिवर्ष आनेवाली (विहिता:) = की गई हैं। प्रतिवर्ष यह ऋतुचक्र तुझपर चलता है और वर्ष की पूर्ति होती है। २. हे (पृथिवि) = अतिशय विस्तारवाली भूमे! अहोरात्रे दिन व रात (न:) = हमारे लिए (दुहाताम्) = इन ऋतुओं का दोहन करनेवाले हों। इन ऋतुओं में हमें सदा उत्कृष्ट (ओषधि) = वनस्पति प्राप्त होती रहें।

    भावार्थ

    प्रभु ने इस पृथिवी पर प्रतिवर्ष चलनेवाले एक ऋतुचक्र का स्थापन किया है। दिन और रात हमारे लिए इस ऋतुचक्र से उत्तम ओषधियों-वनस्पतियों का दोहन करनेवाले हों।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (भूमे पृथिवी) हे उत्पादिका पृथिवी! (विहिताः) विधि पूर्वक स्थापित (ते) तेरी (ते) वे (ग्रीष्मः, वर्षाणि, शरद, हेमन्तः, शिशिरः, वसन्तः ऋतवः) ग्रीष्म, वर्षा, शरद् अर्थात् शीत, हेमन्त१ अर्थात् घातक शीत, शिशिर अर्थात् पतझड़ और वसन्त ऋतुएँ, (हायनीः) तथा अयनकालों की वर्षाएँ, (अहोरात्रे) तथा दिन और रातें (नः) हमें (दुहाताम्) अन्न आदि का दोहन करते रहें।

    टिप्पणी

    [ग्रीष्म =ज्येष्ठ और अषाढ़। वर्षा = श्रावण और भाद्र। शरद् = आश्विन और कार्तिक। हेमन्त = मार्गशीर्ष और पौष। शिशिर = माघ और फाल्गुण। वसन्त = चैत्र और वैशाख। हायनीः= स + अयनीः; स के स्थान में ह]। [१. हेमन्तः ="हन्तेर्मुट् हि च" (उणा० ३।१२९), "यो हन्ति शीतेन स हेमन्तः महर्षि दयानन्द।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पृथिवी सूक्त।

    भावार्थ

    हे (भूमे) भूमे ! (ते) तेरे निमित्त या तेरे द्वारा ही यह (ग्रीष्मः) ग्रीष्म ऋतु, (वर्षाणि) वर्षाएं, (शरत् हेमन्तः शिशिरः वसन्तः) शरत्, हेमन्त, शिशिर और वसन्त (ऋतवः विहिताः) ये ऋतुएं परमात्मा ने बनाई हैं। इसी प्रकार (ते हायनीः) तेरे द्वारा या तेरे निमित्त वर्ष और (अहोरात्रे) दिन और रात बने हैं। वे सब (नः दुहाताम्) हमें अभिलषित सुख, और सुखकारी पदार्थ अन्न फल आदि प्रदान करें, और हमें पूर्ण करें।

