Loading...
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 59
    ऋषिः - अथर्वा देवता - भूमिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - भूमि सूक्त
    0

    श॑न्ति॒वा सु॑र॒भिः स्यो॒ना की॒लालो॑ध्नी॒ पय॑स्वती। भूमि॒रधि॑ ब्रवीतु मे पृथि॒वी पय॑सा स॒ह ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श॒न्ति॒ऽवा । सु॒र॒भि: । स्यो॒ना । की॒लाल॑ऽऊध्नी । पय॑स्वती । भूमि॑: । अधि॑ । ब्र॒वी॒तु॒ । मे॒ । पृ॒थि॒वी॒ । पय॑सा । स॒ह ॥१.५९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शन्तिवा सुरभिः स्योना कीलालोध्नी पयस्वती। भूमिरधि ब्रवीतु मे पृथिवी पयसा सह ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शन्तिऽवा । सुरभि: । स्योना । कीलालऽऊध्नी । पयस्वती । भूमि: । अधि । ब्रवीतु । मे । पृथिवी । पयसा । सह ॥१.५९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 1; मन्त्र » 59
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    राज्य की रक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    (शन्तिवा) शान्तिवाली, (सुरभिः) ऐश्वर्यवाली, (स्योना) सुखदा, (कीलालोघ्नी) अमृतमय स्तनवाली (पयस्वती) दुधैल, (भूमिः) सर्वाधार (पृथिवी) पृथिवी (पयसा सह) अन्न के साथ (मे) मेरे लिये (अधि ब्रवीतु) अधिकारपूर्वक बोले ॥५९॥

    भावार्थ

    उद्योगी पुरुष परस्पर उपदेश करके पृथिवी से अनेक सुख प्राप्त करते और कराते हैं ॥५९॥

    टिप्पणी

    ५९−(शन्तिवा) अ० ३।३०।२। शान्तियुक्ता (सुरभिः) म० २३। ऐश्वर्यवती (स्योना) सुखप्रदा (कीलालोघ्नी) उधसोऽनङ्। पा० ५।४।१३१। कीलाल+ऊधस्−अनङ्। बहुव्रीहेरूधसो ङीष्। पा० ४।१।२५। इति ङीष्। अमृतस्तनी (पयस्वती) दुग्धवती (भूमिः) सर्वधाराः (अधि) अधिकृत्य (ब्रवीतु) वदतु (मे) मह्यम् (पृथिवी) विस्तृता भूमिः (पयसा) अन्नेन−निघ० २।७। (सह) ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    शान्ति, सुगन्ध, सुख, मधु व पयस्

    पदार्थ

    १. (शन्तिवा) = शान्ति-सम्पन्न, (सुरभिः) = उत्तम गन्ध से युक्त, (स्योना) = सुख देनेवाली, कीला (लोध्नी) = अमृतमय रस को-मधु को गाय की भाँति अपने थनों में [ऊधस्] धारण करनेवाली, (पयस्वती) = क्षीर-सम्पन्न (भूमि:) = प्राणियों का निवास स्थान [भवन्ति भूतानि यस्याम्] यह भूमि हो। २. यह (पृथिवी) = प्रथन-[विस्तार]-वाली भूमि (पयसा सह) = अपने ही आप्यायन [वर्धन] के साधनों के साथ मे (अधिनवीतु) = मुझे पुकारे, उसी प्रकार जैसेकि एक माता दूध का गिलास हाथ में लिये हुए एक बच्चे को पुकार रही होती है। यह पृथिवी मुझे भी 'पयस्' प्राप्त कराए।

    भावार्थ

    यह भूमिमाता हमारे लिए 'शान्ति, सुगन्ध, सुख व पयस्' प्राप्त कराए।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (शन्तिवा) शान्तिवाली, (सुरभिः) फुलवाड़ियों द्वारा सुगन्धित, (स्योना) सुखस्वरूपा, (कीलालोध्नी) स्तनों में दुग्धरूपी अन्नों वाली गौ के सदृश अन्नों वाली, (पयस्वती) जलसम्पन्ना, (भूमिः) उत्पादिका (पृथिवी) पृथिवी (मे) मुझे (अधि ब्रवीतु) अधिकार पूर्वक सदुपदेश किया करे, जैसेकि माता (पयसा सह) दूध पिलाने के साथ साथ शिशु को सदुपदेश सुनाती है।

    टिप्पणी

    [कीलालम् अन्ननाम (निघं० २।७)। पृथिवी पर शान्ति, फुलवाड़ियां, प्रभूत अन्न, तथा जल हो तो पृथिवी सुख देती है। तथा बच्चों की सदाचार-शिक्षा शिशुकाल से ही प्रारम्भ हो जानी चाहिये]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पृथिवी सूक्त।

