ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 30/ मन्त्र 2
स॒त्रा ते॒ अनु॑ कृ॒ष्टयो॒ विश्वा॑ च॒क्रेव॑ वावृतुः। स॒त्रा म॒हाँ अ॑सि श्रु॒तः ॥२॥
स्वर सहित पद पाठस॒त्रा । ते॒ । अनु॑ । कृ॒ष्टयः॑ । विश्वा॑ । च॒क्राऽइ॑व । व॒वृ॒तुः॒ । स॒त्रा । म॒हान् । अ॒सि॒ । श्रु॒तः ॥
स्वर रहित मन्त्र
सत्रा ते अनु कृष्टयो विश्वा चक्रेव वावृतुः। सत्रा महाँ असि श्रुतः ॥२॥
स्वर रहित पद पाठसत्रा। ते। अनु। कृष्टयः। विश्वा। चक्राऽइव। ववृतुः। सत्रा। महान्। असि। श्रुतः ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 30; मन्त्र » 2
अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 19; मन्त्र » 2
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अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 19; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे राजन् ! यदि त्वं सत्रा महाञ्छ्रुतोऽसि तर्हि ते सत्रा कृष्टयो विश्वा चक्रेवानु वावृतुः ॥२॥
पदार्थः
(सत्रा) सत्याचारस्य (ते) तव (अनु) (कृष्टयः) मनुष्याः (विश्वा) सर्वाणि (चक्रेव) चक्राणीव (वावृतुः) वर्त्तेरन्। अत्र तुजादीनामित्यभ्यासदैर्घ्यम्। (सत्रा) सत्याचरणेन (महान्) (असि) (श्रुतः) सकलशास्त्रश्रवणेन कीर्तिमान् ॥२॥
भावार्थः
हे राजन् ! भवान् न्यायकारी भवेत्तर्हि सर्वाः प्रजास्त्वामानुवर्त्तेरन् ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे राजन् ! जो आप (सत्रा) सत्य आचरण के (महान्) बड़े (श्रुतः) सम्पूर्ण शास्त्र के श्रवण से यशयुक्त (असि) हो तो (ते) आपके सम्बन्ध में (सत्रा) सत्य आचरण से (कृष्टयः) मनुष्य (विश्वा) सम्पूर्ण (चक्रेव) चक्रों के सदृश अर्थात् जैसे गाड़ी में पहिया वैसे (अनु, वावृतुः) वर्त्ताव करें ॥२॥
भावार्थ
हे राजन् ! आप न्यायकारी होवें तो सम्पूर्ण प्रजा आपके अनुकूल वर्ताव करें ॥२॥
विषय
भ्रामयन् सर्वभूतानि
पदार्थ
[१] हे इन्द्र ! (सत्रा) = सचमुच विश्वा चक्रा इव-जैसे सब चक्र आपकी शक्ति से ही चल रहे हैं क्या दिन-रात का चक्र, सप्ताह का चक्र, शुक्ल- कृष्ण पक्षों का चक्र, मासों का चक्र, ऋतुओं का चक्र, वर्षों व युगों का चक्र और क्या सूर्यादि पिण्डों के चक्र सब आपकी शक्ति से ही चल रहे हैं, इसी प्रकार कृष्टयः सब मनुष्य ते अनु वावृतुः- आपके शासन के अनुसार चल रहे हैं। ‘भ्रामयन् सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया । [२] हे प्रभो! आप (सत्रा) = सचमुच ही महान् श्रुतः महान् प्रसिद्ध असि हैं। सर्वत्र आपकी कीर्ति विद्यमान है। कण-कण में आपकी महिमा दृष्टिगोचर हो रही है। आप ही पूज्य हैं, ज्ञानी हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- सब प्रजाएँ प्रभु की शक्ति से ही गतिवाली हो रही हैं। वे प्रभु ही महान् हैं, प्रसिद्ध हैं।
विषय
सेना और प्रजा दो राज्यरथ के दो पहियों के तुल्य हैं ।
भावार्थ
(सत्रा) बलवान् और सत्य न्याय से युक्त (ते) तेरे (अनु) अधीन रहने वाली (विश्वाः कृष्टयः) समस्त मनुष्य प्रजाएं और शत्रुपीड़न करने वाली सेनाएं भी (चक्रा इव) गाड़ी में लगे पहियों के समान (ववृतुः) तेरे अनुकूल होकर चलें । तू भी (सत्रा) सत्य व्यवहार से ही (महान्) महान्, पूज्य और (श्रुतः) प्रसिद्ध (असि) है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः ॥ १–८, १२–२४ इन्द्रः । ९-११ इन्द्र उषाश्च देवते ॥ छन्द:- १, ३, ५, ९, ११, १२, १६, १८, १९, २३ निचृद्गायत्री । २, १०, ७, १३, १४, १५, १७, २१, २२ गायत्री । ४, ६ विराड् गायत्री ।२० पिपीलिकामध्या गायत्री । ८, २४ विराडनुष्टुप् ॥ चतुर्विंशत्पृचं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे राजा! तू जर न्यायी असशील तर संपूर्ण प्रजा तुझ्या अनुकूल वागेल. ॥ २ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
In truth and honour of conduct, all the people together move around you in orbit, harmoniously, as do the wheels of the chariot revolve round the axle. Truly you are great, commanding honour and universal fame.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The essentials of a ruler are stated.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O king! because you are great and renowned on account of the observance of truth, therefore all men would follow you. They are of truthful conduct like the wheels (to the body of the wagon).
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O king! if you are just, all your subjects will follow you.
Foot Notes
(अत्रा) सत्याचारस्य । = Of the truthful conduct. (सत्ता) सत्याचरणेन । = On account of truth. (कृष्टयः) मनुष्याः । = The men.
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