Loading...
यजुर्वेद अध्याय - 16

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 4
    ऋषिः - परमेष्ठी ऋषिः देवता - रुद्रो देवता छन्दः - निचृदार्ष्यनुस्टुप् स्वरः - गान्धारः
    3

    शि॒वेन॒ वच॑सा॒ त्वा॒ गिरि॒शाच्छा॑ वदामसि। यथा॑ नः॒ सर्व॒मिज्जग॑दय॒क्ष्म सु॒मना॒ऽअस॑त्॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शि॒वेन॑। वच॑सा। त्वा॒। गिरि॒शेति॒ गिरि॑ऽश। अच्छ॑। व॒दा॒म॒सि॒। यथा॑। नः॒। सर्व॑म्। इत्। जग॑त्। अ॒य॒क्ष्मम्। सु॒मना॒ इति॑ सु॒ऽमनाः॑। अस॑त् ॥४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शिवेन वचसा त्वा गिरिशाच्छा वदामसि । यथा नः सर्वमिज्जगदयक्ष्मँ सुमना असत् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    शिवेन। वचसा। त्वा। गिरिशेति गिरिऽश। अच्छ। वदामसि। यथा। नः। सर्वम्। इत्। जगत्। अयक्ष्मम्। सुमना इति सुऽमनाः। असत्॥४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 16; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ चिकित्सककृत्यमाह॥

    अन्वयः

    हे गिरिश रुद्र वैद्यराज! सुमनास्त्वं यथा नः सर्वं जगदयक्ष्ममसत् तथेच्छिवेन वचसा त्वा वयमच्छ वदामसि॥४॥

    पदार्थः

    (शिवेन) कल्याणकारकेण (वचसा) वचनेन (त्वा) त्वाम् (गिरिश) यो गिरिषु पर्वतेषु मेघेषु वा शेते तत्सम्बुद्धौ (अच्छ) सम्यक्। निपातस्य च [अष्टा॰६.३.१३६] इति दीर्घः। (वदामसि) वदेम (यथा) (नः) अस्माकम् (सर्वम्) (इत्) एव (जगत्) मनुष्यादिकं जङ्गमं राज्यम् (अयक्ष्मम्) यक्ष्मादिरोगरहितम् (सुमनाः) शोभनम् मनो यस्य सः (असत्) स्यात्॥४॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। यो वैद्यकशास्त्रमधीत्य पर्वतादिषु स्थिता ओषधीरपो वा सुपरीक्ष्य सर्वेषां कल्याणाय निष्कपटित्वेन रोगान् निवार्य्य प्रियस्वरूपया वाचा वर्त्तेत तं वैद्यं सर्वे सत्कुर्युः॥४॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    अब वैद्य का कृत्य यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (गिरिश) पर्वत वा मेघों में सोनेवाले रोगनाशक वैद्यराज! तू (सुमनाः) प्रसन्नचित्त होकर आप (यथा) जैसे (नः) हमारा (सर्वम्) सब (जगत्) मनुष्यादि जङ्गम और स्थावर राज्य (अयक्ष्मम्) क्षय आदि राजरोगों से रहित (असत्) हो वैसे (इत्) ही (शिवेन) कल्याणकारी (वचसा) वचन से (त्वा) तुझ को हम लोग (अच्छ वदामसि) अच्छा कहते हैं॥४॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो पुरुष वैद्यकशास्त्र को पढ़ पर्वतादि स्थानों की ओषधियों वा जलों की परीक्षा कर और सब के कल्याण के लिये निष्कपटता से रोगों को निवृत्त करके प्रिय वाणी से वर्त्ते, उस वैद्य का सब लोग सत्कार करें॥४॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    रुद्र की शिव तनु, शान्तिकारिणी राजव्यवस्था ।

    भावार्थ

    हे ( गिरिश ) समस्त वाणियों या आज्ञाओं में स्वयं आज्ञापक और व्यवस्थापक रूप से विद्यमान राजन् ! ( त्वा) तुझको हम ( शिवेन वचसा ) कल्याणकारी, सुन्दर वचन से ( अच्छा वदामसि ) भली प्रकार निवेदन करते हैं। ( यथा ) जिससे (नः) हमारा ( सर्वम् इत् जगत् ) समस्त जगत् प्राणि वर्ग और राज्यव्यवहार ( अयक्ष्मम् )राजयक्ष्मा आदि रोगों से रहित ( सुमनाः ) और परस्पर शुभ चित्त वाला ( असत् ) हो ।

