यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 3
ऋषिः - परमेष्ठी वा कुत्स ऋषिः
देवता - रुद्रो देवता
छन्दः - विराडर्ष्यनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
2
यामिषुं॑ गिरिशन्त॒ हस्ते॑ बि॒भर्ष्यस्त॑वे। शि॒वां गि॑रित्र॒ तां कु॑रु॒ मा हि॑ꣳसीः॒ पुरु॑षं॒ जग॑त्॥३॥
स्वर सहित पद पाठयाम्। इषु॑म्। गि॒रि॒श॒न्तेति॑ गिरिऽशन्त। हस्ते॑। बि॒भर्षि॑। अस्त॑वे। शि॒वाम्। गि॒रि॒त्रेति॑ गिरिऽत्र। ताम्। कु॒रु॒। मा। हि॒ꣳसीः॒। पुरु॑षम्। जग॑त् ॥३ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यामिषुङ्गिरिशन्त हस्ते बिभर्ष्यस्तवे । शिवाङ्गिरित्र ताङ्कुरु मा हिँसीः पुरुषञ्जगत् ॥
स्वर रहित पद पाठ
याम्। इषुम्। गिरिशन्तेति गिरिऽशन्त। हस्ते। बिभर्षि। अस्तवे। शिवाम्। गिरित्रेति गिरिऽत्र। ताम्। कुरु। मा। हिꣳसीः। पुरुषम्। जगत्॥३॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ राजपुरुषैः किं कर्त्तव्यमित्याह॥
अन्वयः
हे गिरिशन्त सेनापते! यतस्त्वमस्तवे यामिषुं हस्ते बिभर्षि, अतस्तां शिवां कुरु। हे गिरित्र! त्वं पुरुषं जगन्मा हिंसीः॥३॥
पदार्थः
(याम्) (इषुम्) बाणावलिम् (गिरिशन्त) गिरिणा मेघेन शं तनोति तत्सम्बुद्धौ (हस्ते) (बिभर्षि) धरसि (अस्तवे) असितुं प्रक्षेप्तुम्, अत्र अस धातोस्तुमर्थे तवेन् प्रत्ययः। (शिवाम्) मङ्गलकारिणीम् (गिरित्र) गिरीन् विद्योपदेशकान् मेघान् वा त्रायते रक्षति तत्सम्बुद्धौ (ताम्) (कुरु) (मा) निषेधे (हिंसीः) हिंस्याः (पुरुषम्) पुरुषार्थयुक्तम् (जगत्) संसारम्॥३॥
भावार्थः
राजपुरुषैः युद्धविद्यां बुध्वा शस्त्राणि धृत्वा मनुष्यादयः श्रेष्ठा प्राणिनो नो हिंसनीयाः, किन्तु मङ्गलाचारेण रक्षणीयाः॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
अब राजपुरुषों को क्या करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे (गिरिशन्त) मेघ द्वारा सुख पहुंचाने वाले सेनापति! जिस कारण तू (अस्तवे) फेंकने के लिये (याम्) जिस (इषुम्) बाण को (हस्ते) हाथ में (बिभर्षि) धारण करता है, इसलिये (ताम्) उसको (शिवाम्) मङ्गलकारी (कुरु) कर। हे (गिरित्र) विद्या के उपदेशकों वा मेघों की रक्षा करनेहारे राजपुरुष! तू (पुरुषम्) पुरुषार्थयुक्त मनुष्यादि (जगत्) संसार को (मा) मत (हिंसीः) मार॥३॥
भावार्थ
राजपुरुषों को चाहिये कि युद्धविद्या को जान और शस्त्र-अस्त्रों को धारण करके मनुष्यादि श्रेष्ठ प्राणियों को क्लेश न देवें वा न मारें, किन्तु मङ्गलरूप आचरण से सब की रक्षा करें॥३॥
विषय
रुद्र की शिव तनु, शान्तिकारिणी राजव्यवस्था ।
भावार्थ
हे ( गिरिशन्त ) आज्ञारूप या वाणी में सब को शान्ति दायक या मेघ के समान सुखों को सब पर बर्षानेवाले स्वरूप में सब को शान्तिदायक ! ( याम् इषुम् ) जिस इषु अर्थात् बाण आदि शस्त्र गण को तू ( अस्तवे ) शत्रुओं पर फेंकने के लिये ( हस्ते ) अपने हननकारी हाथ में (विभर्षि ) धारण करता है । हे ( गिरित्र ) विद्वानों के रक्षक या अपनी आज्ञा, व्यवस्था में सब के रक्षक ! (ताम् ) उसको ( शिवाम् ) शिवा, मंगलकारक (कुरु) बनाये रख। (पुरुषम् ) पुरुषों, मनुष्यों और अन्य ( जगत् ) जंगम गौ आदि पशुओं को ( मा हिंसी: ) मत मार ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विराड् आसुर्यनुष्टुप् । गान्धारः ॥
विषय
अस्तवे [Broadcasting]
