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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 62
    ऋषिः - अथर्वा देवता - भूमिः छन्दः - परानुष्टुप्त्रिष्टुप् सूक्तम् - भूमि सूक्त
    1

    उ॑प॒स्थास्ते॑ अनमी॒वा अ॑य॒क्ष्मा अ॒स्मभ्यं॑ सन्तु पृथिवि॒ प्रसू॑ताः। दी॒र्घं न॒ आयुः॑ प्रति॒बुध्य॑माना व॒यं तुभ्यं॑ बलि॒हृतः॑ स्याम ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒प॒ऽस्था: । ते॒ । अ॒न॒मी॒वा: । अ॒य॒क्ष्मा: । अ॒स्मभ्य॑म् । स॒न्तु॒ । पृ॒थि॒वि॒ । प्रऽसू॑ता: । दी॒र्घम् । न॒: । आयु॑: । प्र॒ति॒ऽबुध्य॑माना: । व॒यम् । तुभ्य॑म् । ब॒लि॒ऽहृत॑: । स्या॒म॒ ॥१.६२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उपस्थास्ते अनमीवा अयक्ष्मा अस्मभ्यं सन्तु पृथिवि प्रसूताः। दीर्घं न आयुः प्रतिबुध्यमाना वयं तुभ्यं बलिहृतः स्याम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उपऽस्था: । ते । अनमीवा: । अयक्ष्मा: । अस्मभ्यम् । सन्तु । पृथिवि । प्रऽसूता: । दीर्घम् । न: । आयु: । प्रतिऽबुध्यमाना: । वयम् । तुभ्यम् । बलिऽहृत: । स्याम ॥१.६२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 1; मन्त्र » 62
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    राज्य की रक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    (पृथिवी) हे पृथिवी ! (ते) तेरी (उपस्थाः) गोदें (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (अनमीवाः) नीरोग और (अयक्ष्माः) राजरोगरहित (प्रसूताः) उत्पन्न (सन्तु) होवें। (नः) अपने (आयुः) आयु [जीवन] को (दीर्घम्) दीर्घकाल तक (प्रतिबुध्यमानाः) जगाते हुए (वयम्) हम (तुभ्यम्) तेरे लिये (बलिहृतः) बलि [सेवा धर्म] देनेवाले (स्याम) रहें ॥६२॥

    भावार्थ

    मनुष्य प्रयत्नपूर्वक पृथिवी पर स्वस्थ और चेतन्य रहकर धर्म के साथ परस्पर पालन करें ॥६२॥

    टिप्पणी

    ६२−(उपस्थाः) क्रोडाः (ते) तव (अनमीवाः) रोगरहिताः (अयक्ष्माः) राजरोगशून्याः (अस्मभ्यम्) (सन्तु) (पृथिवि) (प्रसूताः) उत्पन्नाः (दीर्घम्) बहुकालपर्यन्तम् (नः) अस्माकम्। स्वकीयम् (आयुः) जीवनम् (प्रतिबुध्यमानाः) जागरणेन चेतयन्तः (वयम्) (तुभ्यम्) (बलिहृतः) बलेरुपायनस्य हारकाः। प्रापकाः (स्याम) भवेम ॥

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    विषय

    बलिहतः [स्याम]

    पदार्थ

    १. हे (पृथिवि) = भूमिमातः ! (ते उपस्था:) = तेरी गोद में स्थित होनेवाले गो-दुग्ध आदि पदार्थ तथा (प्रसूता:) = तुझसे उत्पन्न ये वनस्पति (अस्मभ्यम्) = हमारे लिए (अनमीवा:) = रोगों को न पैदा करनेवाले तथा (अयक्ष्मा:) = हृद्रोग के जनक (न सन्तु) = न हों। २. (न:) = हमारी (आयु:) = आयु (दीर्घम्) = दीर्घ हो-हम दीर्घजीवी बनें और (प्रतिबुध्यमाना:) = ज्ञान-प्राति द्वारा प्रतिबुद्ध होते हुए-अपने कर्तव्य कर्मों के प्रति जागरूक होते हुए (वयम्) = हम (तुभ्यम्) = हे पृथिवि ! तेरे लिए (बलिहत: स्याम) = बलि देनेवाले हों। तेरे रक्षण के द्वारा अपने रक्षण के लिए उचित कर आदि देनेवाले हों।

