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यजुर्वेद अध्याय - 16

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  • यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 65
    ऋषिः - परमेष्ठी प्रजापतिर्वा देवा ऋषयः देवता - रुद्रा देवताः छन्दः - धृतिः स्वरः - ऋषभः
    2

    नमो॑ऽस्तु रु॒द्रेभ्यो॒ येऽन्तरि॑क्षे॒ येषां॒ वात॒ऽइष॑वः। तेभ्यो॒ दश॒ प्राची॒र्दश॑ दक्षि॒णा दश॑ प्र॒तीची॒र्दशोदी॑ची॒र्दशो॒र्ध्वाः। तेभ्यो॒ नमो॑ऽअस्तु॒ ते नो॑ऽवन्तु॒ ते नो॑ मृडयन्तु॒ ते यं द्वि॒ष्मो यश्च॑ नो॒ द्वेष्टि॒ तमे॑षां॒ जम्भे॑ दध्मः॥६५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नमः॑। अ॒स्तु॒। रु॒द्रेभ्यः॑। ये। अ॒न्तरि॑क्षे। येषा॑म्। वातः॑। इष॑वः। तेभ्यः॑। दश॑। प्राचीः॑। दश॑। द॒क्षि॒णाः। दश॑। प्र॒तीचीः॑। दश॑। उदी॑चीः। दश॑। ऊ॒र्ध्वाः। तेभ्यः॑। नमः॑। अ॒स्तु॒। ते। नः॒। अ॒व॒न्तु॒। ते। नः॒। मृ॒ड॒य॒न्तु॒। ते। यम्। द्वि॒ष्मः। यः। च॒। नः॒। द्वेष्टि॑। तम्। ए॒षा॒म्। जम्भे॑। द॒ध्मः॒ ॥६५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमोस्तु रुद्रेभ्यो येन्तरिक्षे येषाँवात इषवः । तेभ्यो दश प्राचीर्दश दक्षिणा दश प्रतीचीर्दशोदीचीर्दशोर्ध्वाः । तेभ्यो नमोऽअस्तु ते नो वन्तु ते नो मृडयन्तु ते यन्द्विष्मो यश्च नो द्वेष्टि तमेषाञ्जम्भे दध्मः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नमः। अस्तु। रुद्रेभ्यः। ये। अन्तरिक्षे। येषाम्। वातः। इषवः। तेभ्यः। दश। प्राचीः। दश। दक्षिणाः। दश। प्रतीचीः। दश। उदीचीः। दश। ऊर्ध्वाः। तेभ्यः। नमः। अस्तु। ते। नः। अवन्तु। ते। नः। मृडयन्तु। ते। यम्। द्विष्मः। यः। च। नः। द्वेष्टि। तम्। एषाम्। जम्भे। दध्मः॥६५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 16; मन्त्र » 65
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    ये विमानादिषु स्थित्वाऽन्तरिक्षे विचरन्ति, येषां वात इवेषवः सन्ति, तेभ्यो रुद्रेभ्योऽस्माकं नमोऽस्तु, ये दश प्राचीर्दश दक्षिणा दश प्रतीचीर्दशोर्ध्वा आशा व्याप्तवन्तस्तेभ्यो नमोऽस्तु, ते नोऽवन्तु, ते नो मृडयन्तु, ते वयं च यं द्विष्मो यश्च नो द्वेष्टि तमेषां जम्भे वशे दध्मः॥६५॥

    पदार्थः

    (नमः) (अस्तु) (रुद्रेभ्यः) (ये) (अन्तरिक्षे) आकाशे (येषाम्) (वातः) (इषवः) (तेभ्यः॰) इति पूर्ववत्॥६५॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्या आकाशस्थान् शुद्धान् शिल्पिनः सेवन्ते, तानेते सर्वतो बलयित्वा शिल्पविद्याः शिक्षेरन्॥६५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    (ये) जो विमानादि यानों में बैठ के (अन्तरिक्षे) आकाश में विचरते हैं (येषाम्) जिनके (वातः) वायु के तुल्य (इषवः) बाण हैं (तेभ्यः) उन (रुद्रेभ्यः) प्राणादि के तुल्य वर्त्तमान पुरुषों के लिये हमारा किया (नमः) सत्कार (अस्तु) प्राप्त हो जो (दश) दश प्रकार (प्राचीः) पूर्व (दश) दश प्रकार (दक्षिणाः) दक्षिण (दश) दश प्रकार (प्रतीचीः) पश्चिम (दश) दश प्रकार (उदीचीः) उत्तर और (दश) दश प्रकार (ऊर्ध्वाः) ऊपर की दिशाओं में व्याप्त हुए हैं (तेभ्यः) उन सर्वहितैषियों को (नमः) अन्नादि पदार्थ (अस्तु) प्राप्त हो, जो ऐसे पुरुष हैं (ते) वे (नः) हमारी (अवन्तु) रक्षा करें (ते) वे (नः) हमको (मृडयन्तु) सुखी करें (ते) वे और हम लोग (यम्) जिससे (द्विष्मः) अप्रीति करें (च) और (यः) जो (नः) हम को (द्वेष्टि) दुःख दे (तम्) उसको (एषाम्) इन वायुओं की (जम्भे) बिडाल के मुख में मूषे के समान पीड़ा में (दध्मः) डालें॥६५॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य आकाश में रहने वाले शुद्ध कारीगरों का सेवन करते हैं, उनको ये सब ओर से बलवान् करके शिल्पविद्या की शिक्षा करें॥६५॥

