यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 36
ऋषिः - कुत्स ऋषिः
देवता - रुद्रा देवताः
छन्दः - स्वराडार्षी त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
2
नमो॑ धृ॒ष्णवे॑ च प्रमृ॒शाय॑ च॒ नमो॑ निष॒ङ्गिणे॑ चेषुधि॒मते॑ च॒ नम॑स्ती॒क्ष्णेष॑वे चायु॒धिने॑ च॒ नमः॑ स्वायु॒धाय॑ च सु॒धन्व॑ने च॥३६॥
स्वर सहित पद पाठनमः॑। धृ॒ष्णवे॑। च॒। प्र॒मृ॒शायेति॑ प्रऽमृ॒शाय॑। च॒। नमः॑। नि॒ष॒ङ्गिणे॑। च॒। इ॒षु॒धि॒मत॒ इती॑षुधि॒ऽमते॑। च॒। नमः॑। ती॒क्ष्णेष॑व॒ इति॑ ती॒क्ष्णऽइ॑षवे। च॒। आ॒यु॒धिने॑। च॒। नमः॑। स्वा॒यु॒धायेति॑ सुऽआ॒यु॒धाय॑। च॒। सु॒धन्व॑न॒ इति॑ सुऽधन्व॑ने। च॒ ॥३६ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नमो धृष्णवे च प्रमृशाय च नमो निषङ्गिणे चेषुधिमते च नमस्तीक्ष्णेषवे चायुधिने च नमः स्वायुधाय च सुधन्वने च ॥
स्वर रहित पद पाठ
नमः। धृष्णवे। च। प्रमृशायेति प्रऽमृशाय। च। नमः। निषङ्गिणे। च। इषुधिमत इतीषुधिऽमते। च। नमः। तीक्ष्णेषव इति तीक्ष्णऽइषवे। च। आयुधिने। च। नमः। स्वायुधायेति सुऽआयुधाय। च। सुधन्वन इति सुऽधन्वने। च॥३६॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
ये राजप्रजाजनाध्यक्षा धृष्णवे च प्रमृशाय च नमो निषङ्गिणे चेषुधिमते च नमस्तीक्ष्णेषवे चायुधिने च नमः स्वायुधाय च सुधन्वने च नमः प्रदद्युः कुर्युश्च ते सदा विजयिनो भवन्तु॥३६॥
पदार्थः
(नमः) अन्नादिदानम् (धृष्णवे) यो धृष्णोति दृढो निर्भयो भवति तस्मै (च) (प्रमृशाय) प्रकृष्टविचारशीलाय (च) मृदुस्वभावजनाय (नमः) सत्करणम् (निषङ्गिणे) बहवो निषङ्गाः शस्त्रसमूहा विद्यन्ते यस्य तस्मै (च) (इषुधिमते) प्रशस्तशस्त्रास्त्रकोशाय (च) (नमः) सत्करणम् (तीक्ष्णेषवे) तीक्ष्णास्तीव्रा इषवोऽस्त्रशस्त्राणि यस्य तस्मै (च) (आयुधिने) ये शतघ्न्यादिभिः समन्ताद् युध्यन्ते ते प्रशस्ता विद्यन्ते यस्य तस्मै (च) (नमः) अन्नदानम् (स्वायुधाय) शोभनानि आयुधानि यस्य तस्मै (च) (सुधन्वने) शोभनानि धन्वानि धनूंषि यस्य तस्मै (च) तेषां रक्षकाय॥३६॥
भावार्थः
मनुष्यैर्यत्किंचित्कर्म कार्य्यं तत्सुविचारेण दृढोत्साहेनेति, नहि शरीरत्मबलमन्तरेण शस्त्रप्रहरणं शत्रुविजयश्च कर्त्तुं शक्यते, तस्मात् सततं सेना वर्द्धनीया॥३६॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वही विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
जो राजा और प्रजा के अधिकारी लोग (धृष्णवे) दृढ़ (च) और (प्रमृशाय) उत्तम विचारशील (च) तथा कोमल स्वभाव वाले पुरुष को (नमः) अन्न देवें (निषङ्गिणे) बहुत शस्त्रों वाले (च) और (इषुधिमते) प्रशंसित शस्त्र, अस्त्र और कोश वाले का (च) भी (नमः) सत्कार और (तीक्ष्णेषवे) तीक्ष्ण शस्त्र-अस्त्रों से युक्त (च) और (आयुधिने) अच्छे प्रकार तोप आदि से लड़ने वाले वीरों से युक्त अध्यक्ष पुरुष का (च) भी (नमः) सत्कार करें (स्वायुधाय) सुन्दर आयुधों वाले (च) और (सुधन्वने) अच्छे धनुषों से युक्त (च) तथा उनके रक्षकों को (नमः) अन्न देवें, वे सदा विजय को प्राप्त होवें॥३६॥