    भावार्थ

    पृथिवी पर होनेवाले गोदुग्ध, अन्नादि पदार्थ हमारे लिए नीरोगता देनेवाले हों। हम दीर्घ व प्रतिबुद्ध जीवनवाले होते हुए इस भूमिमाता के लिए बलि [कर] देनेवाले हों।

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    भाषार्थ

    (ते) तेरे (उपस्थाः) समीप-बैठने के स्थान, (अस्मभ्यम्) हमारे लिये; (अनमीवाः, अयक्ष्माः) रोग रहित तथा यक्ष्मा से रहित (सन्तु) हों, (पृथिवि) हे पृथिवी ! (प्रसूताः) हम तेरे उत्पन्न किये पुत्र हैं। (नः) हमारी (आयुः) आयु (दीर्घम्) बड़ी हो। (वयम्) हम (प्रतिबुध्यमानाः) प्रतिवोध को प्राप्त हुए, (तुभ्यम) तेरे लिये (बलिहृतः) राज्य-कर देने वाले (स्याम) हों।

    टिप्पणी

    [पृथिवी के रोग रहित होने पर पृथिवी के पुत्रों की आयु बढ़ जाती है। प्रत्येक पृथिवीवासी को प्रतिबोध प्राप्ति के लिये यत्न करना चाहिये। बोध और प्रतिबोध मानो जीवन में दो ऋषि हैं, जो कि सन्मार्ग दर्शाते हैं। यथा “ऋषी बोधप्रतीबोधावस्वप्नो यश्च जागृविः। तौ ते प्राणस्य गोप्तारौ दिवा नक्तं च जागृताम्॥ (अथर्व० ५।३०।१०)। बोध है ऐन्द्रियिक ज्ञान, सांसारिक ज्ञान, और प्रतीबोध है आध्यात्मिक ज्ञान। यथा “प्रतिबोधविदितं मतममृतत्त्वं हि विन्दते। बलिहृतः = बलिः = Tax, tribute, import, "प्रजानामेव भूत्यर्थ स ताभ्यो बलिमग्रहीत्" (रघुवंश १।१८)। मन्त्र में पृथिवी१ माता के निमित्त स्वेच्छापूर्वक राज्य-कर देने का विधान है। स्वेच्छया राज्यकर के दान में, जीवन में आध्यात्मिकता चाहिये। सांसारिकवृत्ति, स्वेच्छया राज्य कर देने में बधिका होती है] [१. वैदिक भावनानुसार “राज्यकर" भूमिमाता की सेवा तथा प्रजा की समुन्नति के लिये है, राज्यकर्मचारियों के भोगविलास के लिये नहीं।]

