ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 30/ मन्त्र 11
ऋषिः - वामदेवो गौतमः
देवता - इन्द्रउषाश्च
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
ए॒तद॑स्या॒ अनः॑ शये॒ सुसं॑पिष्टं॒ विपा॒श्या। स॒सार॑ सीं परा॒वतः॑ ॥११॥
स्वर सहित पद पाठए॒तत् । अ॒स्याः॒ । अनः॑ । श॒ये॒ । सुऽस॑म्पिष्टम् । विऽपा॑शि । आ । स॒सार॑ । सी॒म् । प॒रा॒ऽवतः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एतदस्या अनः शये सुसंपिष्टं विपाश्या। ससार सीं परावतः ॥११॥
स्वर रहित पद पाठएतत्। अस्याः। अनः। शये। सुऽसम्पिष्टम्। विऽपाशि। आ। ससार। सीम्। पराऽवतः ॥११॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 30; मन्त्र » 11
अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 21; मन्त्र » 1
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अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 21; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
[अथ] पुनः सूर्य्यविषयमाह ॥
अन्वयः
हे विद्वन् ! यथा सीमादित्योऽस्या उषस एतत् सुसम्पिष्टमनो विपाशि परावत आ ससार यस्यामहं शये तथैतां त्वं विजानीहि ॥११॥
पदार्थः
(एतत्) (अस्याः) उषसः (अनः) शकटमिव (शये) शयनं कुर्य्याम् (सुसम्पिष्टम्) सुष्ठ्वेकत्र पिष्टं यस्मिँस्तत् (विपाशि) विगतपाशे बन्धनरहिते मार्गे (आ) (ससार) समन्ताद्गच्छति (सीम्) आदित्यः (परावतः) दूरदेशात् ॥११॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा श्रेष्ठानि यानानि सद्यो दूरं यान्ति तथैवोषा दूरं गच्छतीति वेद्यम् ॥११॥
हिन्दी (3)
विषय
अब सूर्य्यविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे विद्वन् ! जैसे (सीम्) सूर्य्य (अस्याः) इस प्रातःकाल का (एतत्) यह (सुसम्पिष्टम्) उत्तम प्रकार एक स्थान में पीसा चूर्ण हो जिसमें उस अन्धकार को (अनः) गाड़ी के सदृश (विपाशि) बन्धनरहित मार्ग में (परावतः) दूर देश से (आ, ससार) सब प्रकार चलता है, जिसमें मैं (शये) शयन करूँ, वैसे इसको आप जानिये ॥११॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे श्रेष्ठ वाहन शीघ्र दूर जाते हैं, वैसे ही प्रातःकाल दूर जाता है, ऐसा जानना चाहिये ॥११॥
विषय
आत्मप्रेरणा
पदार्थ
[१] हम प्रातः जागें तो अपने को निम्न प्रकार से आत्मप्रेरणा देते हुए पूर्णतया जाग उठें कि (अस्याः) = इस उषा का (एतत्) = यह (अनः) = शकट (विपाशि) = एक-एक पाश के छिन्न-भिन्न कर देने पर (सुसम्पिष्टम्) = सम्यक् चूर्णित हुआ-हुआ (आशये) = इधर-उधर [चारों ओर] तितर-बितर हुआ पड़ा है । [२] यह उषा (सीम्) = निश्चय से (परावतः ससार) = सुदूर देश में निकल गई है। अब मैं जाग उठा हूँ। अपूर्ण जागृति उत्पन्न होनेवाली वासनाएँ अब मुझे सन्तप्त नहीं कर सकतीं।
भावार्थ
भावार्थ- हम उषा के शकट को तोड़कर सूर्य के रथ पर आरूढ़ हों, ताकि उसके प्रचण्ड प्रकाश में वासनान्धकार विलीन हो जाए।
विषय
धनैश्वर्य का विजय ।
भावार्थ
(अस्याः) इस सन्मुख खड़ी शत्रु सेना का (अनः) शकट रथादि समूह वा शकट के तुल्य सुदृढ़ व्यूह (विपाश्या) विविध रूप से पाटने वाली अपनी सेना से (सुसंपिष्टं शये) खूब चूर्णित, छिन्न भिन्न होकर, निश्चेष्ट होकर पड़ जाय, तब वह (परावतः) दूर २ देशों को (ससार) भाग जाय । (२) अध्यात्म में ‘विपाशी’ मुक्ति ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः ॥ १–८, १२–२४ इन्द्रः । ९-११ इन्द्र उषाश्च देवते ॥ छन्द:- १, ३, ५, ९, ११, १२, १६, १८, १९, २३ निचृद्गायत्री । २, १०, ७, १३, १४, १५, १७, २१, २२ गायत्री । ४, ६ विराड् गायत्री ।२० पिपीलिकामध्या गायत्री । ८, २४ विराडनुष्टुप् ॥ चतुर्विंशत्पृचं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी उत्तम वाहने लवकर दूरवर जातात तसाच प्रातःकाल दूरवर पोचतो हे जाणले पाहिजे. ॥ ११ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
When the chariot of this dawn is broken and lies in unobstructed path ways of space and the dawn is gone far away, then the sun, coming from afar, radiates its glory far and wide.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
Now the attributes of sun are described.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O learned person! the sun at its dawn smashes the darkness and releases light thoroughly, same way the learned person arrives in the region, moves and activates thoroughly and provides sound sleep to the people (he creates fearless life among the people).
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Here is simile. The dawn moves very fast like a quick transport, same way a ruler must remove ignorance.
Foot Notes
(अत्र) शकटमिव । = Like a chariot or car. (शये) शयनं कुर्य्याम् । = Sleep soundly. (विपाशि ) विगतपाशे बन्धनरहिते मार्गे । = On the limitless path. (परावत:) दूरदेशात् = From distance.
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