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यजुर्वेद अध्याय - 16

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  • यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 57
    ऋषिः - परमेष्ठी प्रजापतिर्वा देवा ऋषयः देवता - रुद्रा देवताः छन्दः - निचृदार्ष्यनुस्टुप् स्वरः - गान्धारः
    2

    नील॑ग्रीवाः शिति॒कण्ठाः॑ श॒र्वाऽअ॒धः क्ष॑माच॒राः। तेषा॑ सहस्रयोज॒नेऽव॒ धन्वा॑नि तन्मसि॥५७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नील॑ग्रीवा॒ इति॒ नील॑ऽग्रीवाः। शि॒ति॒कण्ठा॒ इति॑ शिति॒ऽकण्ठाः॑। श॒र्वाः। अ॒धः। क्षमाचरा इति॑ क्षमाऽच॒राः। तेषा॑म्। स॒ह॒स्र॒यो॒ज॒न इति॑ सहस्रऽयोज॒ने। अव॑। धन्वा॑नि। त॒न्म॒सि॒ ॥५७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नीलग्रीवाः शितिकण्ठाः शर्वा अधः क्षमाचराः । तेषाँ सहस्रयोजने व धन्वानि तन्मसि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नीलग्रीवा इति नीलऽग्रीवाः। शितिकण्ठा इति शितिऽकण्ठाः। शर्वाः। अधः। क्षमाचरा इति क्षमाऽचराः। तेषाम्। सहस्रयोजन इति सहस्रऽयोजने। अव। धन्वानि। तन्मसि॥५७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 16; मन्त्र » 57
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः! ये नीलग्रीवाः शितिकण्ठाः शर्वा अधः क्षमाचराः सन्ति, तेषां सहस्रयोजने दूरीकरणाय धन्वानि वयमवतन्मसि॥५७॥

    पदार्थः

    (नीलग्रीवाः) नीला ग्रीवा येषां ते (शितिकण्ठाः) शितिः श्वेतः कण्ठो येषां ते (शर्वाः) हिंसकाः (अधः) अधोगामिनः (क्षमाचराः) ये क्षमायां पृथिव्यां चरन्ति। तेषामिति पूर्ववत्॥५७॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्ये वायवो भूमेरन्तरिक्षमन्तरिक्षाद् भूमिं च गच्छन्त्यागच्छन्ति तत्र ये तेजोभूम्यादितत्त्वानामवयवाश्चरन्ति, तान् विज्ञायोपयुज्य कार्य्यं साध्यम्॥५७॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो! जो (नीलग्रीवाः) नीली ग्रीवा वाले तथा (शितिकण्ठाः) श्वेत कण्ठ वाले (शर्वाः) हिंसक जीव और (अधः) नीचे को वा (क्षमाचराः) पृथिवी में चलने वाले जीव हैं (तेषाम्) उन के (सहस्रयोजने) हजार योजन के देश में दूर करने के लिये (धन्वानि) धनुषों को हम लोग (अव, तन्मसि) विस्तृत करते हैं॥५७॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि जो वायु भूमि से आकाश और आकाश से भूमि को जाते-आते हैं। उनमें जो अग्नि और पृथिवी आदि के अवयव रहते हैं, उन को जान और उपयोग में लाके कार्य सिद्ध करें॥५७॥

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    विषय

    नाना रुद्रों अधिकारियों का वर्णन ।

    भावार्थ

    ( नीलग्रीवाः शितिकाण्ठाः ) गर्दन पर नील वर्ण के और कण्ठ में श्वेत वर्ण के चिन्ह को धारण करने वाले ( शर्वाः ) हिंसा कारी ( अधः ) नीचे ( क्षमाचराः ) पृथ्वी पर विचरने वाले अथवा नीचे की श्रेणियों में विचरने वाले हैं ( तेषां सहस्र० इत्यादि ) पूर्ववत् ।चन्द्रादि लोक जो स्वयं प्रकाशमान नहीं हैं वे सूर्य के आश्रित होकर उसके प्रकाश से कण्ठ अर्थात् आगे की ओर से तो चमकीले और पीछे की ओर से अन्धकारमय, नीले होते हैं । उसी प्रकार जो राजा के आश्रित मृत्य हैं वे भी आगे से चमकते राज शासन का कार्य करते हैं और उनके काले गुण अर्थात्, लोभ आदि पीछे रहते हैं । वे उनका प्रयोग नहीं कर सकते ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    निचृदार्ष्यनुष्टुप् । गांधारः ॥

