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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 30 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 30/ मन्त्र 17
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्र: छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    उ॒त त्या तु॒र्वशा॒यदू॑ अस्ना॒तारा॒ शची॒पतिः॑। इन्द्रो॑ वि॒द्वाँ अ॑पारयत् ॥१७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒त । त्या । तु॒र्वशा॒यदू॒ इति॑ । अ॒स्ना॒तारा॑ । शची॒ऽपतिः॑ । इन्द्रः॑ । वि॒द्वान् । अ॒पा॒र॒य॒त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत त्या तुर्वशायदू अस्नातारा शचीपतिः। इन्द्रो विद्वाँ अपारयत् ॥१७॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत। त्या। तुर्वशायदू इति। अस्नातारा। शची३ऽपतिः। इन्द्रः। विद्वान्। अपारयत् ॥१७॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 30; मन्त्र » 17
    अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 22; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ विद्वद्विषयमाह ॥

    अन्वयः

    शचीपतिर्विद्वानिन्द्रो यौ तुर्वशायदू उताप्यस्नातारापारयत् त्या सुखिनौ स्याताम् ॥१७॥

    पदार्थः

    (उत) अपि (त्या) तौ (तुर्वशायदू) शीघ्रं वशंकरो यत्नवाँश्च तौ मनुष्यौ। तुर्वशा इति मनुष्यनामसु पठितम्। (निघं०२.३) यदव इति च। (अस्नातारा) स्नानादिकर्मरहितौ (शचीपतिः) प्रजापतिर्वाक्पतिर्वा (इन्द्रः) राजा (विद्वान्) (अपारयत्) दुःखात् पारयेत् ॥१७॥

    भावार्थः

    यान् मनुष्यानाप्ता विद्वांसः सुशिक्षेरंस्ते दुःखान्तं गत्वा सुखिनो भवन्ति ॥१७॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब विद्वद्विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    (शचीपतिः) प्रजा वा वाणी का पति (विद्वान्) विद्वान् (इन्द्रः) और राजा जिन (तुर्वशायदू) शीघ्र वश करने और यत्न करनेवाले मनुष्य (उत) और (अस्नातारा) स्नान आदि कर्म्मों से रहित मनुष्यों को (अपारयत्) दुःख से पार उतारे (त्या) वे दोनों सुखी होवें ॥१७॥

    भावार्थ

    जिन मनुष्यों को यथार्थवक्ता विद्वान् लोग शिक्षा देवें, वे दुःख के पार जाकर सुखी होते हैं ॥१७॥

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    विषय

    'शचीपति इन्द्र विद्वान्' आचार्य

    पदार्थ

    [१] (शचीपतिः) = कर्म व प्रज्ञान का स्वामी (इन्द्रः) = काम-क्रोध आदि शत्रुओं का विद्रावण करनेवाला (विद्वान्) = ज्ञानी पुरुष (उत) = निश्चय से (त्या) = उन (तुर्वशायदू) = शीघ्रता से शत्रुओं को वश में करनेवाले तथा यत्नशील पुरुषों को, (अस्नातारा) = जो ज्ञान समुद्र में स्वयं स्नान नहीं कर सके, (अपारयत्) = इस समुद्र में स्नान कराके पार लगाता है। [२] आचार्य की विशेषताएँ 'शचीपति, इन्द्र व विद्वान्' शब्दों से व्यक्त की गई हैं। आचार्य को [क] कर्म व प्रज्ञान का स्वामी होना चाहिए, [ख] यह जितेन्द्रिय हो, [ग] अत्यन्त ज्ञानी हो । विद्यार्थी को तुर्वश व यदु बनना है । [क] यह शीघ्रता से काम-क्रोध आदि को वशीभूत करनेवाला हो, [ख] यत्नशील हो-आलस्य शून्य । ऐसे ही विद्यार्थी को आचार्य ज्ञानसमुद्र के पार लगाने में समर्थ होता है। अस्नात को स्नात बनाता है। उस समय इसका नाम 'स्नातक' हो जाता है।

    भावार्थ

    भावार्थ–'शचीपति इन्द्र विद्वान्' आचार्य 'तुर्वश यदु' विद्यार्थी को ज्ञान समुद्र में स्नान कराके स्नातक बनाता है।

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    विषय

    तुर्वश यदु का रहस्य ।

    भावार्थ

    (शचीपतिः) सेना और व्यवस्थापक वाणी का पालक (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् (विद्वान्) ज्ञानवान् वा राज्यश्री को लाभ करने वाला पुरुष (तुर्वश-यदू) धर्म, अर्थ, काम मोक्ष चतुर्वर्गों की कामना करने वाले यत्नशील प्रजास्थ स्त्री पुरुष दोनों वर्गों को जो (अस्त्रातारौ) स्नात अभिषिक्त या कृतकृत्य न हुए हों अथवा (तुर्वश-यदू) शत्रुओं को मारने वाले क्षत्रिय और उद्यमशील व्यवसायी क्षत्रिय और वैश्य दोनों, जो पदाभिषिक्त न हुए हों उन दोनों को (अपारयत्) पालन करे और संकट से पार करके कृतकृत्य करे । वेद वाणी का विद्वान् पुरुष आचार्य (तुर्वशा-यदू) शीघ्र इन्द्रियों के वशकारी जितेन्द्रिय और विद्याभ्यास में यत्नवान् दोनों प्रकार के विद्यार्थी जनों को जो विद्याव्रत स्नातक न हुए उनको (अपारयत्) विद्या और व्रत के पार करे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः ॥ १–८, १२–२४ इन्द्रः । ९-११ इन्द्र उषाश्च देवते ॥ छन्द:- १, ३, ५, ९, ११, १२, १६, १८, १९, २३ निचृद्गायत्री । २, १०, ७, १३, १४, १५, १७, २१, २२ गायत्री । ४, ६ विराड् गायत्री ।२० पिपीलिकामध्या गायत्री । ८, २४ विराडनुष्टुप् ॥ चतुर्विंशत्पृचं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ज्या माणसांना आप्त विद्वान लोक शिक्षण देतात त्यांचे दुःख नाहीसे होऊन ते सुखी होतात. ॥ १७ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, lord of the people and the sacred voice, ruler of the world and master of knowledge, helps the man of efficiency, the man of effort, and also the simple folk who do not know how to swim and enables them all to cross the hurdles of life over to the shore.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The subject of learned person is described.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    A learned person who is master of excellent knowledge (SHACHI), such a king is able to overpower the semi-learned and unvirtuous persons and finally makes them delighted. Thus that king and his subjects both become happy.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    When the people receive education from the frank and straight ward learned persons, they finally become free from unhappiness and finally become happy.

    Foot Notes

    (तुर्वशायदू) शीघ्र वशंकरो यत्नवांश्व तो मनुष्यो । तुर्वशा इति मनुष्यनाम (NG 2, 3) यदव इति च। = One who makes the people to submit easily and attempts very hard. The men. (शचीपतिः) प्रजापतिर्वाक्पतिर्वा । = One who is master of words or of the people. (अपारयत्) दुःखात् पारयेत्। = Takes across from the path of grief.

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