    टिप्पणी

    परमेष्ठी ऋषिः । द० ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    निचृदार्ष्यनुष्टुप् । गान्धारः॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    अयक्ष्मं+सुमना

    पदार्थ

    १. हे (गिरिश) = वेदवाणी में निवास करनेवाले प्रभो! सारी वाणियाँ आपका ही वर्णन कर रही हैं 'सर्वे वेदा यत्पदमामनन्ति'। हम (शिवेन वचसा) = इस कल्याणकारिणी वेदवाणी से (त्वा अच्छ) = [अच्छ अभेदाप्तुम् इति शाकपूणिः- नि० ५।२८] आपको प्राप्त करने के लिए (वदामसि) = प्रार्थना करते हैं। अथवा इस वेदवाणी के अनुसार अपने जीवन को बनाते हुए, वेदवाणी को जीवन से कहते हुए, आपको प्राप्त करने के लिए यत्नशील होते हैं। आपको प्राप्त करने का उपाय यही है कि हम वेदवाणी के अनुसार अपने जीवन को बनाएँ। २. (यथा) = जिससे (नः) = हमारा (सर्वं इत् जगत्) = सारा ही जगत्-हमारे सब क्रियाशील व्यक्ति (अयक्ष्मम्) = रोग से रहित तथा (सुमना) = उत्तम मनवाले प्रसन्नचित्त (असत्) = हों । वेदवाणी के हमारे जीवनों पर दो परिणाम हैं। यह हमारे शरीरों को व्याधि-शून्य बनाती है [अयक्ष्मम्] तथा मन की आधियों को हरती है [सुमनाः]।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम अपने जीवन को वेदवाणी के अनुसार बनाते हुए प्रभु को प्राप्त करनेवाले बनें। हमारे शरीर व्याधियों से शून्य हों और मन आधियों से ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जो माणूस वैद्यकशास्त्राचे अध्ययन करून पर्वतावरील औषधांची किंवा पाण्याची परीक्षा करून निष्कपटीपणे सर्वांच्या कल्याणासाठी वापरतो व रोग दूर करतो आणि मधुरही बोलतो त्या वैद्याचा सर्व लोकांनी सत्कार करावा.

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पुढील मंत्रात वैद्याच्या कर्तव्यांविषयी सांगितले आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे गिरिश) पर्वतीय प्रदेशात राहणार्‍या अथवा मेघात राहणार्‍या (मेघवृष्टीमुळे उत्पन्न विविध रोगनाशक औषधींचे ज्ञान असणार्‍या) हे वैद्यराज, आपण (सुमना:) प्रसन्नचित्त राहून (यथा) ज्यायोगे (व:) आमचे राज्य (सर्वम्) सर्वदृष्टीने (जगत्) मनुष्य आदी प्राणी व जंगम आणि (नदी, पर्वत, भूमी, घरे) आदी स्थावर पदार्थांनी युक्त राहून (अयक्ष्मम्) क्षय आदी राजरोगापासून (असत्) युक्त राहील, असे करा. (इत्) तसेच आपल्या (शिवेन) कल्याणकारी मधुर (वचसा) वाणी मुळे (त्वा) आची आपल्याला (अचल वदामसि) उत्तम स्तुती करू व करीत आहोत. (आपण उत्तम रोगनाशक औषधींच ज्ञाता आहात आणि रोग्यांशी आपले वागणे बोलणे मधुर आहे, त्यामुळे आम्ही आपली प्रशंसा करतो) ॥4॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात उपमा अलंकार आहे. जो माणूस वैद्यकशास्त्राचा गाढा पंडित आहे, ज्याने पर्वत आदी स्थानांत उगवणार्‍या औषधींची आणि तेथील जलाची व्यवस्थित माहिती घेतली आहे, आणि निष्कपट नि:स्वार्थीवृत्तीने सर्वांच्या कल्याणासाठी वैद्यक सेवा करीत असून ज्याची वाणी मधुर आहे, अशा प्रशंसनीय वैद्याचा सर्व लोकांनी अवश्य सत्कार करावा ॥4॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O physician, dweller on the mountains, and analyser of waters, we praise thee with propitious speech. Full of happiness, let all our living beings be free from tuberculosis and well satisfied.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Meaning