पदार्थ
१. हे (गिरिशन्त) = वेदवाणी में स्थित होकर इस ज्ञानवाणी के द्वारा शान्ति का विस्तार करनेवाले प्रभो! (याम् इषुम्) = जिस प्रेरणा को (अस्तवे) = चारों ओर सम्पूर्ण आकाशदेश में फेंकने [broadcast ] के लिए (हस्ते बिभर्षि) = आप हाथ में धारण करते हैं। 'हाथ में धारण करना' यह प्रयोग 'ज्ञान के उपस्थित' होने का सूचक है [on the tip of fingers = सारे पाठ का अंगुलियों के अग्रभाग में उपस्थित होना] प्रभु तो ज्ञानमय हैं। इस ज्ञान के द्वारा वे निरन्तर प्रेरणा प्राप्त करा रहे हैं। उस प्रेरणा को मानो वे सम्पूर्ण आकाश में फैला रहे हैं। जैसे एक ब्रॉडकास्टिङ्ग स्टेशन से किसी समाचार को सारे आकाश में फेंका जाता है, उसी प्रकार वे प्रभु सम्पूर्ण ज्ञान की प्रेरणा को हाथ में धारण किये हुए चारों ओर फैला रहे हैं। २. यदि उस प्रेरणा को हम सुनते हैं तो हमारा कल्याण-ही-कल्याण होता है। हे (गिरित्र) = इस वेदवाणी में स्थित होकर हमारा त्राण करनेवाले प्रभो! (ताम्) = उस ज्ञान प्रेरणा को आप हमारे लिए (शिवाम्) = कल्याणकारिणी (कुरु) = कीजिए । ३. आप उस प्रेरणा के द्वारा (जगत् पुरुषम्) = क्रियाशील पुरुष को (मा हिंसी:) = मत हिंसित होने दीजिए। जो उस प्रेरणा के अनुसार गति करता है, उसकी हिंसा नहीं होती। हे प्रभो! आप उसे और अधिक क्रियान्वित करने के लिए भी प्रेरणा दीजिए तभी तो हम नाश से अपनी रक्षा कर सकेंगे।
भावार्थ
भावार्थ- हे प्रभो! आप वेदवाणी के ब्रॉडकास्टिङ्ग स्टेशन हैं, मैं उसका ग्रहण करनेवाला रेडियो सेट बनूँ। उस प्रेरणा को ग्रहण करके अपना कल्याण सिद्ध कर सकूँ।
मराठी (2)
भावार्थ
राजपुरुषांनी युद्धविद्या जाणून शस्त्रास्त्रे धारण करावीत व माणसांना त्रास देऊ नये किंवा मारू नये. उलट चांगले वागून सर्वांचे रक्षण करावे.
विषय
पुढील मंत्रात राजपुरुषांच्या कर्तव्यांविषयी कथन केले आहे-
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे (गिरिशन्त) मेघाप्रमाणे प्रजाजनांना सुख देणार्या सेनापती, आपण (अस्तवे) शत्रूवर चालविण्यासाठी (याम्) ज्या (इषुम्) बाणावती (हस्ते) आपल्या हातात (विभर्मि) धारण करता, (ताम्) त्या बाणावालीला वा शस्त्रसमूहाला (आमच्याकरिता) (शिवाम्) मंगलकारिणी (करू) करा. (गिरित्र) विद्या शिकविणार्यांचे रक्षण करणारे अथवा मेघांचे रक्षण करणार्या (वृष्टीपासून होणार्या लाभांवर नियंत्रण ठेवणारे) हे राजपुरुष सेनापती, आपण (पुरुषम्) पुरुषार्थी मनुष्यांच्या (जगत्) समूहाला (मा) (हिंसी:) मारू नका (राज्यातील उद्योगी व्यवसायी वा कृषकजनांचे रक्षण करा. त्यांची हानी होऊ देऊ नका) ॥3॥
भावार्थ
भावार्थ - राजपुरुषांचे कर्तव्य आहे की त्यांनी युद्ध विद्येचे सखोल मान मिळवावे तसेच प्रभावशाली अस्त्र-शस्त्र धारण करावेत. मनुष्य आदी श्रेष्ठ प्राण्यांना कधीही उपद्रव देऊ नये अथवा त्यांची हिंसा करू नये. (शत्रू आणि दुष्ट प्राण्यांना अवश्य मारावे) शिवाय (सज्जनांकरिता) मंगलमय आचरण करीत त्यांची रक्षा करावी ॥3॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O commander of the army, the giver of comforts like a cloud, whatever shaft thou takest in hand to shoot, make that auspicious. O protector of the preachers of knowledge, destroy not this world full of enterprising men.
