यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 10
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - रुद्रो देवता
छन्दः - भुरिगार्ष्युष्णिक्
स्वरः - गान्धारः
4
विज्यं॒ धनुः॑ कप॒र्दिनो॒ विश॑ल्यो॒ बाण॑वाँ२ऽउ॒त। अने॑शन्नस्य॒ याऽइष॑वऽआ॒भुर॑स्य निषङ्ग॒धिः॥१०॥
स्वर सहित पद पाठविज्य॒मिति॒ विऽज्य॑म्। धनुः॑। क॒प॒र्द्दिनः॑। विश॑ल्य॒ इति॒ विऽश॑ल्यः। बाण॑वा॒निति॒ बाण॑ऽवान्। उ॒त। अने॑शन्। अ॒स्य॒। याः। इष॑वः। आ॒भुः। अ॒स्य॒। नि॒ष॒ङ्ग॒धिरिति॑ निषङ्ग॒ऽधिः ॥१० ॥
स्वर रहित मन्त्र
विज्यन्धनुः कपर्दिनो विशल्यो वाणवाँऽउत । अनेशन्नस्य याऽइषव आभुरस्य निषङ्गधिः ॥
स्वर रहित पद पाठ
विज्यमिति विऽज्यम्। धनुः। कपर्द्दिनः। विशल्य इति विऽशल्यः। बाणवानिति बाणऽवान्। उत। अनेशन्। अस्य। याः। इषवः। आभुः। अस्य। निषङ्गधिरिति निषङ्गऽधिः॥१०॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तदेवाह॥
अन्वयः
हे धनुर्वेदविदो जनाः! अस्य कपर्द्दिनः सेनापतेर्धनुर्विज्यं मा भूदयं विशल्य आभुर्मा भूत्। उतास्य शस्त्रास्त्रधारकस्य निषङ्गधिर्मृषा मा भूत्। बाणवांश्चायं भवतु। या अस्येषवोऽनेशन् ता अस्मै न वा दत्त॥१०॥
पदार्थः
(विज्यम्) विगता ज्या यस्मात् तत् (धनुः) (कपर्द्दिनः) प्रशंसितो जटाजूटो विद्यते यस्य तस्य (विशल्यः) विगतानि शल्यानि यस्य सः (बाणवान्) बहवो बाणा विद्यन्ते यस्य सः (उत) यदि (अनेशन्) नश्येयुः। णश् अदर्शने, लुङि रूपम्। नशिमन्योरलिट्येत्वं वक्तव्यम् [अष्टा॰वा॰६.४.१२०] अनेन वार्तिकेनात्रैत्वम्। (अस्य) सेनापतेः (याः) (इषवः) बाणाः (आभुः) रिक्तः खड्गादिरहितः (अस्य) (निषङ्गधि) निषङ्गानि शस्त्रास्त्राणि धीयन्ते यस्मिन् सः॥१०॥
भावार्थः
युयुत्सुना नरेण धनुर्ज्यादयो दृढा बहुबाणाश्च धार्याः सेनापत्यादिभिर्युध्यमानान् विलोक्य पुनश्च तेभ्यो बाणादीनि साधनानि देयानि॥१०॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वही विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे धनुर्वेद को जानने हारे पुरुषो! (अस्य) इस (कपर्द्दिनः) प्रशंसित जटाजूट को धारण करने हारे सेनापति का (धनुः) धनुष् (विज्यम्) प्रत्यञ्चा से रहित न होवे तथा यह (विशल्यः) बाण के अग्रभाग से रहित और (आभुः) आयुधों से खाली मत हो (उत) और (अस्य) इस अस्त्र-शस्त्रों को धारण करने वाले सेनापति की (निषङ्गधिः) बाणादि शस्त्रास्त्र कोष खाली मत हो तथा यह (बाणवान्) बहुत बाणों से युक्त होवे (याः) जो (अस्य) इस सेनापति के (इषवः) बाण (अनेशन्) नष्ट हो जावें, वे इस को तुम लोग नवीन देओ॥१०॥
भावार्थ
