ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 30/ मन्त्र 20
ऋषिः - वामदेवो गौतमः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - पिपीलिकामध्यागायत्री
स्वरः - षड्जः
श॒तम॑श्म॒न्मयी॑नां पु॒रामिन्द्रो॒ व्या॑स्यत्। दिवो॑दासाय दा॒शुषे॑ ॥२०॥
स्वर सहित पद पाठश॒तम् । अ॒श्म॒न्ऽमयी॑नाम् । पु॒राम् । इन्द्रः॑ । वि । आ॒स्य॒त् । दिवः॑ऽदासाय । दा॒शुषे॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
शतमश्मन्मयीनां पुरामिन्द्रो व्यास्यत्। दिवोदासाय दाशुषे ॥२०॥
स्वर रहित पद पाठशतम्। अश्मन्ऽमयीनाम्। पुराम्। इन्द्रः। वि। आस्यत्। दिवःऽदासाय। दाशुषे ॥२०॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 30; मन्त्र » 20
अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 22; मन्त्र » 5
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अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 22; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः सूर्यदृष्टान्तेन राजविषयमाह ॥
अन्वयः
य इन्द्रो रविरिव दिवोदासाय दाशुषेऽश्मन्मयीनां पुरां शतं व्यास्यत् स एव विजयी भवितुमर्हेत् ॥२०॥
पदार्थः
(शतम्) (अश्मन्मयीनाम्) मेघप्रचुराणामिव पाषाणनिर्मितानाम् (पुराम्) नगरीणाम् (इन्द्रः) (वि) (आस्यत्) व्यसेच्छिन्द्यात् (दिवोदासाय) प्रकाशस्य सेवकाय (दाशुषे) दात्रे ॥२०॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे राजन् ! यदि त्वमतिप्रवृद्धानां मेघानां सूर्य्यवदनेकानि शत्रुपुराणि जेतुं शक्नुयास्तर्हि राज्यश्रियं कीर्तिञ्चाप्तुमर्हेः ॥२०॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर सूर्यदृष्टान्त से राजविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
जो (इन्द्रः) तेजस्वी सूर्य्य के सदृश (दिवोदासाय) प्रकाश के सेवनेवाले और (दाशुषे) देनेवाले के लिये (अश्मन्मयीनाम्) मेघों के समूहों के सदृश पाषाणों से बने हुए (पुराम्) नगरों के (शतम्) सैकड़े को (वि, आस्यत्) काटे, वही विजयी होने के योग्य होवे ॥२०॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे राजन् ! जो आप बहुत बढ़े हुए मेघों को जैसे सूर्य्य वैसे अनेक शत्रुओं के नगरों को जीत सकें तो राज्यलक्ष्मी और यश को प्राप्त होने के योग्य होवें ॥२०॥
विषय
'दिवोदास-दाश्वान्' के लिये पुरों का विदारण
पदार्थ
[१] (इन्द्रः) = सब शत्रुओं का संहार करनेवाले प्रभु (अश्मन्मयीनाम्) = पत्थरों से बनी हुई, अत्यन्त दृढ़ पुराम् शत्रुनगरियों के (शतम्) = सैकड़े को (व्यास्यत्) = परे फेंकते हैं नष्ट करते हैं प्रभुकृपा से ही इन 'काम क्रोध-लोभ' की नगरियों का विध्वंस होता है। [२] पर प्रभु यह शत्रुनगरियों का विध्वंस ('दिवोदासाय') = ज्ञान के दास [भक्त] के लिए करते हैं, उसके लिए करते हैं, जो कि (दाशुषे) = दाश्वान् है देने की वृत्तिबाला है। हम ज्ञानी बनने का प्रयत्न करें, त्याग की वृत्तिवाले हों, तभी प्रभु हमारे शत्रुओं का विध्वंस करेंगे।
भावार्थ
भावार्थ- हम ज्ञानप्रवण व दानशील बनें । प्रभु हमारे शत्रुओं का विध्वंस करेंगे।
विषय
विकलाङ्ग दीनों पर दया
भावार्थ
(इन्द्रः) सूर्य जिस प्रकार (दिवोदासाय) प्रकाश के इच्छुक प्रजा के लिये (अश्मन्मयीनां पुराम् शतं वि आस्यत्) मेघों से बनी जलधाराओं को नीचे गिरा देता है, उसी प्रकार (दाशुषे) करादि देने वाले (दिवः दासाय) भूमि का सेवन करने वाले प्रजा के उपकार के लिये (इन्द्रः) शत्रुहन्ता राजा (अश्मन्मयीनां) पत्थरों की बनी, दृढ़ (पुरां) शत्रु नगरियों को (वि आस्यत्) विविध प्रकार से तोड़ फोड़ दे । इति द्वाविंशो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः ॥ १–८, १२–२४ इन्द्रः । ९-११ इन्द्र उषाश्च देवते ॥ छन्द:- १, ३, ५, ९, ११, १२, १६, १८, १९, २३ निचृद्गायत्री । २, १०, ७, १३, १४, १५, १७, २१, २२ गायत्री । ४, ६ विराड् गायत्री ।२० पिपीलिकामध्या गायत्री । ८, २४ विराडनुष्टुप् ॥ चतुर्विंशत्पृचं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजा ! मेघांची वाढ झाल्यास सूर्य जसा त्यांना जिंकतो तसे अनेक शत्रूंच्या नगरांना जिंकल्यास राज्यलक्ष्मी व यश प्राप्त होईल. ॥ २० ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra, lord of power, justice and generosity, for the sake of the creative and the generous giver you break a hundred adamantine strongholds of hoarded wealth like the sun that breaks the cloud concentrations of rain to bless the generous earth.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The State administration is compared with the sun.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
As the sun provides ample light and builds clouds which create rains for the good of people, same way a glorious ruler overcomes or smashes the hundreds of buildings made of stone and dwellings in the towns ruled by his enemies and ultimately he wins the battle.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Here is a simile. The sun builds power and ultimately overpowers the clouds. The same way, O king! when you will attain victory oner the towns of your adversaries, you are bound to acquire wealth and fame.
Foot Notes
(अश्मन्मयीनाम् ) मेघप्रचुराणामिव पाषाणनिर्मितानाम् । = The towns where the buildings are made of stone like the cluster of clouds. (पुराम्) नगरीणाम् । = Towns or cities. (आस्यत् ) व्यसेच्छिन्द्यात् । = Smashes into pieces. (दिवोदासाय ) प्रकाशस्य सेवकाय । = For the one who through lights (sun), or for the one who is fond of knowledge (Duplicable in the case of ruler).
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