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    विषय

    नाना रूद्रो का अधिकार मान, आदर।

    भावार्थ

    इसी प्रकार ( ये अन्तरिक्षे ) जो अन्तरिक्ष में वायु, मेघ आदि के समान हैं और जो अन्तरिक्ष के समान सब को आवरण करने वाले रक्षक राजा पर आश्रित रुद्र गण हैं ( तेषां वातः इषवः) जिनके वायु या वायु के समान तीव्र वेगवान् बाण हैं ( तेभ्यः नमः अस्तु ) उनको हमारा नमस्कार है ।( तेभ्यः ) उनको ( दश प्राची: दश प्रतीची: दश दक्षिणाः दश उदीची: दश ऊर्ध्वाः ) दश दश प्रकार की पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण और ऊर्ध्व दिशाएं प्राप्त हो । अर्थात् सब दिशाओं में उनको दशों दिशाओं के सुख प्राप्त हो । अथवा दशों दिशों में उनको दोनों हाथों को जोड़ कर दश अगुलिये आदरार्थ दर्शाता हूं ।( तेभ्यः नमः अस्तु ) उनको हमारा आदरपूर्वक नमस्कार हो । ( ते नः अवन्तु ) वे हमारी रक्षा करें । ( ते नः मृडयन्तु) वे हमें सुखी करें । ( ते ) वे और हम ( यं द्विष्मः ) जिसको द्वेष करते हैं ( यः च नः द्वेष्टि ) और जो हमसे द्वेष करता है ( तम् ) उसको हम लोग मिलकर ( एषाम् ) उनके ( जम्भे ) बिल्ली के मुख में जिस प्रकार मूसा पीड़ा पाता है उसी प्रकार कष्ट पाने के लिये उनकी अधीनता में ( दध्मः ) धर दें। वे उनको दण्ड दें ॥ शत० ९ । १ । ३५-३९ ॥

    टिप्पणी

    त्रयोऽपि अवरोह संज्ञा : मन्त्राः । सर्वा० । 'तेनो मृळयन्तु'० इति काण्व ० ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    धृतिः । ऋषभः ॥