युद्ध की इच्छा करने वाले पुरुषों को चाहिये कि धनुष् की प्रत्यञ्चा आदि को दृढ़ और बहुत से बाणों को धारण करें। सेनापति आदि को चाहिये कि लड़ते हुए अपने भृत्यों को देख के यदि उन के पास बाणादि युद्ध के साधन न रहें तो फिर भी दिया करें॥१०॥
विषय
वीर का सशस्त्र रूप ।
भावार्थ
( कपर्दिनः) सुन्दर जटावान्, शुभ केशकलाप वाले, केशवान् या शिर पर शुभ फुनगी या मौर को धारण करने वाले चीर पुरुष का क्या ( धनुः विज्यम् ) धनुष डोरी से रहित हो सकता है ? नहीं । ( उत बाणवान् विशल्यः ) तो क्या बाणों से भरा तर्कस बाण रहित हो सकता है ? नहीं। ( अस्य या इषवः ) इसके जो इषु, बाण हैं क्या वे ( अनशन )नष्ट हो सकते हैं ? नहीं ! तो क्या ( अस्य निषङ्गधिः ) वे इसकी तलवार का कोश ( आभुः ) खाली रह सकता है ? कभी नहीं । प्रत्युत, सदा उसके धनुष पर डोरी तर्कस में बाण, और हाथ में बाण और कोष में तलवार रहनी आवश्यक है ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भुरिगार्ष्यनुष्टुप् । गांधार ॥
विषय
विज्यं धनुः आभुः निषङ्गधिः
पदार्थ
१. शत्रुओं को दूर भगाकर (कपर्दिनः) = केन सुखेन परं पूर्ति ददाति 'प्रजाओं में सुख - विस्तार से तृप्ति देनेवाले, प्रजाओं में सुख को फैलानेवाले इस राजा का (धनुः) = धनुष, अब शत्रु-विजय के बाद (विज्यम्) = ज्यारहित हो जाता है। शत्रुओं को मारने के लिए गत मन्त्र में जिस धनुष पर ज्या को चढ़ाया था, वह धनुष अब विजय के बाद उतारी हुई ज्यावाला कर दिया गया है। २. (उत) और (बाणवान्) = वह धनुष जोकि अब तक उत्तम बाणोंवाला था, अब (विशल्यः) = शल्यों से रहित हो गया है। ३. (अस्य) = इसके (याः इषवः) = जो शत्रु - शातन करनेवाले शर थे, वे सब अब (अनेशन्) = [णश् अदर्शन] अदृष्ट हो गये हैं। उन्हें अस्त्रागार में सुरक्षित रख दिया गया है। ४. (अस्य) = इसका (निषङ्गधिः) = [निषज्यते इति निषङ्गः खड्गः तद्यस्मिन् धीयते] म्यान, जिसमें कि अब तक तलवार विद्यमान थी, वह अब (आभुः) = रिक्तखाली है। तलवार को भी ठीक-ठाक व तेज़ करने के लिए म्यान से निकाल कर अलग रख दिया गया है। ५. संक्षेप में, शत्रु को जीतकर यह राजा अब 'न्यस्तसर्वशस्त्र' हो गया है। अपनी प्रजा पर इसने अस्त्रों का प्रयोग थोड़े ही करना है।
भावार्थ
भावार्थ - प्रजा में सुख-सञ्चार करनेवाले राजा का अस्त्रागार शत्रुओं के संहार के लिए है, प्रजा पर अत्याचार के लिए नहीं ।
मराठी (2)
भावार्थ
युद्धाची इच्छा असणाऱ्यांनी धनुष्याची प्रत्यञ्चा दृढ करून पुष्कळ बाण बाळगावेत. सेनापतीने सैन्यातील सैनिकांचे बाण वगैरे युद्धाची साधने संपली तर त्यांना ती पुरवावीत.
