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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 30 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 30/ मन्त्र 21
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्र: छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    अस्वा॑पयद्द॒भीत॑ये स॒हस्रा॑ त्रिं॒शतं॒ हथैः॑। दा॒साना॒मिन्द्रो॑ मा॒यया॑ ॥२१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अस्वा॑पयत् । द॒भीत॑ये । स॒हस्रा॑ । त्रिं॒शत॑म् । हथैः॑ । दा॒साना॑म् । इन्द्रः॑ । मा॒यया॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अस्वापयद्दभीतये सहस्रा त्रिंशतं हथैः। दासानामिन्द्रो मायया ॥२१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अस्वापयत्। दभीतये। सहस्रा। त्रिंशतम्। हथैः। दासानाम्। इन्द्रः। मायया ॥२१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 30; मन्त्र » 21
    अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 23; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    य इन्द्रो मायया दासानां सेवकानां शत्रूणां हथैर्दभीतये सहस्रा त्रिंशतमस्वापयत् स एव विजयवान् भवेत् ॥२१॥

    पदार्थः

    (अस्वापयत्) स्वापयेत् (दभीतये) हिंसनाय (सहस्रा) असंख्यानि (त्रिंशतम्) एतत्संख्यातम् (हथैः) हननैः (दासानाम्) सेवकानाम् (इन्द्रः) राजा (मायया) प्रज्ञया ॥२१॥

    भावार्थः

    ये सेनापत्यादयो बुद्ध्या शत्रून् हन्युस्ते सदैव सुखिनः स्युः ॥२१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    जो (इन्द्रः) राजा (मायया) बुद्धि से (दासानाम्) सेवकों और शत्रुओं के (हथैः) हननसाधनों से (दभीतये) हिंसन करने के लिये (सहस्रा) असंख्य (त्रिंशतम्) वा तीस को (अस्वापयत्) सुलावे, वही जीतनेवाला होवे ॥२१॥

    भावार्थ

    जो सेनापति आदि बुद्धि से शत्रुओं का नाश करें, वे सदा ही सुखी होवें ॥२१॥

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    विषय

    'दभीति' के शत्रुओं का सो जाना

    पदार्थ

    [१] (इन्द्रः) = सब शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभु (मायया) = अपने अद्भुत ज्ञान व सामर्थ्य से [ extraordinary power, wisdom] अथवा दया से [ pity, compassion] (दासानाम्) = हमारा उपक्षय करनेवाली (त्रिंशतं सहस्त्रा) = तीसों हजार आसुर वृत्तियों को (हथैः) = हननसाधन आयुधों से (अस्वापयत्) = सुला देते हैं। प्रभु की शक्ति से आसुरभावों का विनाश होता है। [२] प्रभु यह आसुरभावों का विनाश (दभीतये) = दभीति के लिए करते हैं। उस व्यक्ति के लिए करते हैं, जो कि आसुरभावों के हिंसन के लिए यत्नशील होते हैं। प्रभु हमारे लिए साधन प्राप्त कराते हैं, उन साधनों को क्रिया में परिणत करने के लिए शक्ति देते हैं। इन साधनों का ठीक प्रयोग करने की प्रेरणा देते हुए वे प्रभु इस 'दभीति' के लिए सहायक होते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम काम क्रोध आदि शत्रुओं के हिंसन में प्रवृत्त हों। प्रभु के साहाय्य से हम अवश्य सफल होंगे।

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    विषय

    राजा का महान् विक्रम ।

    भावार्थ

    (इन्द्रः) शत्रु हनन करने वाला राजा, (मायया) अपनी शक्ति और बल से (दासानां) प्रजा के नाश करने वाले शत्रुओं के (त्रिशतं सहस्रा) तीन सौ हजार [ ३००,००० ] सैन्यों को (दभीतये) विनाश करने के लिये (हथैः) दूर तक व्यापने वा हनन करने वाले अस्त्रों, शस्त्रों और अन्यान्य साधनों से (अस्वापयत्) सुला दे, पृथ्वी पर गिरा दे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः ॥ १–८, १२–२४ इन्द्रः । ९-११ इन्द्र उषाश्च देवते ॥ छन्द:- १, ३, ५, ९, ११, १२, १६, १८, १९, २३ निचृद्गायत्री । २, १०, ७, १३, १४, १५, १७, २१, २२ गायत्री । ४, ६ विराड् गायत्री ।२० पिपीलिकामध्या गायत्री । ८, २४ विराडनुष्टुप् ॥ चतुर्विंशत्पृचं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे सेनापती इत्यादी बुद्धीने शत्रूंचा नाश करतात ते सदैव सुखी होतात. ॥ २१ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, the ruler, should smash three hundred thousand of social saboteurs with weapons of far reaching calibre for the peace and security of the law- abiding servants of the nation and for keeping down of the violent.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The subject of administration is again compared with the sun.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    A ruler who defeats his hundreds or few enemies and kills them with several weapons and armament, he is capable to provide relief and peace to the State officials. Finally he wins the battle.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    A ruler who appoints a commander capable to destroy his enemies with his skill and intelligence, he is always happy.

    Foot Notes

    (अस्वापयत्) स्वापयेत् । = Provides sound sleep. (दभीतये) हिन्सनाय। = In order to kill.

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