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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 40
    ऋषिः - अथर्वा देवता - भूमिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - भूमि सूक्त
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    सा नो॒ भूमि॒रा दि॑शतु॒ यद्धनं॑ का॒मया॑महे। भगो॑ अनु॒प्रयु॑ङ्क्ता॒मिन्द्र॑ एतु पुरोग॒वः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सा । न॒: । भूमि॑: । आ । दि॒श॒तु॒ । यत् । धन॑म् । का॒मया॑महे । भग॑: । अ॒नु॒ऽप्रयु॑ङ्क्ताम् । इन्द्र॑: । ए॒तु॒ । पु॒र॒:ऽग॒व: ॥१.४०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सा नो भूमिरा दिशतु यद्धनं कामयामहे। भगो अनुप्रयुङ्क्तामिन्द्र एतु पुरोगवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सा । न: । भूमि: । आ । दिशतु । यत् । धनम् । कामयामहे । भग: । अनुऽप्रयुङ्क्ताम् । इन्द्र: । एतु । पुर:ऽगव: ॥१.४०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 1; मन्त्र » 40
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    राज्य की रक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    (सा भूमिः) वह भूमि (नः) हमको (धनम्) वह धन (आ) यथावत् (दिशतु) देवे, (यत्) जिसे (कामयामहे) हम चाहते हैं। (भगः) ऐश्वर्य [हमें] (अनुप्रयुङ्क्ताम्) निरन्तर मिले, (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् पुरुष (पुरोगवः) अग्रगामी होकर (एतु) चले ॥४०॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र का अन्वय मन्त्र ३८ और ३९ के साथ है। मनुष्य पृथिवी पर वीर, महात्मा, ब्राह्मणों, योगियों के अनुकरण से वेदविद्या प्राप्त करके ऐश्वर्यवान् होकर अग्रगामी होवें ॥४०॥

    टिप्पणी

    ४०−(सा) पूर्वोक्ता−म–० ३८, ३९ (नः) अस्मभ्यम् (भूमिः) (आ) समन्तात् (दिशतु) ददातु (यत्) (धनम्) (कामयामहे) इच्छामः (भगः) ऐश्वर्यम् (अनुप्रयुङ्क्ताम्) निरन्तरं प्राप्नोतु (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् पुरुषः (एतु) गच्छतु (पुरोगवः) गोरतद्धितलुकि। पा० ५।४।९२। इति पुरस्+गो समासे टच्। अग्रगामी सन् ॥

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    विषय

    इन्द्र के नेतृत्व में

    पदार्थ

    १. (सा भूमि:) = वह, गतमन्त्र के अनुसार यज्ञों व तपोवाली भूमि (न:) = हमारे लिए (यत् धनं कामयामहे) = जिस धन की कामना करे, उस धन को (आदिशतु) = सर्वथा प्रदान करे। (भग:) = वह भजनीय प्रभु (अनुप्रयुक्ताम्) = हमें शिक्षित करे [to give instruction]-हम प्रभु के निर्देश में चलें। (इन्द्रः) = वह शत्रुविद्रावक प्रभु ही (पुरोगवः एतु) = हमारा (अग्रगामी) = हो-हम प्रभु के अनुयायी बनें।

    भावार्थ

    जिस राष्ट्र में यज्ञ व तप का प्राधान्य होता है, वहाँ सब इष्ट धन प्राप्त होते हैं। हम तो यही चाहें कि प्रभु हमें मार्ग का निर्देश करें और हमारे पुरोगामी हों-हम प्रभु के अनुयायी बनें।

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    भाषार्थ

    (सा भूमिः) वह भूमि (नः) हमें (आदिशतु) दे, (यत् धनम्, कामयामहे) जिस धन की हम कामना करते हैं। (भगः) भगरूपी धन (अनुप्रयुङ्क्ताम्) पीछे लगे, और (इन्द्रः) सम्राट् (पुरोगवः) आगे चलने वाला हो कर (एतु) चले।