विषय
पुढील मंत्रातही तोच विषय (राजधर्म) प्रतिपादित आहे -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे धनुर्वेद जाणणार्या मनुष्यांनो (सेनापतीचे सैनिकहो ) (तुम्ही हे पहावे की युद्धभूमीत) (अस्थ) या (कपर्दिन:) सुंदर जराजूट वा केशकल्याप धारण करणार्या सेनापतीचे (धनु:) धनुष्य (कधीही) (विज्यम्) प्रत्यंचारहित होऊ नये. (धनुष्याची दोरी तूटू नये) तसेच या सेनापतीच्या) (विशल्य:) बाणाचे अग्रभाग (तूटू नये) याच्याकडील (आभ्रु:) शस्त्रांचा साठा (कधी संपू नये (उत) आणि (अस्य) अस्त्र-शस्त्र धारण करणार्या या सेनापतीचा (निषड्गधि:) बाण ठेवण्याचे साधन भाता कधीही रिकामा राहू नये. (तुम्ही इतर सैनिकांनी पहावे की) या सेनापती जवळ (बाणवान्) बाणा, अस्त्र-शस्त्रादींचा भरपूर साठी राहावा (या:) सेनापतीजवळ जे (इषव:) बाण आहेत, ते (अनेशन्) नष्ट होणार नाहीत (याविषयी लक्ष ठेवा) सेनेला रसद वा अस्त्र-शस्त्रांचा पुरवठा करणार्या अधिकारी वर्गाला उद्देशून अमात्याने दिलेला आदेश वाटतो ॥१०॥
भावार्थ
भावार्थ - युद्ध करण्यास इच्छुक असणार्या वा (रणांगणाकडे जाणार्या पुरुषांनी आपले धनुष्य, बाण, प्रत्यञ्चा आदी अस्त्रांना मजबूत आहेत की नाही, याविषयी जागरूक असावे. बाणांचा साठा भरपूर असावा. तसेच सेनापती आदी अधिकार्यांचे कर्तव्य आहे की त्यांनी जर त्यांच्या युद्धस्थ सैनिकांजवळ पुरेसे बाण आदी नसतील, तर वारंवार ते देण्याची व्यवस्था करावी. ॥१०॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O masters of the science of archery, let not the bow of this commander with coiled and braided hair, be ever unstrung, let him never be devoid of arrows, and warlike instruments, who always keeps himself well armed, be ever empty. May he possess many arrows. Equip him anew with arrows whenever they are destroyed.
Meaning
May the awful bow of the lord of braided hair never be without the string. May his arrows never be without the point. May his arms be never destroyed. May his armoury never be void of arms.
Translation
May the bow of the terrible punisher, having braided hair, become stringless; may his quiver hold no arrow with pointed head; may all his shafts disappear and may his cabbard, that holds the sword, be empty. (1)
Notes
Kapardinah, कपर्दो जटाबन्धः, सोऽस्यास्तीति कपर्दी, तस्य, one with braided hair (possessive case). Vijyam, विगतगुणं,from which the string has been removed or loosened. Bāņavān, इषुधि:, the quiver. Visalyaḥ, शररहित:, without any arrows in it; empty. Aneśan, from णश अदर्शने, नश्यन्तु, may disappear. Ābhuḥ, रिक्त:, empty. Nişangadhiḥ, निषंग: खड्गं , स धीयतेऽस्मिन् इति निषंगधि:, nişanga is the sword; in which that is kept, i. e. the cabbard. May his bow be stringless, quiver arrowless, and the cabbard empty. May he put away his weapons.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তদেবাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।
पदार्थ
পদার্থঃ–হে ধনুর্বেদের জ্ঞাতা পুরুষগণ! (অস্য) এই (কপর্দিনঃ) প্রশংসিত জটাজুট ধারণকারী সেনাপতির (ধনুঃ) ধনুক (বিজ্যম্) জ্যা রহিত না হউক তথা এই (বিশল্যঃ) বাণের অগ্রভাগ রহিত এবং (আভুঃ) আয়ুধে, অস্ত্রশস্ত্রে রিক্ত না হউক (উত) এবং (অস্য) এই অস্ত্র, শস্ত্র গুলিকে ধারণকারী সেনাপতির (নিষঙ্গধিঃ) বাণাদি শস্ত্রাস্ত্র কোষ রিক্ত যেন না হয় তথা এই (বাণবান্) বহুবাণ দ্বারা যুক্ত হউক (য়াঃ) যে (অস্য) এই সেনাপতির (ইষবঃ) বাণ (অনেশন্) নষ্ট হইয়া যায় সেগুলিকে তোমরা নবীন প্রদান কর ॥ ১০ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–যুদ্ধের ইচ্ছুক ব্যক্তিগণের উচিত যে, ধনুকের জ্যা আদিকে দৃঢ় এবং বহু বাণকে ধারণ করিবে । সেনাপতি আদির উচিত যে, লড়াই করিবার সময় যদি তিনি দেখেন যে, তাদের কাছে বাণাদি যুদ্ধের সাধন নেই তাহা হইলে পুনঃ প্রদান করিবে ॥ ১০ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
বিজ্যং॒ ধনুঃ॑ কপ॒র্দিনো॒ বিশ॑ল্যো॒ বাণ॑বাঁ২ऽউ॒ত ।
অনে॑শন্নস্য॒ য়াऽইষ॑বऽআ॒ভুর॑স্য নিষঙ্গ॒ধিঃ ॥ ১০ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
বিজ্যং ধনুরিত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । রুদ্রো দেবতা । ভুরিগার্ষ্যনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
গান্ধারঃ স্বরঃ ॥
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