भावार्थ
मनुष्यों को चाहिये कि जो कुछ कर्म करें सो अच्छे प्रकार विचार और दृढ़ उत्साह से करें, क्योंकि शरीर और आत्मा के बल के बिना शस्त्रों को चलाना और शत्रुओं का जीतना कभी नहीं कर सकते। इसलिये निरन्तर सेना की उन्नति करें॥३६॥
विषय
नाना रुद्रों अधिकारियों का वर्णन ।
भावार्थ
( धृष्णवे च ) शत्रु का घर्षण करने में समर्थ, प्रगल्भ, दृढ, निर्भय पुरुष, ( प्रमृशाय च ) उत्तम विचारशील, शास्त्रज्ञ, ( निषङ्गिणे च ) खड्ग आदि नाना शस्त्रधारी ( इषुधिमते च ) उत्तम शस्त्रास्त्र बाण आदि के तर्कस वाले ( तीक्ष्णेषवे च ) तीक्ष्ण बाण वाले, ( आयुधिने च ) हथियारबन्द ( स्वायुधाय च ) उत्तम हथियारों से सजे, ( सुधन्वने च ) उत्तम धनुषधारी, इनको भी ( नमः ४) योग्य वेतन, पद और आदर प्राप्त हो ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
स्वराडार्षी त्रिष्टुप् । धैवतः ॥
विषय
शस्त्रास्त्र
पदार्थ
१. (धृष्णवे च) = बाह्य शत्रुओं तथा अपने काम-क्रोधादि अन्तःशत्रुओं का धर्षण करनेवाले [धृष्णोतीति एवं शीलः] राजा के लिए (नमः) = हम आदर का भाव धारण करते हैं, (च) = और (प्रमृशाय) = [ प्रमृशति विचारयति] सदा विचारशील राजा के लिए, कामादि से प्रेरित न होकर विचारपूर्वक सन्धि विग्रह आदि अपने कार्यों को करनेवाले के लिए हम सम्मान देते हैं। २. (निषङ्गिणे च) = तलवार धारण करनेवाले के लिए (नमः) = हम नमस्कार करते हैं, (च) = और इषुधिमते तीरों से भरे तरकसों को धारण करनेवाले का हम सत्कार करते हैं। ३. (तीक्ष्णेषवे च) = और तेज़ बाणोंवाले के लिए हम आदर देते हैं च तथा (आयुधिने च) = अच्छे प्रकार तोप आदि से लड़नेवाले वीरों से युक्त अध्यक्ष पुरुष का भी हम मान करते हैं। ४. स्वायुधाय च उत्तम आयुधों से युक्त [त्रिशूलधारी महादेव के समान प्रतीत होनेवाले] इन सैनिकों का (नमः) = हम आदर करते हैं, (च) = और (सुधन्वने) = उत्तम धनुष धारण किये हुए सैनिक का भी हम मान करते हैं।
भावार्थ
भावार्थ - विविध शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित सैनिकों का हमें सदा सम्मान करना चाहिए और इनके मुखिया शत्रुधर्षक विचारशील राजा को भी आदर के भाव से देखना चाहिए।
मराठी (2)
भावार्थ
माणसांनी दृढ उत्साहाने चांगल्या प्रकारे विचार करून कर्म करावे. कारण शरीर व आत्मा यांच्या शक्तीखेरीज शस्त्रे चालविणे व शत्रूंना जिंकणे कधी शक्य होत नाही. त्यासाठी सदैव सैन्याला प्रोत्साहित करावे.