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    विषय

    अधः क्षमाचराः

    पदार्थ

    १. (नीलग्रीवा:) = विविध विद्याओं से सुभूषित गर्दनवाले, २. (शितिकण्ठा:) = शुद्ध कण्ठस्वरवाले, ३. (शर्वा:) = [ शृणन्ति] शत्रुओं का संहार करनेवाले रुद्र, अर्थात् राजपुरुष, ४. (अध:) = सर्वदा अधोदृष्टिवाले, अर्थात् अपनी शक्ति आदि का गर्व न करनेवाले, सदा ५. (क्षमाचरा:) = सहनशक्ति के साथ विचरनेवाले हैं, प्रजा से मूर्खतावश दी गई गालियों से उत्तेजना में नहीं आ जाते। ६. (तेषाम्) = उनके (धन्वानि) = अस्त्रों को सहस्त्रयोजने हज़ारों योजनों की दूरी तक (अवतन्मसि) = विस्तृत करते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ - राजपुरुष १. उद्धत न होकर विनीत हो । २. प्रजा की गालियों से तैश में न आनेवाले हों।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जो वायू भूमीकडून आकाशाकडे जातो व आकाशातून भूमीकडे येतो त्यात अग्नी व पृथ्वी इत्यादींचे अणू असतात. त्यांचे ज्ञान प्राप्त करून माणसांनी कार्य सिद्ध करावे.

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    विषय

    पुढील मंत्रात तोच विषय -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो, (नीलग्रीवा:) निळा गळा असलेले आणि (शितिकण्ठा:) काळा गळा असलेले ज (शर्वा:) हिंसक प्राण आहेत, त्यांना, तसेच (अध:) खाली (भूमीगर्भात) वा (क्षमाचरा:) भूमीवर विचरणारे प्राणी आहेत, (तेषाम्) त्यांना (सहस्रयोजने) हजार योजनावरील दूरच्या देशात पाठविण्यासाठी आम्ही (सैनिकगण) (धन्वानि) आपल्या धनुष्य आदी शस्त्रांना (उरव, तन्मसि) विस्तारित करतो. (हिसक वा विनाशक प्राण्यांना दूरच्या प्रदेशात हाकलून देतो) ॥57॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. मनुष्यांचे कर्तव्य आहे की त्यांनी जे वायू भूमीवरून आकाशाकडे जातात आणि जे आकाशाकडून भूमीकडे येतात, त्यामध्ये अग्नीचे व पृथ्वीचे जे अवयव असतात, त्यांचा शोध करून त्यांना उपयोगात आणले पाहिजे ॥57॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    The injurious creatures, whose necks are blue and whose throats are white, live down below on the earth. Let us use weapons for their extermination in places a thousand leagues away.

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    Meaning

    Blue-necked, white-throated are the violent powers and ferocious creatures which roam around on the earth. We counter and throw off their powers and forces countless leagues away from us with the bows we stretch to shoot the arrows.

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    Translation

    There are many terrible punishers with dark necks and sharp voices, who stay underground. May we get their bows unbent even a thousand leagues away. (1)

    Notes

    Adhaḥ kṣamācarāḥ, who stay under ground. All those staying on earth, in the mid-space, in the sky and under ground have been paid homage.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! যে সব (নীলগ্রীবাঃ) নীল গ্রীবা যুক্ত তথা (শিতিকণ্ঠাঃ) শ্বেত কণ্ঠ যুক্ত (শর্বাঃ) হিংসক জীব এবং (অধঃ) নীচের অথবা (ক্ষমাচরাঃ) পৃথিবীতে গমনশীল জীব, (তেষাম্) তাহাদের (সহস্রয়োজনে) সহস্র যোজনের দেশে দূর করিবার জন্য (ধন্বানি) ধনুগুলিকে আমরা (অব, তন্মসি) বিস্তুৃত করি ॥ ৫৭ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । মনুষ্যদিগের উচিত যে, যে বায়ু ভূমি হইতে আকাশ এবং আকাশ হইতে ভূমিতে যাতায়াত করে তাহাদের মধ্যে যে সমস্ত অগ্নি ও পৃথিবী আদির অবয়ব থাকে তাহাদেরকে জান এবং উপযোগে আনিয়া কার্য্য সিদ্ধ কর ॥ ৫৭ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    নীল॑গ্রীবাঃ শিতি॒কণ্ঠাঃ॑ শ॒র্বাऽঅ॒ধঃ ক্ষ॑মাচ॒রাঃ ।
    তেষা॑ᳬं সহস্রয়োজ॒নেऽব॒ ধন্বা॑নি তন্মসি ॥ ৫৭ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    নীলগ্রীবা ইত্যস্য পরমেষ্ঠী প্রজাপতির্বা দেবা ঋষয়ঃ । রুদ্রা দেবতাঃ ।
    নিচৃদার্ষ্যনুষ্টুপ্ ছন্দঃ । গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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