    टिप्पणी

    [शरीर के वेधस् अर्थात् विधाता ७ हैं, पांच ज्ञानेन्द्रियां, १ मन, और बुद्धि। ये जब सत्यमार्ग के अनुगामी हो जाते हैं तो ये ७ ऋषिरूप हो कर, यज्ञ और तपश्चर्या के साथ, जीवन-सत्र के द्वारा, वेद-वाणियों का उत्कृष्टरूप में गान कर, परमेश्वर की आराधना करते हैं। ये सात असत्यमार्ग के अनुगामी होकर न तो शरीर के विधाता बनते, और न ऋषि पदवी को पाते हैं। उस अवस्था में ये वृत्ररूप हो जाते हैं। ये ७ ऋषि शरीर की ही ७ शक्तियां है,– यह निम्नलिखित मन्त्र द्वारा ज्ञात होता हैं। यथा– "सप्त ऋषयः प्रतिहिताः शरीरे सप्त रक्षन्ति सदमप्रमादम्" (यजु० ३४।५५)। सत्र भी एक प्रकार के यज्ञ हैं जोकि “१३ दिनों से ले कर १०० दिनों में"१ सम्पादित होते हैं। पुरुष का १०० वर्षों का धार्मिक जीवन भी यज्ञरूप है, "पुरुषो वाव यज्ञः" (छान्दोग्य ३।१६)। १०० वर्षों का जीवन दीर्घसत्ररूप है। इस दीर्घसत्रमें यज्ञिय विचारों और तपश्चर्या के साथ परमेश्वर का उत्कृष्ट स्तवन करना चाहिये। भूतकृतः; भूत = Right, Proper, true (आप्टे) गाः; गौः वाङ्नाम (निघं० १।११); (३९), ऐसी भूमि (३९), हम भूमिवासियों के लिये काम्य धन प्रदान करती है, वह काम्य धन है भग; अर्थात् "ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य, यशसः श्रियः। ज्ञानवैराग्ययोश्चैव षण्णां भग इतीरणा। ये ६ भग है, जिस धन की कामना मन्त्र में कथित है। अर्थात् सब प्रकार का ऐश्वर्य, मकान, वस्त्र, अन्न, पशु सम्पत्ति आदि; धर्म; धर्म सम्पाद्य यश; शोभा; ज्ञान और वैराग्य अर्थात् त्यागमय जीवन। मन्त्र में कहा है कि इन भगों के उपार्जन में सम्राट् को अगुआ होना चाहिये, तव प्रजाजन भी इन भगों के अनुसार जीवनों को ढालेंगे] [१. आप्टे। सत्र १००० दिनों द्वारा भी सम्पादित होते हैं।]

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    विषय

    पृथिवी सूक्त।

    भावार्थ

    (यत्) जिस (धनम्) धन की हम (कामयामहे) कामना करें (सा) वह पूज्य, सर्वोत्पादक (भूमिः) भूमि (नः) हमें (आदिशतु) प्रदान करे। (भगः) ऐश्वर्यवान्, परमात्मा हमें (अनुप्रयुङ्क्ताम्) सदा सहायता करें और (इन्दः पुरोगवः एतु) इन्द्र, परमेश्वर ही हमारे सब कार्यों में अग्रगामी होकर रहे। अथवा, (भगः अनुप्रयुंक्ताम्) ऐश्वर्यवान् पुरुष हमारी सहायता करे, और (इन्द्रः पुरोगवः एतु) इन्द्र राजा हमारे सब कार्यों में अग्रसर हो।