Meaning
Lord of the showers of clouds, master of mountains of the challenges of existence, the arrow (arm) you hold in hand to shoot upon the enemy, make that an instrument of peace, benevolence and liberation. Saviour of showers and protector of knowledge, do not damage the living world of nature nor hit the world of humanity.
Translation
O lover of mountains, the arrow you hold in your hand to shoot, O protector in the mountains, make that arrow auspicious, so that it may not kill man or other living beings. (1)
Notes
Astave, असितुं क्षेप्तुं, to throw; to shoot. Śivām, कल्याणकारिणीं , auspicious; benign. Giritra, pro tector of the mountain; protector in the mountains. Puruşam jagat, man and other animals that move, cattle. Also, a man that moves, i. e. is alive. Do not kill a living person.
बंगाली (2)
विषय
অথ রাজপুরুষৈঃ কিং কর্ত্তব্যমিত্যাহ ॥
এখন রাজপুরুষদিগকে কী করা উচিত, এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।
पदार्थ
পদার্থঃ–হে (গিরিশন্ত) মেঘদ্বারা সুখ উপস্থিতকারী সেনাপতি! যে কারণে তুমি (অস্তবে) নিক্ষেপ করিবার জন্য (য়াম্) যে (ইষুম্) বাণকে (হস্তে) হস্তে (বিভর্ষি) ধারণ কর এইজন্য (তাম্) তাহাকে (শিবাম্) মঙ্গলকারী (কুরু) কর । হে (গিরিত্র) বিদ্যার উপদেশক বা মেঘের রক্ষক রাজপুরুষ! তুমি (পুরুষম্) পুরুষার্থযুক্ত মনুষ্যাদি (জগৎ) সংসারকে (মা) না (হিংসীঃ) মারিও ॥ ৩ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–রাজপুরুষদিগের উচিত যে, যুদ্ধবিদ্যাকে জানিয়া এবং অস্ত্র-শস্ত্রকে ধারণ করিয়া মনুষ্যাদি শ্রেষ্ঠ প্রাণিদিগকে ক্লেশ দিবেন না বা মারিবেন না কিন্তু মঙ্গলরূপ আচরণ দ্বারা সকলের রক্ষা করিবেন ॥ ৩ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
য়ামিষুং॑ গিরিশন্ত॒ হস্তে॑ বি॒ভর্ষ্যস্ত॑বে ।
শি॒বাং গি॑রিত্র॒ তাং কু॑রু॒ মা হি॑ꣳসীঃ॒ পুর॑ুষং॒ জগ॑ৎ ॥ ৩ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
য়ামিষুমিত্যস্য পরমেষ্ঠী বা কুৎস ঋষিঃ । রুদ্রো দেবতা । বিরাডার্ষ্যনুষ্টুপ্ ছন্দঃ । গান্ধারঃ স্বরঃ ॥
পদার্থ
যামিষুং গিরিশন্ত হস্তে বিভর্ষ্যস্তবে।
শিবাং গিরিত্র তাং কুরু মা হিংসীঃ পুরুষং জগৎ।।৩৬।।
(যজু ১৬।৩)
পদার্থঃ (গিরিশন্ত) বেদবাণী দ্বারা শান্তির বিস্তারকারী পরমেশ্বর! (যাম্ ইষুম্) যে প্রেরণাকে (অস্তবে) চারিদিকে প্রসারিত করার জন্য (হস্তে বিভর্ষি) তুমি জ্ঞান দ্বারা ধারণ করো, (তাম্) সেই জ্ঞান-প্রেরণাকে তুমি আমাদের জন্য (শিবাম্) কল্যাণকারিণী (কুরু) করো। (গিরিত্র) হে বিদ্বানগণের রক্ষক! (জগৎ পুরুষম্) ক্রিয়াশীল ব্যক্তিকে (মা হিংসীঃ) হিংসিত হতে দিও না।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ হে পরমেশ্বর! তুমি বেদবাণী বিস্তারকারী, আমরা তা গ্রহণকারী। কৃপা করো যেন তোমার প্রেরণাকে গ্রহণ করে নিজেদের কল্যাণ করতে পারি। কেননা তুমিই জ্ঞান দ্বারা প্রেরণাকে ধারণ করাও। যাঁরা তোমার প্রেরণা অনুসারে চলেন, তাঁদের তুমি হিংসিত করো না।।৩৬।।
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