ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 30/ मन्त्र 9
ऋषिः - वामदेवो गौतमः
देवता - इन्द्रउषाश्च
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
दि॒वश्चि॑द्घा दुहि॒तरं॑ म॒हान्म॑ही॒यमा॑नाम्। उ॒षास॑मिन्द्र॒ सं पि॑णक् ॥९॥
स्वर सहित पद पाठदि॒वः । चि॒त् । घ॒ । दु॒हि॒तर॑म् । म॒हान् । म॒ही॒यमा॑नाम् । उ॒षस॑म् । इ॒न्द्र॒ । सम् । पि॒ण॒क् ॥
स्वर रहित मन्त्र
दिवश्चिद्घा दुहितरं महान्महीयमानाम्। उषासमिन्द्र सं पिणक् ॥९॥
स्वर रहित पद पाठदिवः। चित्। घ। दुहितरम्। महान्। महीयमानाम्। उषसम्। इन्द्र। सम्। पिणक् ॥९॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 30; मन्त्र » 9
अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 20; मन्त्र » 4
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अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 20; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे इन्द्र राजन् ! यथा महान्त्सूर्य्यो दिवो दुहितरं महीयमानामुषासञ्चित् सम्पिणक् तथा घाविद्यां दुष्टांश्च निवारय ॥९॥
पदार्थः
(दिवः) सूर्य्यस्य (चित्) इव (घ) इव। अत्र ऋचि तुनुघेति दीर्घः। (दुहितरम्) कन्यामिव वर्त्तमानाम् (महान्) (महीयमानाम्) विस्तीर्णाम् (उषासम्) प्रातर्वेलाम् (इन्द्र) (सम्) (पिणक्) पिनष्टि ॥९॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः । ये राजपुरुषा चान्यायान्धकारं निवार्य्य विद्यां न्यायार्कञ्च जनयन्ति ते सूर्य्य इव प्रतापिनो जायन्ते ॥९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (इन्द्र) तेजस्वि राजन् ! जैसे (महान्) महानुभाव कोई (दिवः, दुहितरम्) कन्या के सदृश वर्त्तमान सूर्य्य की (महीयमानाम्) विस्तीर्ण (उषासम्) प्रातर्वेला के (चित्) सदृश (सम्, पिणक्) पीसता है, वैसे (घ) ही अविद्या और दुष्टों का निवारण करो ॥९॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो राजपुरुष और राजा अन्यायरूप अन्धकार को निवृत्त करके विद्या और न्यायरूप सूर्य्य को उत्पन्न करते, वे सूर्य्य के सदृश प्रतापी होते हैं ॥९॥
विषय
अर्ध चेतनावस्था का विनाश
पदार्थ
[१] हे (इन्द्र) = जितेन्द्रिय पुरुष! तू (महान्) = 'मह पूजायाम्' प्रभुपूजा की वृत्तिवाला बन । प्रभु का उपासक बन करके (इत्) = ही (चित् घा) = निश्चय से तू (उषासम्) = उषा को (संपिणक्) = संपिष्ट करनेवाला होता है। इस अर्ध जागरित स्थिति को समाप्त करके तू जागरित स्थिति में आ जाता है। [२] यह उषा (दिवः दुहितरम्) = [दिव् स्वप्ने] स्वप्न की पुत्री है। स्वप्नावस्था से इसकी उत्पत्ति होती है। स्वप्न के अनन्तर आनेवाली यह पूर्ण जागरित न होने से हमारे पापों के उदय का कारण बनती है। सो इसका विनाश आवश्यक है। (महीयमानाम्) = यह पूर्ण जागरण के अभाव में बड़े बड़े स्वप्न देखती है गर्व का अनुभव करती है वास्तविक स्थिति से सदा ओझल रहती है।
भावार्थ
भावार्थ- एक जितेन्द्रिय पुरुष को चाहिए कि रात्रि समाप्त होने पर पूर्ण जागरित स्थिति में आने का प्रयत्न करे। अर्धचेतन अवस्था में व्यर्थ के गर्व को न अनुभव करता रहे।
विषय
धनैश्वर्य का विजय ।
भावार्थ
(दिवः दुहितरं चित् उषासं सं पिणक) जिस प्रकार सूर्य महान् प्रकाश से उत्पन्न, प्रकाश को दोहन करने या देने वाली उषा को अच्छी प्रकार छितरा वितरा देता, धूली के समान आकाश भर में फैला देता और प्रकट कर देता है उसी प्रकार हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! हे शत्रुहन्तः ! तू (दिवः) विजय की कामना करने वाले राजा की (दुहितरं) समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली (महीयमानाम्) अति विशाल, पूज्य (उषासम्) शत्रु को भस्म करने वाली कान्तिमती, तेजस्विनी पर-सेना को (सं पिणक्) अच्छी प्रकार पीस कर चूर्ण कर, नष्ट कर और स्व-सेना को (सं पिणक्) अच्छी प्रकार खण्ड २ करके दूर तक फैला, प्रकाशित करे । राजा प्रेमपूर्वक स्वसेना को नियन्त्रित कर युद्धादि कार्यों में उससे खूब काम ले अथवा (सं पिणक् = संपृणक् वर्णव्यत्ययः) अच्छी प्रकार उससे संपर्क बनाये रहे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः ॥ १–८, १२–२४ इन्द्रः । ९-११ इन्द्र उषाश्च देवते ॥ छन्द:- १, ३, ५, ९, ११, १२, १६, १८, १९, २३ निचृद्गायत्री । २, १०, ७, १३, १४, १५, १७, २१, २२ गायत्री । ४, ६ विराड् गायत्री ।२० पिपीलिकामध्या गायत्री । ८, २४ विराडनुष्टुप् ॥ चतुर्विंशत्पृचं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे राजपुरुष व राजे अन्यायरूपी अंधकार नाहीसा करून विद्या व न्यायरूपी सूर्य उत्पन्न करतात ते सूर्याप्रमाणे प्रतापी असतात. ॥ ९ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra, great you are. Surely the dawn is glorious, daughter of heaven, which you refine, adorn and glorify, and then make her disappear when she waxes with pride.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes of a ruler are highlighted.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O Indra ! you are a glorious ruler. The way rising morning sun comparable to a girl crushes or defeats the darkness, the same way you should eradicate ignorance and wickeds.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Here is a simile. A ruler who eradicates injustice like the sun, which overcomers the darkness, same way the ruler establishing the rule of justice and spreading the knowledge, surely becomes matching to the sun.
Foot Notes
(दुहितरम् ) कन्यामिव वर्त्तमानाम् । = Darkness comparable with à girl. (महीयमानाम् ) विस्तीर्णाम् = Growing vast. (समपिणक् ) पिनष्टि । = Crushes.
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