ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 30/ मन्त्र 18
उ॒त त्या स॒द्य आर्या॑ स॒रयो॑रिन्द्र पा॒रतः॑। अर्णा॑चि॒त्रर॑थावधीः ॥१८॥
स्वर सहित पद पाठउ॒त । त्या । स॒द्यः । आर्या॑ । स॒रयोः॑ । इ॒न्द्र॒ । पा॒रतः॑ । अर्णा॑चि॒त्रर॑था । अ॒व॒धीः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
उत त्या सद्य आर्या सरयोरिन्द्र पारतः। अर्णाचित्ररथावधीः ॥१८॥
स्वर रहित पद पाठउत। त्या। सद्यः। आर्या। सरयोः। इन्द्र। पारतः। अर्णाचित्ररथा। अवधीः ॥१८॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 30; मन्त्र » 18
अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 22; मन्त्र » 3
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अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 22; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे इन्द्र ! त्वं सद्यस्त्या सरयोः पारतो वर्त्तमानावर्णाचित्ररथावधीरुताप्यार्य्या पालयेः ॥१८॥
पदार्थः
(उत) (त्या) तौ (सद्यः) शीघ्रम् (आर्या) उत्तमगुणकर्म्मस्वभावौ (सरयोः) गच्छतोः (इन्द्र) (पारतः) पारात् (अर्णाचित्ररथा) अर्णौ प्रापकौ च तौ चित्ररथा आश्चर्य्यरथौ च तौ (अवधीः) हन्याः ॥१८॥
भावार्थः
हे राजँस्त्वं सततं दुष्टान् ताडय श्रेष्ठान् सत्कुरु ॥१८॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (इन्द्र) राजन् आप (सद्यः) शीघ्र (त्या) उन दोनों (सरयोः) चलते हुओं के (पारतः) पार से वर्त्तमान (अर्णाचित्ररथा) पहुँचानेवाले आश्चर्य्यकारक रथों का (अवधीः) नाश करो (उत) और (आर्य्या) उत्तम गुण, कर्म्म और स्वभाववालों का पालन करो ॥१८॥
भावार्थ
हे राजन् ! आप निरन्तर दुष्टों का ताड़न और श्रेष्ठों का सत्कार करो ॥१८॥
विषय
'अर्णाचित्ररथा' का सरयू के पार पहुँचना
पदार्थ
[१] (उत) = और हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशाली प्रभो ! आप (सद्यः) = शीघ्र ही (त्या) = उन आर्या श्रेष्ठ (अर्णाचित्ररथा) = [अर्ण-Being in motion] गतिशील और गतिशीलता के कारण ही [चित्र] अद्भुत, ज्ञानसम्पन्न, शरीर- रथवाले उपासकों को (सरयोः पारतः) = इस नदी के पार (अवधा:) = [हन् गतौ] ले जाते हैं । [२] उल्लिखित मन्त्र के 'अपारयत्' का भाव यहाँ 'सरयोः पारतः अवधी: ' इन शब्दों से कहा गया है । 'तुर्वशायदू' के स्थान में यहाँ 'अर्णाचित्ररथा' है । सरस्वती नदी यहाँ सरयू है। इसके पार जाना ही ज्ञानी बनना व स्नातक बनना है। आचार्य का मुख्य गुण 'इन्द्र' होनाजितेन्द्रिय होना है। विद्यार्थी को 'आर्य' नियमित गतिवाला बनना है disciplined |
भावार्थ
भावार्थ- गतिशील व ज्ञानरुचि विद्यार्थी को आचार्य ज्ञाननदी के पार ले जाता है ।
विषय
पक्षान्तर में आचार्य के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
(उत) और हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! (अर्णा-चित्ररथा) जल में चित्र विचित्र आश्चर्यजनक रथ चलाने वाले (आर्या) श्रेष्ठ आचार वाले (त्या) उन दोनों मित्र और शत्रु जनों को भी (सरयोः पारतः) प्रशस्त वेग से जाने वाले सैन्यबल के पालक व पूर्ण सामर्थ्य से (अवधीः) विनाश कर और (२) हे विद्वन् ! (आर्या) उत्तम सुस्वभाव (अर्णा-चित्ररथा) जल सागर के तुल्य विज्ञान में चित्र विचित्र रूप से रमण करने वा वेग से जाने वाले दोनों प्रकार के विद्यार्थी जनों को (सद्यः) शीघ्र ही (सरयेः) उत्तम ज्ञान से युक्त वेद ज्ञान के (पारतः) पार (अवधी) पहुंचा ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः ॥ १–८, १२–२४ इन्द्रः । ९-११ इन्द्र उषाश्च देवते ॥ छन्द:- १, ३, ५, ९, ११, १२, १६, १८, १९, २३ निचृद्गायत्री । २, १०, ७, १३, १४, १५, १७, २१, २२ गायत्री । ४, ६ विराड् गायत्री ।२० पिपीलिकामध्या गायत्री । ८, २४ विराडनुष्टुप् ॥ चतुर्विंशत्पृचं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे राजा, तू निरंतर दुष्टांचे ताडन व श्रेष्ठांचा सत्कार कर. ॥ १८ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra, lord of goodness and nobility of power, always smashes the grabber and the smuggler in possession of wondrous transport across the world of movement and communication over the border.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The subject of learned person is further stated.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O Indra! you are a ruler and therefore, incapacitate or immobilize or smash the transport of the enemy, who move very fast. These who are of good temperament virtues and actions, you should protect them.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
A ruler should incessantly keep the criminals and enemy under his check and should honor the noble persons.
Foot Notes
(आर्या) उत्तमगुणकर्म्मस्वभावों । = Those who are blessed with ideal virtues, actions and temperament. (सरयो:) गच्छतो:। = Moving forward. (अर्णाचित्ररयौ) अणौ प्रापकौ च तौ चित्ररथा आश्चर्य्यरथो च तौ। = Those who possess the peculiar chariots and get the same for others also.
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