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    विषय

    ये अन्तरिक्षे येषां वात इषवः

    पदार्थ

    १. (रुद्रेभ्यः नमः अस्तु) = रुद्रों के लिए, राजा की ओर से नियुक्त [रोरूयमाणो द्रवति] प्रभु का नाम लेकर वासनाओं पर आक्रमण करनेवाले पुरुषों के लिए नमस्कार हो । उन रुद्रों के लिए (ये) = जो (अन्तरिक्षे) = हृदयान्तरिक्ष को निर्मल बनाने के लिए नियुक्त हुए हैं, 'अन्तरा क्षि' = जो लोगों को सदा मध्यमार्ग में चलने का उपदेश देते हैं, जो 'अति' की हानियों का उद्घोषण करते हुए लोगों के जीवनों को नीरोग व सुखी बनाने का यत्न करते हैं। २. (वातः इषवः) = निरन्तर क्रियाशीलता ही (येषाम्) = जिनके बाण हैं। ये लोगों के जीवन को क्रियाशील बनाकर उन्हें सुखी बनाने में लगे हुए हैं। इनका मुख्य प्रचार यही है कि सदा क्रिया में लगे रहो, जिससे तुम्हारे हृदयों में अशुभ वासनाएँ उत्पन्न ही न हों। हृदय की पवित्रता का मार्ग एक ही है, और वह यह कि वायु की भाँति सदा अपने जीवन को गतिमय बनाये रक्खो । ३. (तेभ्यः) = इन क्रियाशीलतारूप बाणवाले रुद्रों के लिए मैं (दश) = दस अंगुलियों को (प्राची:) = पूर्वाभिमुख करता हूँ। (दश दक्षिणाः) = दस अंगुलियों को दक्षिणाभिमुख करता हूँ। (दश प्रतीची:) = दश अंगुलियों को पश्चिमाभिमुख करता हूँ। (दश उदीची:) = दस अंगुलियों को उत्तराभिमुख करता हूँ। (दश ऊर्ध्वा:) = और दस अंगुलियों को ऊर्ध्वाभिमुख करता हूँ, अर्थात् सब दिशाओं में इनके लिए मैं नमस्कार करता हूँ। ४. (तेभ्यः नमः अस्तु) = इन रुद्रों के लिए हमारा नमस्कार हो । (ते नः अवन्तु) = वे रुद्र हमारी रक्षा करें। (ते नो मृडयन्तु) = क्रियाशीलता की प्रेरणा से हमारे जीवनों को पवित्र बनाकर ये उन्हें मङ्गलमय बनाएँ। मङ्गल भी तो उन्हीं का होता है जो सदा गतिशील हों [मगि गतौ] । ५. (ते) = वे रुद्र तथा हम सभी (यम्) = जिस अक्रियाशील, परन्तु खूब खानेवाले और अतएव राष्ट्र पर भारभूत व्यक्ति को (द्विष्मः) = प्रीति के अयोग्य समझते हैं, (यः च) = और जो (नः द्वेष्टि) = हम सबसे द्वेष करता है, (तम्) = उस अकर्मण्य बहुभुक् पुरुष को ऐषाम् इन रुद्रों के (जम्भे) = न्याय के जबड़े में (दध्मः) = स्थापित करते हैं। वे ही उचित दण्ड-व्यवस्था करके इनके जीवन को सुधारेंगे और इन्हें क्रियाशील बनाकर इनके हृदयों को निर्मल करेंगे।

    भावार्थ

    भावार्थ-उन राजाधिकारियों को, जो प्रजा को वायु की भाँति निरन्तर क्रियाशीलता का उपदेश करके पवित्र हृदय बनाने में लगे हैं, हम आदर देते हैं।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. अंतरिक्षात वायूयानाद्वारे रक्षण करणाऱ्या कारागिरांना सर्व प्रकारे बलवान करून शिल्पविद्येचे शिक्षण द्यावे.

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    विषय

    पुनश्च, तोच विषय -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ -(ये) जे (वीर सैनिक वा वैमानिक) विमान आदी यांनामधे बसून (अन्तरिक्षे) आकाशात विहार करतात, आणि (येषाम्) ज्यांचे (इषव:) बाण (तोफा, राकेट, वा बाँब सारखे अस्त्र) (वात:) वायूप्रमाणे (वायुवेगाने) जाणारे आहेत, (तेभ्य:) त्या (रुद्रेभ्य:) प्राणांप्रमाणे प्रिय असणार्‍या वीर सैनिकांना /वैमानिकांना आम्हा (नागरिकांचा) (नम:) सत्कार (अस्तु) प्राप्त होवो. शिवाय (दश) दहा प्रकारचे (ऊर्ध्वा:) वरच्या दिशांमध्ये जे वीर सैनिक फैलावलेले आहेत, (तेभ्य:) त्या सर्व हितैषिजनांना (नम:) आमच्यातर्फे (नम:) अन्नभोजनादी (अस्तु) प्राप्त होवोत. (आम्ही नागरिकांनी सैनिकांचा सन्मान केला पाहिजे आणि त्यांच्या भोजनादीची व्यवस्था केली पाहिजे) असे जे हितकारी लोक आहेत, (ते) त्यांनी (न:) आमचे (अवन्तु) रक्षण करावे. (ते) त्यांनी (न:) आम्हाला (मृऽयन्तु) सुखी करावे. (ते) हितैषी (सैनिक) आणि आम्ही (नागरिक) (यम्) ज्यांना (द्विष्म:) प्रेम करीत नाही ज्याविषयी (अप्रीती आहे) (च) आणि (य:) जो (संहारक, विध्वंसक) वायूंच्या (वावटळ, वादळ आदींच्या) (जम्भे) मुखामधे (दध्म:) टाकतो. जसे बोक्याच्या मुखात उंदीर जाऊन पीडित वा मृत होतो, तसेच आम्ही त्या दुष्टाचा नाश व्हावा, अशी इच्छा व्यक्त करतो. ॥65॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे जी माणसें आकाशात विहार करणार्‍या कुशल यांत्रिक लोकांचा सहवास करतात, ते सर्वदृष्ट्या सामर्थ्यशाली होऊन शिल्पविद्येत (विमानशास्त्रात) निष्णात होतात ॥65॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Homage to the heroes, who sitting in planes fly in the air, who work selflessly like vital breaths, who are powerful like the wind. To them ten eastward, southward ten, ten to the west, ten to the north, ten to the region uppermost. To them we offer food. May they guard and delight us. Within their jaws we lay the man who dislikes us and whom we dislike.