    टिप्पणी

    (च०) ‘इन्द्रो यातु’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। भूमिर्देवता। १ त्रिष्टुप्, २ भुरिक्, ४-६, १० त्र्यवसाना षट्पदा जगत्यः, ७ प्रस्तार पंक्तिः, ८, ११ व्यवसाने षट्पदे विराडष्टी, ९, परानुष्टुप्, १२ त्र्यवसने शक्वर्यौ। ६, १५ पञ्चपदा शक्वरी, १४ महाबृहती, १६, २१ एकावसाने साम्नीत्रिष्टुभौ, १८ त्र्यवसाना षट्पदा त्रिष्टुबनुष्टुब्गर्मातिशक्वरी, १९ पुरोबृहती, २२ त्र्यवसाना षट्पदा विराड् अतिजगती, २३ पञ्चपदा विराड् जगती, २४ पञ्चपदानुष्टुब्गर्भा जगती, २५ सप्तपदा उष्णिग् अनुष्टुब्गर्भा शक्वरी, २६-२८ अनुष्टुभः, ३० विराड् गायत्री ३२ पुरस्ताज्ज्योतिः, ३३, ३५, ३९, ४०, ५०, ५३, ५४,५६, ५९, ६३, अनुष्टुभः, ३४ त्र्यवसासना षट्पदा त्रिष्टुप् बृहतीगर्भातिजगती, ३६ विपरीतपादलक्ष्मा पंक्तिः, ३७ पंचपदा व्यवसाना शक्वरी ३८ त्र्यवसाना षट्पदा जगती, ४१ सप्तपदा ककुम्मती शक्वरी, ४२ स्वराडनुष्टुप्, ४३ विराड् आस्तार पंक्तिः ४४, ४५, ४९ जगत्यः, षट्पदाऽनुष्टुबगर्भा परा शक्वरी ४७ षट्पदा विराड् अनुष्टुब् गर्भापरातिशक्वरी ४८ पुरोऽनुष्टुप्, ५० अनुष्टुप्, ५१ व्यवसाना षट्पदा अनुष्टुब्गर्भा ककुम्मती शक्वरी, ५२ पञ्चपदाऽनुष्टुब्गर्भापरातिजगती, ५३ पुरोबृहती अनुष्टुप् ५७, ५८ पुरस्ताद्बृहत्यौ, ६१ पुरोवार्हता, ६२ पराविराट, १, ३, १३, १७, २०, २९, ३१, ४६, ५५, ६०, त्रिष्टुभः। त्रिषष्टयृचं सूक्तम्॥

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    मन्त्रार्थ

    (यत्-धनं कामयामहे) हम जिस धन को चाहते हैं (सा भूमिः-न:-आदिशतु) वह यह भूमि हमारे लिए नियत करेंप्रदान करें (इन्द्रः-पुरोगवः एतु भगः-अनुप्रयुङ्क्ताम्) ऐश्वर्यवान् विश्वराट् परमात्मा या ऐश्वर्यवान् राजा हमारा पुरोगन्ता प्राप्त हो तो, भग-ऐश्वर्य भी अनुकूलरूप से प्रयुक्त हो जावे, काम में आवे ॥४०॥

    विशेष

    ऋषिः- अथर्वा (स्थिर ज्ञान वाला ) देवता - भूमिः ( पृथिवी )

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Song of Mother Earth

    Meaning

    That ancient Motherland may give us whatever wealth, honour and excellence we pray for, may Indra, Lord of glory, pioneer of great creative power, be with us, and then may the honour and grandeur of the world follow for us in the footsteps of Indra.

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    Translation

    Let that earth appoint unto us what riches we desire; let Bhaga join on after; let Indra go (as our) forerunner.

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    Translation

    May that mother earth be source of bestowing upon us that munificence which we crave after, let fortune be ever favorable to us, and may righteous men of worth be our leaders.

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    Translation

    May she, our Motherland, assign to us the opulence for which we yearn. May God aid us in every way, may He lead us on the right path.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४०−(सा) पूर्वोक्ता−म–० ३८, ३९ (नः) अस्मभ्यम् (भूमिः) (आ) समन्तात् (दिशतु) ददातु (यत्) (धनम्) (कामयामहे) इच्छामः (भगः) ऐश्वर्यम् (अनुप्रयुङ्क्ताम्) निरन्तरं प्राप्नोतु (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् पुरुषः (एतु) गच्छतु (पुरोगवः) गोरतद्धितलुकि। पा० ५।४।९२। इति पुरस्+गो समासे टच्। अग्रगामी सन् ॥

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