    भावार्थ

    (शन्ति-वा) कल्याण और शान्तिसम्पन्न, (सुरभिः) उत्तम गन्ध से युक्त, (स्योना) सुखकारिणी, (कीलालोघ्नी) अमृतमय रस को गाय की तरह से अपने थानों में बरावर धारण करने वाली, (पयस्वती) क्षीर, अन्न आदि पुष्टिकारक पदार्थों से सम्पन्न (भूमिः) भूमि, सर्वव्यापक (पृथिवी) पृथिवी (पयसा सह) अपने समस्त पुष्टिकारक पदार्थों सहित (मे) मुझे (अधि ब्रवीतु) आशीर्वाद करे।

    टिप्पणी

    (प्र०) ‘सन्ति वा’ (तृ०) ‘भूमिर्नोऽधि’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। भूमिर्देवता। १ त्रिष्टुप्, २ भुरिक्, ४-६, १० त्र्यवसाना षट्पदा जगत्यः, ७ प्रस्तार पंक्तिः, ८, ११ व्यवसाने षट्पदे विराडष्टी, ९, परानुष्टुप्, १२ त्र्यवसने शक्वर्यौ। ६, १५ पञ्चपदा शक्वरी, १४ महाबृहती, १६, २१ एकावसाने साम्नीत्रिष्टुभौ, १८ त्र्यवसाना षट्पदा त्रिष्टुबनुष्टुब्गर्मातिशक्वरी, १९ पुरोबृहती, २२ त्र्यवसाना षट्पदा विराड् अतिजगती, २३ पञ्चपदा विराड् जगती, २४ पञ्चपदानुष्टुब्गर्भा जगती, २५ सप्तपदा उष्णिग् अनुष्टुब्गर्भा शक्वरी, २६-२८ अनुष्टुभः, ३० विराड् गायत्री ३२ पुरस्ताज्ज्योतिः, ३३, ३५, ३९, ४०, ५०, ५३, ५४,५६, ५९, ६३, अनुष्टुभः, ३४ त्र्यवसासना षट्पदा त्रिष्टुप् बृहतीगर्भातिजगती, ३६ विपरीतपादलक्ष्मा पंक्तिः, ३७ पंचपदा व्यवसाना शक्वरी ३८ त्र्यवसाना षट्पदा जगती, ४१ सप्तपदा ककुम्मती शक्वरी, ४२ स्वराडनुष्टुप्, ४३ विराड् आस्तार पंक्तिः ४४, ४५, ४९ जगत्यः, षट्पदाऽनुष्टुबगर्भा परा शक्वरी ४७ षट्पदा विराड् अनुष्टुब् गर्भापरातिशक्वरी ४८ पुरोऽनुष्टुप्, ५० अनुष्टुप्, ५१ व्यवसाना षट्पदा अनुष्टुब्गर्भा ककुम्मती शक्वरी, ५२ पञ्चपदाऽनुष्टुब्गर्भापरातिजगती, ५३ पुरोबृहती अनुष्टुप् ५७, ५८ पुरस्ताद्बृहत्यौ, ६१ पुरोवार्हता, ६२ पराविराट, १, ३, १३, १७, २०, २९, ३१, ४६, ५५, ६०, त्रिष्टुभः। त्रिषष्टयृचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मन्त्रार्थ

    (शान्तिवा-सुरभिः-स्योना) शान्तिवाली सुगन्धपूर्ण सुखकारी कीलालोघ्नी पयस्वती) अन्न जिसके उधस्-स्तन-स्थान में है "कीलालम् अन्ननाम" (निघ० २।७) जलवाली (भूमिः) पृथिवी (मे पयसा सह-अधिव्रवीवतु) उत्पत्ति करने वाली पृथिवी मेरे लिये अपने पयः-रस प्रदान से अधिकार वचन दे- स्वीकृति दे ॥५९॥

    विशेष

    ऋषिः- अथर्वा (स्थिर ज्ञान वाला ) देवता - भूमिः ( पृथिवी )

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Song of Mother Earth

    Meaning

    Peaceable, kind and beneficent, fragrant, gentle and blissful, overflowing with milk, food and water, may the expansive Earth Mother, with all her wealth of nourishments, speak to me and inspire me in the motherland.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Tranquil, fragrant, pleasant, with sweet drink in her udder, rich in milk, let earth bless me, earth together with milk.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May this mother earth who is spacious, the source of peace, powerfulness, happiness and has all nectar for living creatures, yields plenty of milk through kingdom of milk-giving animals, bestows on us all the eatables with juicy things.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May my vast motherland, mild, sweetly odorous, gracious, with food in her breast, full of milk and water, bestow her benison, with milk, on me.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५९−(शन्तिवा) अ० ३।३०।२। शान्तियुक्ता (सुरभिः) म० २३। ऐश्वर्यवती (स्योना) सुखप्रदा (कीलालोघ्नी) उधसोऽनङ्। पा० ५।४।१३१। कीलाल+ऊधस्−अनङ्। बहुव्रीहेरूधसो ङीष्। पा० ४।१।२५। इति ङीष्। अमृतस्तनी (पयस्वती) दुग्धवती (भूमिः) सर्वधाराः (अधि) अधिकृत्य (ब्रवीतु) वदतु (मे) मह्यम् (पृथिवी) विस्तृता भूमिः (पयसा) अन्नेन−निघ० २।७। (सह) ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top