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    Meaning

    Homage to the Rudras that abide in the skies. Wind and air is their power and gift to life. To them our salutations with folded hands with the fingers joined, with ten senses and the pranas. For them the ten directions east, ten directions south, ten directions west, ten directions north, and ten directions above; all these for them to pervade and operate. Salutations to them! May they protect us! May they bless us! Whosoever we hate, whosoever hate us, him we deliver unto their power for judgement and redress.

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    Translation

    Our obeisance be to the terrible punishers, who are in the mid-space and whose arrows are the winds. For them ten to the east, ten to the south, ten to the west, ten to the north and ten upwards. Our obeisance be to them. May they protect us. May they give us comfort. We putin their jaws the man, whom we hate and who hates us. (1)

    Notes

    Vāta iṣavaḥ, wind (tempest, tornado etc. ) is the arrows.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।

    पदार्थ

    পদার্থঃ–(য়ে) যাহারা বিমানাদি যানে বসিয়া (অন্তরিক্ষে) আকাশে বিচরণ করে (তেষাম্) যাহার (বাতঃ) বায়ুতুল্য (ইষবঃ) বাণ্ আছে (তেভ্যঃ) সেই সব (রুদ্রেভ্যঃ) প্রাণাদির তুল্য বর্ত্তমান পুরুষদিগের জন্য আমাদের কৃত (নমঃ) সৎকার (অস্তু) প্রাপ্ত হউক, যাহা (দশ) দশ প্রকার (প্রাচীঃ) পূর্ব (দশ) দশ প্রকার (দক্ষিণাঃ) দক্ষিণ (দশ) দশ প্রকার (প্রতীচীঃ) পশ্চিম (দশ) দশ প্রকার (উদীচীঃ) উত্তর এবং (দশ) দশ প্রকার ঊধর্বাঃ) উপরের দিকে ব্যাপ্ত হইয়াছে, (তেভ্যঃ) সেই সব সর্বহিতৈষীকে (নমঃ) অন্নাদি পদার্থ (অস্তু) প্রাপ্ত হউক । যাহারা এমন পুরুষ (তে) তাহারা (নঃ) আমাদের (অবন্তু) রক্ষা করুক, (তে) তাহারা (নঃ) আমাদেরকে (মৃডয়ন্তু) সুখী করুক, (তে) তাহারা এবং আমরা (য়ম) যাহার সহিত (দ্বিষ্মঃ) অপ্রীতি করি (চ) এবং (য়ঃ) যাহারা (নঃ) আমাদেরকে (দ্বেষ্টি) দুঃখ দিবে (তম্) তাহাকে (এষাম্) এই সব বায়ুসকলকে (জম্ভে) বিড়ালের মুখে ইন্দুরের সমান পীড়ায় (দধমঃ) ফেলিবে ॥ ৬৫ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপলঙ্কার আছে । যে সব মনুষ্য আকাশে নিবাসকারী শুদ্ধ কারীগরের সেবন করে তাহাদেরকে এইসব দিক্ দিয়া বলবান্ করিয়া শিল্পবিদ্যার শিক্ষা করিবে ॥ ৬৫ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    নমো॑ऽস্তু রু॒দ্রেভ্যো॒ য়ে᳕ऽন্তরি॑ক্ষে॒ য়েষাং॒ বাত॒ऽইষ॑বঃ । তেভ্যো॒ দশ॒ প্রাচী॒র্দশ॑ দক্ষি॒ণা দশ॑ প্র॒তীচী॒র্দশোদী॑চী॒র্দশো॒র্ধ্বাঃ । তেভ্যো॒ নমো॑ऽঅস্তু॒ তে নো॑ऽবন্তু॒ তে নো॑ মৃডয়ন্তু॒ তে য়ং দ্বি॒ষ্মো য়শ্চ॑ নো॒ দ্বেষ্টি॒ তমে॑ষাং॒ জম্ভে॑ দধ্মঃ ॥ ৬৫ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    নমোऽস্তু রুদ্রেভ্য ইত্যস্য পরমেষ্ঠী প্রজাপতির্বা দেবা ঋষয়ঃ । রুদ্রা দেবতাঃ । ধৃতিশ্ছন্দঃ । ঋষভঃ স্বরঃ ॥

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