    Rudra, life of the clouds and spirit of the mountain breeze, we praise you and pray to you in words of faith and fidelity so that by your gifts and grace we may be at peace in the heart and this whole world be free from depression and consumptive diseases.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O Lord of mountains, we salute you with auspicious hymns, so that all our living beings may be free from diseases and be hail and hearty. (1)

    Notes

    Girisa, गिरीणां ईश , O Lord of mountains. अभिवदाम:, we bow to you in reverence. अछाभेराप्तुमिति शाकपूणि:' (Ninukta,V. 28), acchā and abhi mean to approach or to obtain. Acchāvadāmasi, Jagat, जंगमं नरा: पश्वादि , all that moves, such as men, cattle etc. Ayakṣmam, नीरोगं, free from disease. Sumană, शोभनमस्कं, hail and hearty; friendly; delightful. शोभ Asat, भूयात्, may it be.

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (2)

    विषय

    অথ চিকিৎসককৃত্যমাহ ॥
    এখন বৈদ্যর কৃত্য, এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে (গিরিশ) পর্বত বা মেঘসমূহ মধ্যে শয়নরত রোগনাশক বৈদ্যরাজ! (সুমনাঃ) প্রসন্নচিত্ত হইয়া আপনি (য়থা) যেমন (নঃ) আমাদিগের (সর্বম্) সকল (জগৎ) মনুষ্যাদি জঙ্গম ও স্থাবর রাজ্য (অয়ক্ষম্) ক্ষয়াদি রাজরোগ হইতে রহিত (অসৎ) করিবেন সেইরূপ (ইৎ)(শিবেন) কল্যাণকারী (বচসা) বচন দ্বারা (ত্বা) আপনাকে আমরা (অচ্ছ বদামসি) উত্তম বলি ॥ ৪ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে উপমালঙ্কার আছে । যে পুরুষ বৈদ্যক শাস্ত্র পাঠ করিয়া পর্বতাদি স্থানসমূহ, ওষধিসকল বা জলকে পরীক্ষা করিয়া এবং সকলের কল্যাণ হেতু নিষ্কপটতা পূর্বক রোগসমূহকে নিবৃত্ত করিয়া প্রিয় বাণীসহ আচরণ করে, সেই বৈদ্যর সকলে সৎকার করিবে ॥ ৪ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    শি॒বেন॒ বচ॑সা॒ ত্বা॒ গিরি॒শাচ্ছা॑ বদামসি ।
    য়থা॑ নঃ॒ সর্ব॒মিজ্জগ॑দয়॒ক্ষ্মᳬं সু॒মনা॒ऽঅস॑ৎ ॥ ৪ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    শিবেনেত্যস্য পরমেষ্ঠী ঋষিঃ । রুদ্রো দেবতা । নিচৃদার্ষ্যনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    পদার্থ

     

    শিবেন বচসাত্বা গিরিশাচ্ছাবদামসি।

    যথা নঃ সর্বমিজ্জগদযক্ষ্মংসুমনা অসৎ।।৩৭।

    (যজু ১৬।৪)

    পদার্থঃ (গিরিশ) হে বেদবাণীতে নিবাসকারী! আমরা (শিবেন বচসা) এই কল্যাণকারী বেদবাণী দ্বারা (ত্বা অচ্ছ) তোমাকে প্রাপ্ত করার জন্য (বদামসি) প্রার্থনা করছি, (যথা) যাতে (নঃ) আমাদের (সর্বম্ ইৎ জগৎ) সকল ক্রিয়াশীল ব্যক্তি (অযক্ষ্মম্) রোগ রহিত তথা (সুমনা) প্রসন্নচিত্ত (অসৎ) হয়।

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ আমরা আমাদের জীবনকে বেদবাণী অনুযায়ী গড়ে পরমাত্মাকে প্রাপ্ত করি। আমাদের শরীর ব্যধিশূন্য হোক এবং মন প্রসন্ন হোক।। ৩৭।।

     

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top