विषय
पुनश्च, तोच विषय
शब्दार्थ
शब्दार्थ - राजाने तसेच प्रजाजनांतील मुख्य अधिकारी लोकांनी आपल्या सैन्यातील (धृष्णवे) धैर्यवंत आणि धाडशी सैनिकांना (च) तसेच (प्रमृशाय) शांत व विचारवंत (च) आणि शांत, मधुर स्वभाव असणार्या लोकांना (नम:) अन्न आदी द्यावे. (त्यांच्यासाठी भोजन-निवासाची योग्य व्यवस्था करावी) त्याचप्रमाणे राजाने सैन्यातील (निषद्गिणे) (बाणांचा भाता आदी) अनेकशस्त्र धारण करणार्या (च) आणि (इषुधिमते) अस्त्र-शस्त्रांचा मोठा साठा असणार्या अधिकार्यांचा (स्टोर कीपर) (च) देखील (नम:) अवश्य सत्कार-सन्मान करावा. तसेच (तीक्ष्णेषवे) तीक्ष्ण अस्त्र-शस्त्रांनी युक्त (च) आणि (आयुधिने) तोफ, (बंदूक) आदी द्वारा युद्ध करणार्या सेनाप्रमुकाचाही (च) ही (नम:) पुरस्कारादीद्वारे सत्कार करावा. (स्वायुधाय) उत्कृष्ट आयुधांनी समृद्ध (च) आणि (सुधम्वने) चांगल्या धनुष्यांनी युक्त अशा धनुर्धारी सैनिकांना (च) व त्यांच्या सहाय्यकांनादेखील (नम:) अन्न-धान्यादी पदार्था द्यावेत की ज्यायोगे ते युद्धात नेहमी विजयी ठरतील. ॥36॥
भावार्थ
भावार्थ - माणसाने जे काही कर्म करावे ते नीट विचारपूर्वक आणि दृढ उत्साहपूर्वक करावे, कारण की शारीरिक व आत्मिक शक्तीशिवाय शस्त्र चालविणे आणि शत्रूंवर विजय मिळविणे ही कामें कदापी सिद्ध होत नाहीत. (म्हणून वर सांगितल्याप्रमाणे विचाराने, उत्साहाने) कार्ये संपन्न करावीत. ॥36॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Food to the bold, the prudent and the mild. Homage to him who carries sword and quiver. Homage to him who hath sharp weapons, and is equipped with brave warriors. Food to him who possesses good weapons and good bows.
Meaning
Salutations to the bold and fearless. Salutations to the shrewd and reflective man of thought and deliver¬ action, and to the kind and the courteous. Salutations to the man of the sword and to the hero of the pointed arrow and quiver. Salutations to the man of mighty warriors of invincible arms. Salutations to the wielder of super¬ weapons and to the man of the mighty bow.
Translation
Our homage be to him; who is bold; (1) and to him, who is prudent. (2) Our homage be to him, who carries a sword; (3) and to him, who carries quivers. (4) Our hornage be to him, who has sharp arrows; (5) and to him who has weapons. (6) Our homage be to him, who has good weapons; (7) and to him, who has fine bows. (8)
Notes
Sväyudhāya,शोभनायुधाय,to him who has good weap ons.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।
पदार्थ
পদার্থঃ– রাজ ও প্রজার অধিকারী লোকেরা (ধৃষ্ণবে) দৃঢ় (চ) এবং (প্রমৃশায়) উত্তম বিচারশীল (চ) তথা কোমল স্বভাব বিশিষ্ট পুরুষকে (নমঃ) অন্ন দিবে, (নিষঙ্গিণে) বহু শস্ত্র যুক্ত (চ) এবং (ইষুধিমতে) প্রশংসিত শস্ত্র, অস্ত্র ও কোষযুক্ত ব্যক্তিগণের (চ) ও (নমঃ) সৎকার এবং (তীক্ষ্মেষবে) তীক্ষ্ম অস্ত্র-শস্ত্র দ্বারা যুক্ত (চ) এবং (আয়ুধিনে) উত্তম প্রকার তোপাদি দ্বারা যুদ্ধকারী বীরদের সঙ্গে যুক্ত অধ্যক্ষ পুরুষের (চ) ও (নমঃ) সৎকার করিবে । (স্বায়ুধায়) সুন্দর আয়ুধ সম্পন্ন (চ) এবং (সুধন্বনে) উত্তম ধনুযুক্ত (চ) তথা তাহাদের রক্ষকগণকে (নমঃ) অন্ন দিবে, তাহারা সর্বদা বিজয় প্রাপ্ত হউক ॥ ৩৬ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–মনুষ্যদিগের উচিত যে, যাহা কিছু কর্ম করিবে উহা উত্তম প্রকার বিচার ও দৃঢ় উৎসাহ পূর্বক করিবে কেননা শরীর ও আত্মার বল ব্যতীত শস্ত্র চালনা করা এবং শত্রুদিগের উপর জয়লাভ করা কখনও হইতে পারেনা এইজন্য নিরন্তর সেনার উন্নতি করিবে ॥ ৩৬ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
নমো॑ ধৃ॒ষ্ণবে॑ চ প্রমৃ॒শায়॑ চ॒ নমো॑ নিষ॒ঙ্গিণে॑ চেষুধি॒মতে॑ চ॒ নম॑স্তী॒ক্ষ্মেষ॑বে চায়ু॒ধিনে॑ চ॒ নমঃ॑ স্বায়ু॒ধায়॑ চ সু॒ধন্ব॑নে চ ॥ ৩৬ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
নমো ধৃষ্ণব ইত্যস্য কুৎস ঋষিঃ । রুদ্রা দেবতাঃ । স্বরাডার্ষী ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
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