ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 30/ मन्त्र 7
किमादु॒तासि॑ वृत्रह॒न्मघ॑वन्मन्यु॒मत्त॑मः। अत्राह॒ दानु॒माति॑रः ॥७॥
स्वर सहित पद पाठकिम् । आत् । उ॒त । अ॒सि॒ । वृ॒त्र॒ऽह॒न् । मघ॑ऽवन् । म॒न्यु॒मत्ऽत॑मः । अत्र॑ । अह॑ । दानु॑म् । आ । अ॒ति॒रः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
किमादुतासि वृत्रहन्मघवन्मन्युमत्तमः। अत्राह दानुमातिरः ॥७॥
स्वर रहित पद पाठकिम्। आत्। उत। असि। वृत्रऽहन्। मघऽवन्। मन्युमत्ऽतमः। अत्र। अह। दानुम्। आ। अतिरः ॥७॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 30; मन्त्र » 7
अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 20; मन्त्र » 2
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अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 20; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे मघवन् वृत्रहन् ! मन्युमत्तमस्त्वं सूर्य्यो मेघमिव दानुमातिरोऽत्राहाऽऽत् किमुत राजाऽसि ॥७॥
पदार्थः
(किम्) (आत्) आनन्तर्य्ये (उत) (असि) (वृत्रहन्) शत्रुनाशक (मघवन्) प्रशंसितधन (मन्युमत्तमः) प्रशंसितो मन्युः क्रोधो यस्य सोऽतिशयितः (अत्र) (अह) (दानुम्) दातारम् (आ) (अतिरः) हंसि ॥७॥
भावार्थः
यो राजा दुष्टानामुपर्य्यतिक्रोधकृच्छ्रेष्ठेषु शान्ततमो भवति स एव राज्यं वर्द्धयितुमर्हति ॥७॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (मघवन्) श्रेष्ठ धनयुक्त (वृत्रहन्) शत्रुओं के नाश करनेवाले ! (मन्युमत्तमः) प्रशंसित क्रोधयुक्त आप सूर्य्य मेघ को जैसे वैसे (दानुम्) देनेवाले का (आ, अतिरः) नाश करते हैं, (अत्र, अह, आत्, किम्, उत) अहह इस विषय में तो क्या अनन्तर आप राजा भी (असि) हो ॥७॥
भावार्थ
जो राजा दुष्टों के ऊपर अति क्रोध करने और श्रेष्ठों में अत्यन्त शान्ति रखनेवाला होता है, वही राज्य बढ़ा सकता है ॥७॥
विषय
दानवी वृत्तियों का दहन
पदार्थ
[१] हे (वृत्रहन्) = वासना को विनष्ट करनेवाले और (मघवन्) = ज्ञानैश्वर्यवाले प्रभो ! आप (किम्) = क्या ही (मन्युमत्तमः) = अत्यन्त उत्कृष्ट ज्ञानवाले हैं ? अनन्त है आपका ज्ञान । [२] (उत) = और (आत्) = शीघ्र ही आप (अत्र अह) = इस जीवन में ही (दानुम्) = हमारी दानवी वृत्ति को (आतिर:) = विनष्ट कर देते हैं। मैं आपकी उपासना करता हूँ। इस उपासना से ही आपकी उस ज्ञान की ज्वाला में मेरी सब वासनाएँ भस्म हो जाती हैं। सचमुच आश्चर्य होता है कि किस प्रकार मैं वासनाओं से परेशान हो रहा था। आपकी उपासना करते ही वे सब वासनाएँ अत्यन्त निर्बल पड़ जाती हैं, निर्बल क्या, विनष्ट ही हो जाती हैं।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु ज्ञान की प्रचण्ड ज्वालावाले हैं, उसमें उपासक की सब दानवी वृत्तियाँ दग्ध हो जाती हैं ।
विषय
प्रजा पर आधिपत्य ।
भावार्थ
(वृत्रहन्) हे आवरणकारी अन्धकारों वा मेघों के तुल्य नगरादि को रोधने वाले शत्रुओं और विघ्नों का नाश करने वाले राजन् ! (आत् उत किम्) और क्या ! आप तो (मन्युमत्तमः असि) सबसे अधिक मन्यु अर्थात् दुष्टों पर कोप धारण करने वाले हो, (अत्र अह) निश्चय से इस राष्ट्र में आप (दानुम् अतिरः) दानशील राष्ट्र को बढ़ाओ और प्रजा के छेदक भेदक दस्यु का नाश करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः ॥ १–८, १२–२४ इन्द्रः । ९-११ इन्द्र उषाश्च देवते ॥ छन्द:- १, ३, ५, ९, ११, १२, १६, १८, १९, २३ निचृद्गायत्री । २, १०, ७, १३, १४, १५, १७, २१, २२ गायत्री । ४, ६ विराड् गायत्री ।२० पिपीलिकामध्या गायत्री । ८, २४ विराडनुष्टुप् ॥ चतुर्विंशत्पृचं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
जो राजा दुष्टांवर अत्यंत क्रोध करतो व श्रेष्ठांशी शांततेने वागतो तोच राज्य वाढवू शकतो. ॥ ७ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
And what more! You are, O lord ruler and commander of the wealth and power of the world, you are the most passionate lover of rectitude and fiercest destroyer of evil. And lo! you are the top redeemer of the generous and shatterer of the selfish.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The theme of administration is dealt.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O king ! you are equipped with nice wealthy and annihilator of the enemies. As the sun thrashes means and are the clouds, the same way you finish the devils. Moreover, in other spheres also you rule over us.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The ruler who is deadly set against the wickeds and provides peace to the noble men, only such a ruler can extend the boundaries of his kingdom.
Foot Notes
(वृत्रहन् ) शत्रुनाशक | = Smasher or annihilator of the enemy. (मन्युमत्तमः) प्रशांसितो मन्युः क्रोधो यस्य सोऽतिशयितः = One who raises his anger for a right cause, and excels over other common men. (दानुम्) दातारम् । = One who gives trouble to the right persons. They are called Danavas.
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