    टिप्पणी

    ‘हायना अहो’ इति ह्विटनिकामितः। ‘हायनाहोरात्रे’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। भूमिर्देवता। १ त्रिष्टुप्, २ भुरिक्, ४-६, १० त्र्यवसाना षट्पदा जगत्यः, ७ प्रस्तार पंक्तिः, ८, ११ व्यवसाने षट्पदे विराडष्टी, ९, परानुष्टुप्, १२ त्र्यवसने शक्वर्यौ। ६, १५ पञ्चपदा शक्वरी, १४ महाबृहती, १६, २१ एकावसाने साम्नीत्रिष्टुभौ, १८ त्र्यवसाना षट्पदा त्रिष्टुबनुष्टुब्गर्मातिशक्वरी, १९ पुरोबृहती, २२ त्र्यवसाना षट्पदा विराड् अतिजगती, २३ पञ्चपदा विराड् जगती, २४ पञ्चपदानुष्टुब्गर्भा जगती, २५ सप्तपदा उष्णिग् अनुष्टुब्गर्भा शक्वरी, २६-२८ अनुष्टुभः, ३० विराड् गायत्री ३२ पुरस्ताज्ज्योतिः, ३३, ३५, ३९, ४०, ५०, ५३, ५४,५६, ५९, ६३, अनुष्टुभः, ३४ त्र्यवसासना षट्पदा त्रिष्टुप् बृहतीगर्भातिजगती, ३६ विपरीतपादलक्ष्मा पंक्तिः, ३७ पंचपदा व्यवसाना शक्वरी ३८ त्र्यवसाना षट्पदा जगती, ४१ सप्तपदा ककुम्मती शक्वरी, ४२ स्वराडनुष्टुप्, ४३ विराड् आस्तार पंक्तिः ४४, ४५, ४९ जगत्यः, षट्पदाऽनुष्टुबगर्भा परा शक्वरी ४७ षट्पदा विराड् अनुष्टुब् गर्भापरातिशक्वरी ४८ पुरोऽनुष्टुप्, ५० अनुष्टुप्, ५१ व्यवसाना षट्पदा अनुष्टुब्गर्भा ककुम्मती शक्वरी, ५२ पञ्चपदाऽनुष्टुब्गर्भापरातिजगती, ५३ पुरोबृहती अनुष्टुप् ५७, ५८ पुरस्ताद्बृहत्यौ, ६१ पुरोवार्हता, ६२ पराविराट, १, ३, १३, १७, २०, २९, ३१, ४६, ५५, ६०, त्रिष्टुभः। त्रिषष्टयृचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मन्त्रार्थ

    (भूमे-ते-हायनी:-ग्रीष्मः-वर्षाणि शरत्-हेमन्तः-शिशिरः-वसन्तः-ऋतवः-ते विहिता:) भूमि ! तेरी प्रतिवर्ष होने वाली ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त, शिशिर, वसन्त ऋतुएं कही गई हैं (पृथिवि-अहोरात्रे न:-दुहाताम्) वे दिन-रात्रि हमारे लिए सुख का दोहन करें ॥३६॥

    विशेष

    ऋषिः- अथर्वा (स्थिर ज्ञान वाला ) देवता - भूमिः ( पृथिवी )

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Song of Mother Earth

    Meaning

    O Motherland, expansive Mother Earth, may your seasons, summers, rains, autumns, winters, freezing winters and springs in the yearly cycle and the days and nights be generous and give profuse showers of nature’s gifts to us.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Let thy hot season, O earth, rainy season, autumn, winter, - cool season, spring — let thine arranged seasons, years, let day and night, O earth, yield milk to us.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    The summer, the rains, the autumn, the winter, the forest and the spring are the seasons due to (the motions of the) Earth, On the spacious land of this mother earth may the years of our life assigned by Providential dispensation be completed by her days and nights.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O vast motherland, God hath created for thee, the summer, rainy, autumn, winter, dewy and spring seasons, years, day and night! may they all pour out abundance for us.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३६−ग्रीष्मादयः शब्दा व्याख्याताः अ० ६।५५।२। (ग्रीष्मः) निदाघः। ज्येष्ठाषाढात्मकः कालः (ते) तव (भूमे) (वर्षाणि) श्रावणभाद्रात्मको मेघकालः (शरत्) आश्विनकार्तिकात्मकः कालः (हेमन्तः) अग्रहायणपौषात्मकः शीतकालः (शिशिरः) माघफाल्गुनात्मकः शीतान्तः कालः (वसन्तः) चैत्रवैशाखात्मकः पुष्पकालः (ऋतवः) कालभेदाः (ते) तव (विहिताः) विधृताः। विधिना बोधिताः (हायनीः) कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे। पा० २।३।५। इति द्वितीया। संवत्सरान् (अहोरात्रे) रात्रिदिने (पृथिवि) (नः) अस्मभ्यम् (दुहाताम्) पूरयताम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top