ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 30/ मन्त्र 13
उ॒त शुष्ण॑स्य धृष्णु॒या प्र मृ॑क्षो अ॒भि वेद॑नम्। पुरो॒ यद॑स्य संपि॒णक् ॥१३॥
स्वर सहित पद पाठउ॒त । शुष्ण॑स्य । धृ॒ष्णु॒ऽया । प्र । मृ॒क्षः॒ । अ॒भि । वेद॑नम् । पुरः॑ । यत् । अ॒स्य॒ । स॒म्ऽपि॒णक् ॥
स्वर रहित मन्त्र
उत शुष्णस्य धृष्णुया प्र मृक्षो अभि वेदनम्। पुरो यदस्य संपिणक् ॥१३॥
स्वर रहित पद पाठउत। शुष्णस्य। धृष्णुऽया। प्र। मृक्षः। अभि। वेदनम्। पुरः। यत्। अस्य। सम्ऽपिणक् ॥१३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 30; मन्त्र » 13
अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 21; मन्त्र » 3
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अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 21; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ राजसम्बन्धेन मनुष्यविषयमाह ॥
अन्वयः
हे राजन् ! यद्यतस्त्वं शुष्णस्य बलिष्ठस्य सैन्यस्य धृष्णुयाऽस्य पुरः प्र मृक्षोऽतः शत्रून् संपिणगुताप्यभिवेदनं प्रापय ॥१३॥
पदार्थः
(उत) अपि (शुष्णस्य) बलस्य (धृष्णुया) प्रगल्भत्वेन (प्र) (मृक्षः) सिञ्चय (अभि) (वेदनम्) विज्ञानम् (पुरः) नगराणि (यत्) यतः (अस्य) शत्रोः (संपिणक्) सञ्चूर्णय ॥१३॥
भावार्थः
स एव राजा सम्मतो भवेद्यः सेनां वर्द्धयित्वाऽन्यायाचारान्निवार्य्याऽविहिताज्ञो भवेत् ॥१३॥
हिन्दी (3)
विषय
अब राजसम्बन्ध से मनुष्य विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे राजन् ! (यत्) जिससे आप (शुष्णस्य) बलयुक्त सेना की (धृष्णुया) ढिठाई से (अस्य) इस शत्रु के (पुरः) नगरों को (प्र, मृक्षः) अच्छे प्रकार सींचो अत एव शत्रुओं को (सम्पिणक्) चूर्णित करो (उत) और भी (अभि, वेदनम्) विज्ञान को प्राप्त कराओ ॥१३॥
भावार्थ
वही राजा सम्मत होवे कि जो सेना को बढ़ाय और अन्याय के आचरणों को दूर करके बिन कहे को अच्छा जाननेवाला होवे ॥१३॥
विषय
शुष्णासुर का विध्वंस
पदार्थ
[१] (उत) = और हे प्रभो! आप गतमन्त्र के अनुसार मेरे जीवन में ज्ञाननदी के प्रवाह को चलाते हैं और (धृष्णुया) = इस ज्ञान की शत्रुधर्षक शक्ति द्वारा (शुष्णस्य) = हमारा शोषण करनेवाले कामदेव के (वेदनम्) = धन को (अभि प्रमृक्षः) = बाधित करनेवाले होते हैं। शुष्ण के वेदन का आप सफाया कर देते हैं। कामदेव की सम्पत्ति को विनष्ट करके आप हमें ज्ञानैश्वर्य को प्राप्त करानेवाले होते हैं। [२] यह सब तब होता है, (यद्) = जब कि आप (अस्य पुरः) = इस कामदेव की नगरियों को (सम्पिणक्) = सम्यक् पीस डालते हैं। कामदेव की नगरियों के भस्मावशेष पर ही सरस्वती के भवन का निर्माण होता है ।
भावार्थ
भावार्थ– कामभावना समाप्त होने पर ही ज्ञानैश्वर्य प्राप्त होता है।
विषय
शुष्ण के नाश का रहस्य ।
भावार्थ
हे राजन् ! (यत्) जो तू (अस्य) इस शत्रु के (पुरः) नगरों को (संपिणक्) नष्ट करे (उत) और (शुष्णस्य) शत्रु के शोषक बल का (धृष्णुया) धर्षक होकर (वेदनम्) धन को भी (अभि प्रमृक्षः) बलात् विजय कर ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः ॥ १–८, १२–२४ इन्द्रः । ९-११ इन्द्र उषाश्च देवते ॥ छन्द:- १, ३, ५, ९, ११, १२, १६, १८, १९, २३ निचृद्गायत्री । २, १०, ७, १३, १४, १५, १७, २१, २२ गायत्री । ४, ६ विराड् गायत्री ।२० पिपीलिकामध्या गायत्री । ८, २४ विराडनुष्टुप् ॥ चतुर्विंशत्पृचं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
जो सेनेला वाढवितो व अन्यायाचे निवारण करून न सांगितलेल्या गोष्टीही जाणणारा असतो, त्याच राजाला मान्यता मिळते. ॥ १३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
And when with your force and power you break down the strongholds of this demon of drought and sprinkle the land with water, then you acquire the wealth of the land and the knowledge of science for the people.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The relation between the State and people is defined.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O ruler! as with your powerful army you smash the towns of your enemies completely and annihilate your adversaries, let you get us that scientific knowledge.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Idea is that king who is respected is because of his large and powerful army. With his armed might, he removes the injustice and evil conduct. He spots out the right persons.
Foot Notes
(शुष्णस्य) बलस्य | = of the powerful army. (धृष्णुया) प्रगल्भत्वेन । = Strongly. (वेदनम् ) विज्ञानम् । = Scientific knowledge. (पुर:) नगराणि । = The cities. (संपिणक् ) संचूर्णय | = Smash or annihilate.
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