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    विषय

    पृथिवी सूक्त।

    भावार्थ

    हे (पृथिवि) पृथिवि ! (अस्मभ्यम्) हमारी (प्रसूताः) उत्पन्न सन्तान (ते उपस्थाः) तेरे उपर, तेरी गोद में रह कर सदा (अनमीवाः) रोग रहित, (अयक्ष्माः) तपेदिक् आदि से रहित सुखी, हृष्ट पुष्ट होकर (सन्तु) रहें। (नः आयुः) हमारी आयु (दीर्घम्) बड़ी लम्बी है ऐसे (प्रतिबुध्यमानाः) समझते हुए (वयं) हम (तुभ्यम्) तेरी रक्षा के लिये (बलिहृतः स्याम) भेट पूजा या कर देने वाले रहें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। भूमिर्देवता। १ त्रिष्टुप्, २ भुरिक्, ४-६, १० त्र्यवसाना षट्पदा जगत्यः, ७ प्रस्तार पंक्तिः, ८, ११ व्यवसाने षट्पदे विराडष्टी, ९, परानुष्टुप्, १२ त्र्यवसने शक्वर्यौ। ६, १५ पञ्चपदा शक्वरी, १४ महाबृहती, १६, २१ एकावसाने साम्नीत्रिष्टुभौ, १८ त्र्यवसाना षट्पदा त्रिष्टुबनुष्टुब्गर्मातिशक्वरी, १९ पुरोबृहती, २२ त्र्यवसाना षट्पदा विराड् अतिजगती, २३ पञ्चपदा विराड् जगती, २४ पञ्चपदानुष्टुब्गर्भा जगती, २५ सप्तपदा उष्णिग् अनुष्टुब्गर्भा शक्वरी, २६-२८ अनुष्टुभः, ३० विराड् गायत्री ३२ पुरस्ताज्ज्योतिः, ३३, ३५, ३९, ४०, ५०, ५३, ५४,५६, ५९, ६३, अनुष्टुभः, ३४ त्र्यवसासना षट्पदा त्रिष्टुप् बृहतीगर्भातिजगती, ३६ विपरीतपादलक्ष्मा पंक्तिः, ३७ पंचपदा व्यवसाना शक्वरी ३८ त्र्यवसाना षट्पदा जगती, ४१ सप्तपदा ककुम्मती शक्वरी, ४२ स्वराडनुष्टुप्, ४३ विराड् आस्तार पंक्तिः ४४, ४५, ४९ जगत्यः, षट्पदाऽनुष्टुबगर्भा परा शक्वरी ४७ षट्पदा विराड् अनुष्टुब् गर्भापरातिशक्वरी ४८ पुरोऽनुष्टुप्, ५० अनुष्टुप्, ५१ व्यवसाना षट्पदा अनुष्टुब्गर्भा ककुम्मती शक्वरी, ५२ पञ्चपदाऽनुष्टुब्गर्भापरातिजगती, ५३ पुरोबृहती अनुष्टुप् ५७, ५८ पुरस्ताद्बृहत्यौ, ६१ पुरोवार्हता, ६२ पराविराट, १, ३, १३, १७, २०, २९, ३१, ४६, ५५, ६०, त्रिष्टुभः। त्रिषष्टयृचं सूक्तम्॥

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    मन्त्रार्थ

    (पृथिवि ते प्रसूता:-उपस्थाः-अनमीवाः-अयक्ष्माः-अस्मभ्यं सन्तु) हे पृथिवि तेरे ऊपर प्रकट हुए उपस्थ-गोदरूप आश्रय स्थान कृमिरहित-रोगरहित हमारे लिए हों (नः-दीर्घम् आयुः) हमारे लिए दीर्घ आयु हो (वयं प्रतिबुध्यमानाः-तुभ्यं बलिहृतः स्याम) हम सावधान होते हुए तेरे लिए बलि बीजरूप अन्न की भेंट, पुनरुत्पत्ति के लिए देने वाले हों ॥६२॥

    विशेष

    ऋषिः- अथर्वा (स्थिर ज्ञान वाला ) देवता - भूमिः ( पृथिवी )

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Song of Mother Earth

    Meaning

    Earth Mother, let the wombs and bosoms of fertility, creativity and motherly care, bom, reborn and developed, be free from negativity and cancerous diseases. Let our life be long, full and healthy, and let us all, your children, awakened and enlightened, be homage bearers with reverence and gratitude to you.

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    Translation

    Let standers upon thee, free from disease, free from yaksma, be produced for us, O earth; awakening to meet our long lifetime, may we be tribute-bearers to thee.

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    Translation

    May the shelter the mother earth affords us on her bosom, be free from consumption and all other diseases. May we live our long life keeping ourselves wakeful and watching and paying her tribute of our service.

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    Translation

    O Motherland, let our children reared in thy lap, be free from sickness and consumption. May we live long, Wakeful, watching, may we sacrifice our all for thee!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६२−(उपस्थाः) क्रोडाः (ते) तव (अनमीवाः) रोगरहिताः (अयक्ष्माः) राजरोगशून्याः (अस्मभ्यम्) (सन्तु) (पृथिवि) (प्रसूताः) उत्पन्नाः (दीर्घम्) बहुकालपर्यन्तम् (नः) अस्माकम्। स्वकीयम् (आयुः) जीवनम् (प्रतिबुध्यमानाः) जागरणेन चेतयन्तः (वयम्) (तुभ्यम्) (बलिहृतः) बलेरुपायनस्य हारकाः। प्रापकाः (स्याम) भवेम ॥

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